Saturday 4 June 2016


डेनमार्क के स्कूलों में पढ़ाई जाती है इस गांव की कहानी

राजस्थान के पिपलांत्री गांव ने केवल प्रदेश का ही नहीं, देश का भी मान बढ़ाया है. जिन बेटियों को देश के ज़्यादातर हिस्सों में बोझ की तरह समझा जाता है, उनके पैदा होने पर राजसमंद जिले के इस गांव में जश्न होता है. बेटी के जन्म पर गांव में खुशहाली का माहौल ही नहीं रहता है, बल्कि घरवाले इस मौके पर 111 पौधे लगाते हैं और उनकी देख-रेख का संकल्प भी लेते हैं.


इस गांव की कहानी डेनमार्क के स्कूलों में बच्चों को पढ़ाई जाती है. वर्ष 2014 में डेनमार्क से मास मीडिया यूनिवर्सिटी की दो स्टूडेंट्स यहां स्टडी करने आई थीं. उन्होंने बताया था कि वहां की सरकार ने विश्व के अनेक देशों के ऐसे 110 प्रोजेक्ट्स में से पिपलांत्री गांव को टॉप-10 में शामिल किया है. स्टडी करने के बाद वहां के प्राइमरी स्कूलों में बच्चों को अब इस गांव की कहानी पढ़ाई जाती है.
हाल ही में राजस्थान सरकार ने 7वीं और 8वीं के सिलेबस में इस गांव की कहानी को शामिल किया है. अब राजस्थान के भी बच्चे इस गांव की प्रेरणादायी कहानी को पढ़ सकेंगे.

जब लाडली बेटी दुनिया छोड़ गई…


गांव में इस खास पहल को देखने के लिए विदेशी डाक्यूमेंट्री बनाने और रिसर्च करने आते रहते हैं.
गांव के पूर्व सरपंच श्यामसुंदर पालीवाल की एक बेटी थी, जिसे वे जान से भी ज्यादा प्यार करते थे. उसके अचानक गुजर जाने के बाद श्यामसुंदर को गहरा सदमा पहुंचा. इस गम से निकलने के लिए इन्होंने गांव में बेटियों के प्रति लोगों का नज़रिया बदलने की अपील की और कुछ ऐसे नियम बनाए, जिसे सभी फॉलो करते हैं. इसके तहत गांव में ये माना गया कि बेटियां प्रकृति का वरदान हैं. इसलिए हर बेटी के जन्म पर परिजनों को 111 पौधे लगाने हैं. केवल पौधे ही नहीं लगाने हैं बल्कि उसकी पूरी देखभाल भी अपनी बेटी जैसे ही करनी है.

बेटी जब बड़ी होती है, तो वो देखती है कि उसके जन्मदिन पर उसके माता-पिता द्वारा लगाए गए पौधे पेड़ बन गए हैं और हरे-भरे हो गए हैं. बेटी भी शादी होने से पहले तक उन पेड़ों की देखभाल करती है.

बेटी के जन्म का जश्न


जैसे ही पता चलता है कि गांव में किसी के यहां बेटी हुई है, तो पूरा गांव वहां जुट जाता है. सभी माता-पिता को बधाई देते हैं और पेड़ लगाने का आग्रह करते हैं. जन्म के कुछ दिनों बाद पेड़ लगाने की तैयारियां होती हैं. फिर गांव के सभी लोग मिलकर पेड़ लगाने के उस कार्यक्रम में हिस्सा लेते हैं. इस मौके पर बाकायदा एक बोर्ड लगाया जाता है, जिसमें बच्ची का नाम, उसके माता-पिता का नाम, जन्म की तारीख और पौधरोपण की तारीख लिखी होती है.

फायदेमंद पौधे लगाए जाते हैं


यहां एलोवेरा, नीम, शीशम और आंवला जैसे पेड़ लगाए जाते हैं, जो आर्थिक लाभ के साथ स्वच्छ वातावरण देते हैं. ये पैसे बेटियों की पढ़ाई और शादी में मददगार होते हैं. इसके अलावा गांव की ओर से एक समिति बनाई गई है. इस समिति का काम है ऐसे घर तलाशना, जो आर्थिक रूप से कमजोर हों.यदि इन घरों में बेटी पैदा होती है, तो पंचायत की ओर से 21 हजार और नवजात बच्ची के माता-पिता से 10 हजार रुपये लेकर उस बच्ची के नाम से बैंक में 18 साल के लिए जमा करा दिया जाता है. उसके पैरेंट्स से पंचायत वादा लेती है कि ये पैसे बेटी के करियर और शादी के लिए इस्तेमाल होंगे.गांव की पंचायत बेटी के परिजनों से शपथ पत्र पर हस्ताक्षर लेती है. इसमें बेटी को पढ़ाना और उसके करियर निर्माण में मदद देना, कन्या भ्रूण हत्या जैसे मामले से दूर रहना, बेटी को बोझ न समझना और बालिग होने के बाद ही उसकी शादी करना जैसी बातें शामिल होती हैं. इसमें बेटी के जन्म पर लगाए गए पेड़ों की रक्षा करना भी शामिल होता है

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