जब हालात कैराना हो
तो इंसान ब्रह्मेश्वर मुखिया बनता है...
90 के दशक मे बिहार मे नक्सलियों का प्रभाव बढ़ने के साथ ही जमींदार वर्ग (मुख्यतः भूमिहार) की भूमि/सम्पतियो को हड़पने की तैयारी हो चुकी थी … बिहार का अघोषित जंगलराज उनके मंसूबो के अनुकूल और चरम पर था …
ऐसे समय पर `कैरोना’ की तर्ज पर भागने/घर समेटने के विकल्प के अलावा `लड़ो और मरो’ का रास्ता ही बचा था ? … पर `आरा जिला घर बा, कौन बात के डर बा’ के नारे ने लोगों को पलायन से बचायें रखा
पर कब तक, नक्सली हिंसा मे लोग मारे जाने लगे … कयी परिवारों के पास तो वारिस तक नही रहा … ऐसी परिस्थिति मे `ब्रह्मेश्वर मुखिया’ ने रणवीर सेना की नींव रखी … नकाबपोश बनकर घर-घर घूमकर पैसे इकट्ठे कर एवं अपनी संपत्ति से …
पर कब तक, नक्सली हिंसा मे लोग मारे जाने लगे … कयी परिवारों के पास तो वारिस तक नही रहा … ऐसी परिस्थिति मे `ब्रह्मेश्वर मुखिया’ ने रणवीर सेना की नींव रखी … नकाबपोश बनकर घर-घर घूमकर पैसे इकट्ठे कर एवं अपनी संपत्ति से …
फिर नक्सलियों और रणवीर सेना मे खूनी हिंसा-प्रतिहिंसा का बीभत्स दौर शुरु हो गया … खोपिरा (संदेश) से शुरु होते हुये उदवंतनगर, बथानी टोला, लक्ष्मणपुर-बाथे आदि कयी बड़े नरसंहार हुये … कयी निर्दोष जमींदारो और तथाकथित दलितों की भी जाने गयीं …
हिंसा-प्रतिहिंसा की बीभत्स लड़ाई ने दोनो वर्ग का सुख-चैन छीन लिया था …… जमींदार वर्ग की ज्यादती कम होने लगी, गरीबो को सम्मान मिलने लगा, वहीं नक्सलियों से सामान्य गरीब वर्ग ने भी दूरी बनानी शुरु कर दी … फिर धीरे-धीरे अपने-आप ये हिंसक दौर भी बीत गया
पुत्तर प्रदेश की सरकार इतिहास से सीखे …… एक साम्प्रदायिक वर्ग के वर्चस्व की आड़ मे `कैरोना’ के हालात काश्मीर जैसे बदतर हो चुके है …… `कैरोना’ की आग को दावानल बनने से बचाना है तो जल्द से जल्द पलायन किये लोगों को कानूनी सुरक्षा देते हुये पुनर्स्थापित करवायें
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