Wednesday, 22 June 2016

जनसंख्या का चरित्र बदलने से 
राजनीतिक परिदृश्य और देशों की सीमाएं तक बदल जाती है.
 भारत ने वर्ष 1952 में जनसंख्या नीति घोषित की, लेकिन नीति बनाते समय समग्र विचार नहीं हुआ. इसलिए जनसंख्या में वृद्धि असंतुलन बढ़ता गया. जनसंख्या असंतुलन के कारण पिछले 15 साल में विश्व में तीन नए देश बने हैं. आज विश्व के कई देशों में संघर्ष चल रहा है.
 देश के जिस भाग में भारतीय पंथों को मानने वालों की संख्या कम हुई हैवहां संघर्ष हो रहे हैं. आतंकवाद और नक्सलवाद बढ़ा है. जिन क्षेत्रों में चर्च का प्रभाव बढ़ा, वहां माओवादियों की संख्या अधिक हो गई. 
 देश में जनसंख्या में असंतुलन का मुख्य कारण कारण हिन्दू-मुस्लिमों की प्रजजन दर में भारी असमानताविदेशी घुसपैठ और मतांतरण है. इसके चलते देश की सुरक्षाएकता – अखण्डता और सांस्कृतिक पहचान खतरे में है.  मतांतरण के कारण को समझने की जरूरत है. समाज की कमजोर कड़ी में काम करने की आवश्यकता है. लालच और धोखे से हो रहे मतांतरण और घुसपैठ को रोकना होगा. इस संकट के निवारण  के लिए देश में परिवार कल्याण कार्यक्रम  सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू किया जाये. देश की जनसंख्या नीति बने, अवैध घुसपैठ पर कठोरता से नियंत्रण और मतांतरण पर प्रभावी रोक की आवश्यकता है.
वर्ष 2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार मुस्लिम समुदाय की आबादी 2001 से 2011 के बीच 10 साल में 0.8 फीसदी की वृद्धि के साथ 17.22 करोड़ पहुंच गईवहीं हिंदुओं की जनसंख्या इस अवधि में 0.7 फीसदी कमी के साथ 96.63 करोड़ रह गई. देश में हिन्दुओं की जनसंख्या का अनुपात पहली बार 80 प्रतिशत से कम हुआ. जबकि मुस्लिम जनसंख्या का अनुपात पिछले दशक की तुलना में 9.8 प्रतिशत से बढ़कर14.23 प्रतिशत हुआ. असम में एक तिहाई जिलों में मुस्लिम आबादी 50 प्रतिशत तक पहुंच गई. मणिपुर में भारतीय उपासना पद्धतियों को मानने वालों का अनुपात 50 प्रतिशत रह गया जो 1951 में 80 प्रतिशत था. 

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