Wednesday, 15 June 2016

75 साल बाद कश्मीर में 

महाकुंभ के लिए जुटे 12 हजार हिंदू ...

कश्मीर में 75 साल बाद लगा कुंभ मेला.........!!!

कश्मीरी पंडित 75 साल बाद झेलम और सिंध नदियों के संगम पर आयोजित कुंभ मेले में शामिल हुए। मेला श्रीनगर से 30 किलोमीटर दूर उत्तर कश्मीर के शादीपुरा इलाके में हुआ। इस कुंभ मेले में मेला खीर भवानी के लिए आए हजारों कश्मीरी पंडित शामिल हुए और उन्होंने पवित्र संगम में डुबकी लगाई।

 मेले में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए रोजे पर चल रहे ज्यादातर स्थानीय मुसलमानों ने फूल, फल, सब्जियों, जूस वगैरह के स्टॉल लगाए थे। स्थानीय लोगों ने श्रद्धालुओं को संगम के बीच बने द्वीप पर पवित्र शिवलिंग तक ले जाने के लिए नावों की भी व्यवस्था की ।

 जम्मू एवं कश्मीर में लगभग 12,000 हिंदू 'महाकुंभ' के लिए  गांदेरबल जिले में झेलम नदी और सिंध धारा के संगम पर जुटे । श्रद्धालुओं में अधिकांश कश्मीरी पंडित हैं। महाकुंभ में हिस्सा लेने के लिए दिल्ली से जम्मू एवं कश्मीर पहुंचे आशुतोष भटनागर (44) ने कहा कि पिछली बार इस तरह का संयोग सन् 1941 में बना था, जिसके 75 साल और 10 दिन बाद फिर वही संयोग बना है।
उन्होंने कहा कि गांदेरबल जिले के सैदीपोरा गांव में संगम स्थानीय पंडित समुदाय के लोगों के लिए बेहद पवित्र माना जाता रहा है, जिसमें वे मृतकों की अस्थियों का विसर्जन करते हैं।भटनागर ने कहा कि महाकुंभ ऐसा समारोह है, जिसे श्रद्धालु गंवाना नहीं चाहते और यही कारण है कि इस पवित्र समारोह का हिस्सा होने के लिए हम यहां भारी संख्या में जुटे हैं।
इस साल के महाकुंभ की घोषणा ओंकारनाथ शास्त्री ने की है, जो एक ज्योतिषी हैं और उनका परिवार 1990 के दशक की शुरुआत में कश्मीरी पंडितों के कश्मीर छोड़ने से पहले कश्मीरियों के लिए पांचांग प्रकाशित करने के लिए जाना जाता है। संगम के संयोजक भरत रैना ने कहा कि कुंभ प्रत्येक 12 साल पर और अर्धकुंभ प्रत्येक छह साल पर होता है। रैना ने कहा कि 12 घंटे लंबा हवन सोमवार को संगम में शुरू हुआ, जो मंगलवार तक चलेगा।
उन्होंने कहा कि इस मौके पर श्रद्धालु संगम में पवित्र डुबकी लगाते हैं और एक विशेष स्थान तक जाते हैं, जहां काफी लंबे समय से चिनार का एक वृक्ष मौजूद है। रैना ने कहा, "संगम का यह हिस्सा इस पवित्र स्थल का गर्भ गृह है। श्रद्धालु द्वीप पर मौजूद शिवलिंग पर जल चढ़ाते हैं। हवन के बाद श्रद्धालु प्रसाद लेते हैं और अपने आसपास के लोगों में उसे वितरित कर बाकी घर ले जाते हैं।"
ऐसा पहली बार है, जब घाटी से कश्मीरी पंडितों के पलायन के बाद इतनी अधिक संख्या में वे इस समारोह में हिस्सा लेने आए हैं। इससे पहले, साल 2011 में 35,000 हिंदू संगम में पुष्कर मनाने के लिए इकट्ठा हुए थे। हालांकि इनमें से अधिकांश लोग दक्षिण भारतीय थे।
अधिकारियों ने श्रद्धालुओं के लिए सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए हैं, जो  घाटी से निकलना शुरू करेंगे।




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