Monday 20 June 2016

 आपने  महान  योद्धा 

“सरदार हरि सिंह नलवा” का इतिहास पढ़ा है?

भारत शेरों की तपोस्थली रही है यहाँ एक से बढ़कर एक वीरों ने जन्म लिया है | भारतीय रणबाकुरों ने वीरता के अदम्य साहस के ऐसे ऐसे उदाहरण पेश किये कि जिनको देखकर दुश्मनों ने दांतों तले उगुलियाँ दबा ली।  महान वीर योद्धा “सरदार हरि सिंह नलवा”  के इतिहास के महत्वपूर्ण परिचय….

1. सरदार हरि सिंह (1791-1837), महाराजा रणजीत सिंह के सेनाध्यक्ष थे जिसने पठानों से साथ कई लड़ाईयों का नेतृत्व किया। सिख फौज के सबसे बड़े जनरल हरि सिंह नलवा ने कश्मीर पर विजय प्राप्त कर अपना लौहा मनवाया। यही नहीं, काबुल पर भी सेना चढ़ाकर जीत दर्ज की। खैबर दर्रे से होने वाले अफ़ग़ान आक्रमणों से देश को मुक्त किया। १८३१ मेंजमरौद की जंग में लड़ते हुए मारे गए।
नोशेरा के युद्ध में स. हरि सिंह नलवा ने महाराजा रणजीत सिंह की सेना का कुशल नेतृत्व किया था। रणनीति और रणकौशल की दृष्टि से हरि सिंह नलवा की तुलना भारत के श्रेष्ठ सेनानायकों से की जा सकती है।
2. राजा रणजीत सिंह ने सरदार हरि सिंह नलवा के जैसे शौर्य पराक्रम और कुशल सेना नायक के बल बूते पर मुगल साम्राज्य के बीच उस भाग में अपने स्वतंत्र साम्राज्य की स्थापना की जहाँ पर विदेशी आक्रमणकारियों जब तब हमला करते रहते थे |
3. अपने जीवनकाल में सरदार हरि सिंह नलवा इन क्रूर कबिलियों के लिए दुस्वप्न की तरह रहे जिन्होंने कभी भी विदेशी आक्रमणकारियों को चैन की सांस नहीं लेने दिया। खैबर दर्रे से होने वाले अफ़ग़ान आक्रमणों से देश को मुक्त कराने में सरदार हरिसिंह ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
4. अफगानों के खिलाफ हुयी भीषण लड़ाई को जीतकर नलवा ने अफ़गानों की धरती पर कसूर, मुल्तान, कश्मीर और पेशावर में सिख शासन की स्थापना की थी । पेशावर से लेकर काबुल तक सरदार हरी सिंह नलवा की कीर्ति पताका फैली हुयी थी।
5. सिक्खों के सर्वाधिक लोकप्रिय सरदारों की गिनती में शुमार सरदार हरिसिंह नलवा ने  सियालकोट (1802), कसूर (1807), मुल्तान (1818), कश्मीर (1819), पखली  और दमतौर (1821-2), पेशावर (1834) और ख़ैबर हिल्स में जमरौद (1836) पर विजय प्राप्त कर सिक्ख साम्राज्य का विस्तार किया।
6. एक समय राजा रणजीत सिंह के राज्य को छोड़कर पूरे भारत पर ब्रिटिश हुकुमत का राज्य था। सरदार हरि सिंह नलवा, अकाली बाबा फूला सिंह, फतेह सिंह आहलुवालिया, देसा सिंह मजीठिया और अत्तर सिंह सन्धावालिये जैसे योद्धाओं के चलते राजा रणजीत सिंह स्वतंत्रता पूर्वक अपना राज-काज चलाते रहे।
7. महाराजा रणजीत सिंह ने सरदार हरि सिंह नलवा को खैबर दर्रे से राज्य में प्रवेश करने वाली विदेशी शक्तियों को रोकने के उद्देश्य से, दर्रे के प्रवेश द्वार पर किले का निर्माण करने का आदेश दिया था। हरि सिंह नलवा के तहत अटक से खैबर दर्रा तक किलों की एक श्रृंखला का निर्माण हुआ, उसमें मशहूर जमरौद का किला भी शामिल था।
8. 1837 में जब राजा रणजीत सिंह अपने बेटे की शादी में व्यस्त थे तब सरदार हरी सिंह नलवा उत्तर पश्चिम सीमा की रक्षा कर रहे थे। ऐसे कहा जाता है कि नलवा ने राजा रणजीत सिंह से जमरौद के किले की ओर बढ़ी सेना भेजने की मांग की थी लेकिन एक महीने तक मदद के लिए कोई सेना नहीं पहुंची। सरदार हरिसिंह अपने मुठ्ठी भर सैनिकों के साथ वीरतापूर्वक लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।
9. कुछ विद्वानों का मानना है कि राजा हरि सिंह नलवा की वीरता को, उनके अदम्य साहस को पुरस्कृत करते हुए भारत के राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे की तीसरी पट्टी को हरा रंग दिया गया है। हालांकि इस बात का कोई भी स्पष्ट प्रमाण उपलब्ध नहीं है।

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