परिवार को बचाने के लिए कानून हाथ में लेना अपराध नहीं
- सुप्रीम कोर्ट
देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि परिजनों के साथ मारपीट होता देख किसी भी व्यक्ति को सेल्फ डिफेंस का अधिकार है। इस क्रम में उस व्यक्ति को कानून हाथ में लेने का भी अधिकार है। राजस्थान के एक मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला सुनाया। कोर्ट का फैसला आत्मरक्षा के अधिकार को नए सिरे से परिभाषित करता है।
दरअसल, राजस्थान में दो लोगों को गांव में पड़ोसियों के साथ मारपीट के आरोप में सजा सुनाई गई थी। ट्रायल कोर्ट में सुनाई गई सजा को राजस्थान हाईकोर्ट ने भी जारी रखा। दोनों को दो साल की कड़ी कैद की सजा सुनाई गई, जिसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। एक अंग्रेजी अखबार की खबर के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान पाया कि पुलिस यह जान पाने में असफल रही कि मारपीट आखिर हुई क्यों? इस मारपीट में दोनों को इतनी चोट कैसे लग गई, उनके शरीर पर निशान कैसे आए, इसको लेकर भी जांच में कुछ स्पष्टता नहीं थी। सुप्रीम कोर्ट ने इन्हीं तर्कों के आधार पर दोनों को सभी आरोपों से बरी कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दोनों ने अपने परिजनों पर हमला होते देख कानून को हाथ में लिया। परिजनों को बचाने के दौरान ही उन दोनों को चोट लगी। उनके परिजनों पर हुआ हमला इतना भयानक था कि नुकीले हथियार से घायल होकर उनके पिता की मौत भी हो गई थी। कोर्ट ने अपने फैसले में सबसे महत्वपूर्ण बात कही कि अगर परिजनों के साथ मारपीट हो रही है, तो अपीलकर्ता को विधिक तौर पर ताकत का इस्तेमाल करने का अधिकार है।
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