Thursday 13 August 2015


●गणेश की जेनेटिक इंजीनियरिंग●
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 भारतीय इतिहास में पशु पक्षियों का मानवो से बराबर संवाद होता था
"एक गिद्ध किसी स्त्री के लिए राक्षसों के राजा से लड़ जाता था"
"कश्यप पत्नियों के कोख से वानर,भालू,गाय, भैंस आदि पैदा हो जाती थी"
"एक बन्दर राजा राम की सेना का प्रतिनिधित्व करता था"
और तो और...एक मानव के धड पर हाथी तक का सर ट्रांसप्लांट कर दिया जाता था
. evolution और biology के अनुसार ऐसा होना असंभव है
पिछले दिनों नील आर्मस्ट्रांग की ऐतिहासिक चन्द्र यात्रा का विडियो देखते वक़्त जिस चीज ने मुझे सबसे ज्यादा attract किया है वो है... नील आर्मस्ट्रांग द्वारा चाँद पर छोड़ा... "अमेरिका का झंडा" .किसी भी देश को नेशनल झंडे या चिन्ह या पशु आदि की जरुरत ही क्या है ? well अपने समुदाय को अलग चिन्हों से परिभाषित करना मानव प्रवत्ति है Its kind of a pride thing.... और ये प्रवत्ति अभी से नहीं... हजारो वर्षो से मौजूद है
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हिमालय की गोद में फल फूल रही आर्य सभ्यता की शक्ति संगठित रूप में रहने के कारण बढ़ चुकी थी... ब्रह्म कबीले से अलग अलग कबीले निकल अपनी स्वतंत्र पहचान बना रहे थे स्वयंभुव मनु के पुत्र सैनिक टुकडिया लेके अलग अलग दिशाओं में जा कर अलग अलग कबीलों या राज्यों की स्थापना करना शुरू कर चुके थे पर उस वक़्त कबीलों की सीमाए आज के मुताबिक ना थी....
हर 5 किलोमीटर पर एक कबीला मिल जाता था... और... कबीलों की पहचान सुनिश्चित करना...एक बड़ा सवाल था
उस वक़्त के मानव ने अपने आस पास नजर दौड़ा प्रकृति के विभिन्न रूपों के आधार पर अपने कबीलो को पहचान देना शुरू किया.........
 आकाशीय पिंडो जैसे सूर्य, चन्द्र, बृहस्पति आदि तथा प्राकृतिक कारको जैसे अग्नि,वायु,समुद्र,पृथ्वी, हिमालय आदि का चुनाव सबसे पहले शक्तिशाली लोगो द्वारा कर लिया गया और उसके बाद... बचे खुचे लोगो को... पशु पक्षियों के चिन्ह बाँट दिए गए "रूद्र" कबीले की पहचान "वृषभ" से होती थी जो उनका खुद का चुनाव था...
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अर्थात... 
कश्यप ऋषि की पत्नियों के पेट से सिंह,नाग,गरुड़,मृग आदि जो पैदा हुए... वास्तव में वो... विभिन्न कुलो के अधिपति घोषित किये गए इन्सान थे
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इसी प्रकार रावण से लोहा लेने वाला "जटायु" और कोई नहीं... कश्यप और विनता के पुत्र अरुण का वंशज था
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रावण से युद्ध में राम की सेना का प्रतिनिधित्व करने वाले हनुमान... वानर कुल के अधिपति केसरी और अंजना के पुत्र थे... बन्दर नहीं.और... गणेश का सर काट कर हाथी का सर ना फिट किया गया था बल्कि... छतिपूर्ति के तौर पर.."उन्हें 'गज पति" अर्थात गज कबीले का अधिपति घोषित किया गया था और गज का शीश यानी "मुखोटा" लगा कर उनका सम्मान किया गया था
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आज भी ना जाने कितनी आदिवासी प्रजातिया पायी जाती है... जो अलग पहचान सुनिश्चित करने के लिए जानवरों के मुखोटे लगाती है(Search it on Google)
.तो बात आई समधन में??
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इतिहास में वर्णित सभी ये पशु पक्षियों के किरदार वास्तव में इन्सान ही थे... जिनके विवरण पुराणकारो को सूक्ष्म रूप में मिले होगे (जैसे... गणेश के "गज शीश" लगा देवताओं द्वारा आशीर्वाद दिया गया या फिर.... कश्यप पत्नी से "नाग" उत्पन्न हुए) और पुराणकारो ने अक्ल का इस्तेमाल ना करते हुए... पुराणों को दिव्यता प्रदान करने के लिए अपनी कल्पनाओं को पुराणों में ठूस दिया
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खैर...गणेश का सर हाथी का हो या इन्सान का इससे उनकी महानता पर कोई प्रश्न चिन्ह नहीं लग जाता .पर आज फिर घर में गणेश पूजा हो रही है
इस "हाथी की सूंड वाली मूर्ति" को देख.... कभी कभी दिल में ये ख्याल अवश्य आता हैकि... अपनी माँ के आदेश के लिए अपनी जान दांव पर लगा के उस वक़्त के सबसे शक्तिशाली... समस्त रूद्र कबीले को पराजित कर देने वाला इन्सान...
अपने माँ बाप के चरणों के चक्कर को पृथ्वी के चक्कर लगाने से ज्यादा महत्वपूर्ण समझने वाला इन्सान...
रिद्धि सिद्धि के पति...क्षेम-लाभ के पिता..."गणेश"... का वास्तविक चेहरा...
....उस गज मुखोटे के पीछे छुपा असली चेहरा....कितना खुबसूरत रहा होगा...!!!

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