Thursday 27 August 2015

तेरंहवी का रहस्य

हमारे हिन्दुस्तान में ही तेरंहवी का विधान बनाया और कहीं तेरंहवी का विधान नहीं है क्योंकि सबसे पहले ज्ञान हिन्दुस्तान में ही प्रकट हुआ।
देहांत के बाद तेरह दिन तक हम अपने नातेदार, रिश्तेदारों के साथ उसी परिवेश में रहते हैं जहां देहांत से पहले रहते थे।
हमारा स्थूल शरीर छूट जाता है लेकिन हम 6 शरीरों सूक्ष्म, कारण, मनस्व , आत्मिक, ब्रह्म व निवार्ण शरीरों के साथ रहते हैं।
हम उसी आवरण मे रहते हैं, चिल्लाते हैं।
हमारा चिल्लाना हमारे परिवार वाले नहीं सुन पाते लेकिन जानवर, पशु-पक्षी सुनते हैं इसी कारण वह बैचन व भयभीत रहते हैं। अतः अन्दर की गति में आगे बढ़ा जाये, एक बार जहाँ अन्दर की और बढ़े फिर देहांत हुआ तो समझो हमारी गति हो गई।
कितनी अच्छी तरह हमारे महापुरुषों ने हमें यह ज्ञान समझाया।
यमराज का मुनीम बताया गया चित्रगुप्त को। हम
जो भी बातचीत कर रहे हैं वह एकत्रित हो रही है, यह बात विज्ञान भी सिद्ध कर चुका है। हमारे गुप्त रुप से चित्र खींचे जा रहे हैं।
जो हमने समाज से छिपकर कार्य किये देहांत के बाद उनके चित्र 13 दिन तक हमारे सामने चलाये जाते हैं। केवल वही चित्र चलते हैं जो कार्य हमने समाज से छुपकर किये। समाज से छिपकर अच्छे कार्य किये तो उनके चित्र आयेंगे, बुरे कार्य किये हैं तो उनके चित्र आयेंगे। उसी के अनुसार हमें अगला जन्म मिलता है।
लेकिन जब हम 84 अंगुल के इस शरीर की तरफ बढ़ते हैं तो हमारे सारे उन्नति के द्वार खुल जाते हैं। आन्तरिक पूजा के द्वारा हम अन्दर की इस शक्ति की तरफ बढ़ते हैं। अभी तक हम केवल ग्रन्थों मे पढ़ते सुनते चले आये कि अन्दर विराट अमृत सागर है लेकिन केवल पढ़ने सुनने से कुछ नहीं होगा, अनुभव
करना होगा । िवट्ठलदास व्यास

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