Tuesday 4 August 2015

अरबपति दलित महिला कल्पना सरोज

छोटी उम्र में विवाह हो जाने के बाद ससुरालवालो की प्रताड़ना सी तंग आकर दो दो बार आत्महत्या की कोशिश करने वाली ... और आज अरबपति दलित महिला कल्पना सरोज [चेयरमैन कमानी ट्यूब्स लिमिटेड] की प्रेरणादायक कहानी ..
एक अबला और असहाय दलित युवती के मजबूत और करोड़पति उद्यमी बनने की असली कहानी। कभी पति की शारीरिक प्रताड़ना से आजिज आकर इस युवती ने जिंदगी खत्म करने के लिए जहर पी डाला था। लेकिन किस्मत के साथ साथ हौंसले और मेहनत ने उसे नई जिंदगी के साथ साथ बेशुमार दौलत भी सौगात में दी।
बात हो रही है करोड़ों का टर्नओवर देने वाली ‘कमानी ट्यूब्स’ की चेयरपर्सन और पद्मश्री पुरस्कार प्राप्त कल्पना सरोज की। 12 साल की उम्र में बाल विवाह, घरेलू हिंसा और अमानवीय सामाजिक दंश झेल चुकी कल्पना आज कमानी ट्यूब्स के साथ साथ रियल्टी, फिल्म मेकिंग और स्टील जैसे दर्जनों कारोबार संभाल रही हैं। मालकिन कल्पना सरोज की शुरूआती जिंदगी बहुत संघर्षशील है।
आज कल्पना सरोज कमानी ट्यूब्स, कमानी स्टील्स, केएस क्रिएशंस, कल्पना बिल्डर एंड डैवलपर्स, कल्पना एसोसिएट्स जैसे दर्जनों कंपनियों की मालकिन है। इन कंपनियों का रोज का टर्नओवर करोड़ों का है। समाजसेवा और उद्यमिता के लिए कल्पना को पद्मश्री और राजीव गांधी रत्न के अलावा देश विदेश में दर्जनों पुरस्कार मिल चुके हैं। कुल मिलाकर देखा जाए तो कभी दस रुपए रोज कमाने वाली कल्पना आज शिखर पर है।
कल्पना का जन्म सूखे का शिकार रह चुके महाराष्ट्र के विदर्भ में हुआ। घर के हालात खराब थे और इसी के चलते कल्पना गोबर के उपले बनाकर बेचा करती थी। बारह साल की उम्र में ही कल्पना की शादी उससे दस साल बड़े आदमी से कर दी गई। कल्पना विदर्भ से मुंबई की झोंपड़पट्टी में आ पहुंची। उसकी पढ़ाई रुक चुकी थी। ससुराल में घरेलू कामकाज में जुटी रहती कल्पना रोज पिटती। कभी पति के हाथों तो कभी ससुराल वालों के हाथों। शरीर पर जख्म पड़ चुके थे और जीने की ताकत खत्म हो चुकी थी।
एक रोज इस नर्क से भागकर कल्पना अपने घर जा पहुंची। ससुराल से भागकर पहुंचने की सजा कल्पना के साथ साथ उसके परिवार को मिली और पंचायत ने परिवार का हुक्का पानी बंद कर दिया। तब कल्पना को जिंदगी के सभी रास्ते बंद नजर आए, कहीं कोई मदद या आस नहीं। उसने तीन बोतल कीटनाशक पीकर जान देने की कोशिश की लेकिन रिश्ते की एक महिला ने उसे बचा लिया।
कल्पना बताती है कि जान देने की कोशिश उसकी जिंदगी में एक बड़ा मोड़ लेकर आई। ‘मैने सोचा कि मैं क्यों जान दे रही हूं, किसके लिए? क्यों न मैं अपने लिए जिऊं, कुछ बड़ा पाने की सोचूं, कम से कम कोशिश तो कर ही सकती हूं।’ 16 साल की उम्र में कल्पना फिर मुंबई लौट आई। लेकिन इस बार पिटने के लिए नहीं एक नई जिंदगी शुरु करने के लिए।
मुंबई पहुंची कल्पना को हुनर के नाम पर कपड़े सिलने आते थे और उसी के बल पर उसने एक गारमेंट कंपनी में नौकरी कर ली। यहां एक दिन में दो रुपए की मजदूरी मिलती थी जो बेहद कम थी।
कल्पना ने निजी तौर पर ब्लाउज सिलने का काम शरू किया। एक ब्लाउज के दस रुपए मिलते थे। इसी दौरान कल्पना की बहन की इलाज ‌न मिलने के चलते मौत हो गई। कल्पना बुरी तरह टूट गई। उसने सोचा कि अगर रोज चार ब्लाउज सिले तो 40 रुपए मिलेंगे और घर की मदद भी होगी। उसने ज्यादा मेहनत की, दिन में 16 घंटे काम करके कल्पना ने पैसे एकत्र किए और घरवालों की मदद की।
इसी दौरान कल्पना ने देखा कि सिलाई और बुटीक के काम में काफी स्कोप है और उसने इसे एक बिजनेस के तौर पर समझने की कोशिश की। उसने दलितों को मिलने वाला 50,000 का सरकारी लोन लेकर एक सिलाई मशीन और कुछ अन्य सामान खरीदा और एक बुटीक शॉप खोल ली। दिन रात की मेहनत से बुटीक शॉप चल निकली तो कल्पना अपने परिवार वालों को भी पैसे भेजने लगी।
बचत के पैसों से कल्पना ने एक फर्नीचर स्टोर भी स्थापित किया जिससे उसे काफी अच्छा रिस्पॉन्स मिला। इसी के साथ साथ उसने ब्यूटी पार्लर भी खोला और साथ रहने वाली लड़कियों को काम भी सिखाया।
कल्पना ने दोबारा शादी की लेकिन पति का साथ लंबे समय तक नहीं मिल सका। दो बच्चों की जिम्मेदारी कल्पना पर छोड़ बीमारी से उनके पति की मौत हो गई।
कल्पना के संघर्ष और मेहनत को जानने वाले उसके मुरीद हो गए और मुंबई में उन्हें पहचान मिलने लगी। इसी जान पहचान के बल पर कल्पना को पता चला कि 17 साल से बंद पड़ी कमानी ट्यूब्स को सुप्रीम कोर्ट ने उसके कामगारों से शुरू करने को कहा है। कंपनी के कामगार कल्पना से मिले और कंपनी को फिर से शुरू करने में मदद की अपील की।
ये कंपनी कई विवादों के चलते 1988 से बंद पड़ी थी। कल्पना ने वर्करों के साथ मिलकर अथक मेहनत और हौंसले के बल पर 17 सालों से बंद पड़ी कंपनी में जान फूंक दी। कल्पना ने जब कंपनी संभाली तो कंपनी के वर्करों को कई साल से सैलरी नहीं मिली थी, कंपनी पर करोड़ों का सरकारी कर्जा था, कंपनी की जमीन पर किराएदार कब्जा करके बैठे थे, मशीनों के कलपुर्जे या तो जंग खा चुके थे या चोरी हो चुके थे, मालिकाना और लीगल विवाद थे। लेकिन कल्पना ने हिम्मत नहीं हारी और दिन रात मेहनत करके ये सभी विवाद सुलझाए और महाराष्ट्र के वाडा में नई जमीन पर फिर से सफलता की इबारत लिख डाली।
कल्पना के विजन और मेहनत का कमाल है कि आज कमानी ट्यूब्स करोड़ों का टर्नओवर दे रही है। कल्पना बताती हैं कि उन्हें ट्यूब बनाने के बारे में रत्तीभर की जानकारी नहीं थी और मैनेजमेंट उन्हें आता नहीं, लेकिन वर्करों के सहयोग और हर चीज को सीखने के जज्बे ने आज एक दिवालिया कंपनी को सफल बना दिया।

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 ये करारा तमाचा है आरक्षण के समर्थको के गाल पर जो सिर्फ अपने अकर्मण्यता पर पर्दा डालने के लिए जन्मना जाती गत आरक्षण की संवैधानिक सुविधा पाने के लिए सरकारी संपत्ति का नुकसान करते हैं और अन्य नागरिको को परेशां करते हैं ...
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