Wednesday 23 December 2015

क्या हमारा कर्तव्य नहीं है कि देश इनके बारे में जाने?

असम में एक ईसाई धर्मप्रचारक भेजे गए थे, नाम था फादर क्रूज़
 इन्हें असम के एक प्रभावशाली परिवार के लड़के को घर आकर अंगरेजी पढ़ाने का मौका मिला . पादरी साहब धीरे-धीरे घर का मुआयना करने लगे. उन्हें पता चल गया कि बच्चे की दादी इस घर में सबसे प्रभाव वालीं हैं, इसलिए उनको यदि ईसा की शिक्षाओं के जाल में फंसाया जाए तो उनके माध्यम से पूरा परिवार और फिर पूरा गाँव ईसाई बनाया जा सकता है.
 पादरी साहब दादी माँ को बताने लगे कैसे ईसा कोढ़ी का कोढ़ ठीक कर देते थे , कैसे वो अंधों को नेत्र ज्योति देते थे वगैरह-वगैरह. दादी ने कहा, बेटा, हमारे राम-कृष्ण के चमत्कारों के आगे तो कुछ भी नहीं ये सब. तुमने सुना है कि हमारे राम ने एक पत्थर का स्पर्श किया तो वो जीवित स्त्री में बदल गई रामजी के नाम के प्रभाव से पत्थर भी तैर जाता था पानी में. पादरी साहब खामोश होजाते पर कोशिश जारी रखते अपनी.
 एक दिन पादरी साहब चर्च से केक लेकर आ गए और दादी को खाने को दिया. पादरी साहब को यकीन था कि दादी न खायेंगी पर उसकी आशा के विपरीत दादी ने केक लिया और खा गई. पादरी साहब आँखों में गर्वोक्त उन्माद भरे अट्टहास कर उठे, दादी तुमने चर्च का प्रसाद खा लिया. अब तुम ईसाई हो.
 दादी ने पादरी साहब के कान खींचते हुए, वाह रे गधे ! मुझे एक दिन केक खिलाया तो मैं ईसाई हो गई और मैं जो रोज तुमको अपने घर का खिलाती हूँ , तो तू हिन्दू क्यों नहीं हुआ?
 तू तो रोज़ सनातन की इस आदि भूमि का वायु, जल लेता है फिर तो तेरा रोम-रोम हिन्दू बन जाना चाहिए? 
अपने स्वधर्म और राष्ट्र को पथभ्रष्ट होने और गलत दिशा में जाने से बचाने वाली ये दादी माँ थी असम की सुप्रसिद्ध क्रांतिकारी कमला देवी हजारिका .
 कौन जानता है इनको असम से बाहर? क्या हमारा कर्तव्य नहीं है कि देश इनके बारे में जाने?

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