Wednesday 23 December 2015

बलवान कौन ?
महाभारत युद्ध चल रहा था | अर्जुन के सारथी श्रीकृष्ण थे | जैसे ही अर्जुन का बाण छूटता, कर्ण का रथ कोसों दूर चला जाता | जब कर्ण का बाण छूटता तो अर्जुन का रथ सात कदम पीछे चला जाता |
श्री कृष्ण ने अर्जुन के शौर्य की प्रशंसा के स्थान पर कर्ण के लिए हर बार कहा कि कितना वीर है यह कर्ण ? जो उस रथ को सात कदम पीछे धकेल देता है |
अर्जुन बड़े परेशान हुए | असमंजस की स्थिति में पूछ बैठे कि हे वासुदेव ! यह पक्षपात क्यों ? मेरे पराक्रम की आप प्रशंसा करते नहीं एवं मात्र सात कदम पीछे धकेल देने वाले कर्ण को बारम्बार वाहवाही देते है |
श्री कृष्ण बोले-अर्जुन तुम जानते नहीं | तुम्हारे रथ में महावीर हनुमान एवं स्वयं मैं वासुदेव कृष्ण विराजमान् हूँ | यदि हम दोनों न होते तो तुम्हारे रथ का अभी अस्तित्व भी नहीं होता | इस रथ को सात कदम भी पीछे हटा देना कर्ण के महाबली होने का परिचायक हैं |
अर्जुन को यह सुनकर अपनी क्षुद्रता पर ग्लानि भी हुई | इस तथ्य को अर्जुन और भी अच्छी तरह सब समझ पाए जब युद्ध समाप्त हुआ | प्रत्येक दिन अर्जुन जब युद्ध से लौटते श्री कृष्ण पहले उतरते, फिर सारथी धर्म के नाते अर्जुन को उतारते | अंतिम दिन वे बोले-अर्जुन ! तुम पहले उतरो रथ से व थोड़ी दूरी तक जाओ | भगवान के उतरते ही घोड़ा सहित रथ भस्म हो गया |
अर्जुन आश्चर्यचकित थे | भगवान बोले-पार्थ ! तुम्हारा रथ तो कभी का भस्म हो चुका था | भीष्म, कृपाचार्य, द्रोणाचार्य व कर्ण के दिव्यास्त्रों से यह कभी का नष्ट हो चुका था | मेरे-स्रष्टा के संकल्प ने इसे युद्ध समापन तक जीवित रखा था | अपनी विजय पर गर्वोन्नत अर्जुन के लिए गीता श्रवण के बाद इससे बढ़कर और क्या उपदेश हो सकता था कि सब कुछ भगवान का किया हुआ है | वह तो निमित्त मात्र था | काश हमारे अंदर का अर्जुन इसे समझ पाये |
जय श्री कृष्ण

No comments:

Post a Comment