हिन्दू धर्म दुनिया का सबसे प्राचीन धर्म है। इसकी शुरूआत कब हुई थी, इसके बारे में कोई लिखित जानकारी उपलब्ध नहीं है, लेकिन माना जाता है कि इसकी उत्पत्ति 10000-5000 ई.पू में हुई थी, जो अपने-आप में एक लम्बा समय है। यह एकमात्र ऐसा धर्म है, जिसके उत्पत्ति की जानकारी या मूल दिनों के सम्बन्ध में नहीं पता चल सका है। हिन्दू धर्म के सम्बन्ध में व्याप्त तमाम तथ्यों में एक तथ्य यह है कि इस धर्म का कोई एक संस्थापक नहीं है और न ही कोई ग्रन्थ या सिद्धांत है, जो इसे परिभाषित करता हो। यही कारण है कि बहुत से लोग हिन्दुत्व को धर्म नहीं मानते। हालांकि कुछ पुस्तकें और ग्रन्थ जरूर मौजूद हैं, जिनके पन्नों में सदियों से चली आ रही परम्पराओं के अति विशिष्ट ज्ञान का समावेश है। हिन्दू धर्म कई मायनों में अनूठा है और इसके सम्बन्ध में बहुत सी दिलचस्प बातें प्रचलित हैं। आइए, उन बातों पर नजर डालते हैं।
1. शास्त्र:
2. आत्मा:
हिन्दू धर्म के अनुसार ब्रह्माण्ड की प्रत्येक वस्तु में आत्मा का निवास है। ऐसी आत्मा जिसे न नष्ट किया जा सकता है न ही मारा जा सकता है। कई हिन्दू ग्रंथों और मान्यताओं के अनुसार, मृत्यु केवल एक ऐसा परिवर्तन है जो सार्वभौमिक सत्य है।
3. पुनर्जन्म:
हिन्दू धर्म की महत्वपूर्ण अवधारणाओं में से एक है, पुनर्जन्म। आत्मा अमर है, इस तथ्य ने हिन्दू धर्म में पुनर्जन्म की अवधारणा को मजबूत किया है। इस धर्म में संपूर्ण विश्व का मार्गदर्शन करने हेतु भगवान के मनुष्य रूपी अवतार लेने की कई गाथाएं प्रचलित हैं। ऐसा माना जाता है कि एक आत्मा को पुनर्जन्म के अंतहीन चक्र से गुजरना पड़ता है, जिसका आशय अनन्त पीड़ा से है ।
4. मोक्ष:
मोक्ष अर्थात मुक्ति। दुनिया के कई धर्मों का मुख्य उद्देश्य मोक्ष की प्राप्ति है। जीवन और मरण के चक्र से मुक्ति पाने की सम्भावना का द्वार मोक्ष के मार्ग से ही होकर जाता है। ऐसा कहा जाता है कि एक हिन्दू का परम उद्देश्य जीवन और मरण चक्र से मुक्त होकर एकल इकाई के रूप में ब्रह्मांड में विलीन हो जाना है।
5. ब्रह्माण्ड:
ऐसी मान्यता है कि एक ब्राह्मण द्वारा इस ब्रह्माण्ड की रचना हुई और ब्रह्माण्ड के साथ-साथ, ब्राह्मण का विस्तार होता चला गया। अक्सर लौकिक वस्तुएं साक्षात ईश्वर और ब्रह्माण्ड, ऊर्जा के सर्व-समावेशी अभिव्यक्ति के रूप सा प्रतीत होता है, जिसमें हम सब अलग-अलग रूपों में रहते हैं।
6. त्रिदेव की महिमा:
गैर हिन्दू लोगों के लिए विभिन्न देवताओं के अस्तित्व को समझना अत्यंत कठिन है क्योंकि विश्व भर में ईश्वर के अंतहीन रूप देखने को मिलते हैं। हालांकि, यह भी कहा जाता है कि सब के सब उसी परम शक्ति से बने हैं, जिसे हम ईश्वर कहते है। ब्रह्मा इस सृष्टि के निर्माता हैं, जिन्होंने संपूर्ण दुनिया और यहाँ मौजूद हर चीज़ का सृजन किया। विष्णु इस संपूर्ण सृष्टि के पालनकर्ता और शिव को विनाशकर्ता के रूप में जाना जाता है।
7. धर्म:
हिन्दू धर्म के चार पहलुओं में से एक, धर्म का उद्देश्य जीवन में सही मार्ग पर आगे बढ़ना है। कई लोग मानते हैं कि यह हिन्दू धर्म की केन्द्रीय या प्रमुख परिकल्पना है, जो एक हद तक सही है। धर्म दरअसल नैतिकता और आध्यात्मिकता का सिद्धान्त है जो यह पारिभाषित करता है कि एक मनुष्य को किस तरह अपना जीवन व्यतीत करना चाहिए। धर्म को जीवन की एक अहम कड़ी के रूप में देखा गया। धर्म को जीवन का सिद्धान्त माना गया है, जिसके बिना जीवन संघर्षपूर्ण होगा।
8. कर्म:
हिंदू धर्म में कर्म को सर्वश्रेष्ठ पहलुओं में से एक माना गया है। कर्म को समझना आसान नहीं है, क्योंकि यह कई जीवन और मृत्यु के बीच क्रियाओं की एक अंतहीन चक्र का परिणाम होता है। यह भी हिन्दू धर्म की मुख्य अवधारणाओं में से एक है। यह क्रिया और इसके परिणाम ही हैं, जो मनुष्य को अन्य प्रजातियों से अलग करता है। हिन्दू धर्म में व्याप्त मान्यताओं के मुताबिक हम जैसा कर्म करते हैं, हमें फल भी उसी अनुपात में मिलता है। इसका अर्थ है कि जो भी हम करते है, उसका कोई न कोई प्रभाव पड़ता है, जो हमारी आत्मा की पात्रता को निर्धारित करता है। जीवन और मरण के चक्र से केवल हमारे अच्छे कर्म हमें मुक्ति दिला सकते है।
9. देवताओं का अस्तित्व:
हिन्दू धर्म में कई देवी और देवताओं को पूजा जाता है। जो मनुष्य हिन्दू धर्म में अनगिनत भगवान होने की अवधारणा से वाकिफ नहीं हैं, उनके लिए इसे समझना मुश्किल है। और वह भी तब, जब हम सब मानते है कि परमात्मा एक है। हालाँकि, ईश्वर को लेकर अवधारणाएं एक की दूसरे से भिन्न हो सकती है, लेकिन लगभग हर कोई ईश्वर के एकस्वरूप अस्तित्व को स्वीकार करता है। सर्वथा, हिन्दू धर्म में प्रायः 33 करोड़ देवी और देवता हैं।
10. वेद:
वेद प्राचीन भारत में रचित हिन्दू धर्म के प्राचीनतम और आधारभूत शास्त्र हैं। हालांकि वेदों को बहुत महत्व दिया जाता है, इसके बावजूद हिन्दू धर्म में लिखित ग्रन्थ नहीं हैं, जिसे हम वेद कह सके। वर्तमान समय में वेद मौखिक तौर पर अपने अस्तित्व में हैं। समस्त संस्कृत साहित्य में सबसे पुराने वेद ही हैं और कहा जाता है कि ईश्वर ने खुद अपने हाथों से इसे मनुष्य को सौपा था। चारों वेद अपने आप में विज्ञान और दर्शन को समेटे हुए है, लेकिन आधुनिक वैज्ञानिक और दार्शनिक इसे पूरी तरह समझ पाने में नाकाम रहे हैं।
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