अन्ना आन्दोलन और मोदी युग की नयी पीढी को शायद “भोपाल त्रासदी” के बारे में ज्यादा जानकारी न हो परन्तु आज से 31 साल पुरानी इस महाविनाशकारी दुर्घटना ने न केवल भोपाल शहर को बल्कि सम्पूर्ण भारत की राजनीति और समाज को प्रत्यक्षतः बुरी तरह प्रभावित किया था।दो-तीन दिसंबर की रात जानलेवा गैस मिथाइल आइसो सायनाइड (MIC) के रिसाव से भोपाल के हॉस्पिटल लाशों से पट गए। लेकिन लाखों लोगों के गुनाहगार वारेन एंडरसन को ससम्मान मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह और प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने अमेरिका वापस भेज दिया!
पिछले दिनों मानसून सत्र के शुरुआती 15 दिनों में कोई अच्छा काम भले न हुआ हो, पर भोपाल गैसकाण्ड का ‘सियासी गुब्बारा’ एक बार फिर क्षितिज पर अवश्य झूल गया।
विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने युनियन कार्बाइड के सीईओ (CEO) वारेन एंडरसन को भगाने के पीछे के तत्कालीन सरकार की मंशा पर जमकर सवाल उठाये। इसके लिए उन्होंने मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह की “जीवनी” का भी हवाला दिया।तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने आखिर किस दबाव में मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह को कहा होगा कि घटनास्थल पर पहुंचे वारेन एंडरसन को सकुशल वापस भेज दिया जाए?
भोपाल गैस त्रासदी का इतिहास देखेंगे तो पायेंगे कि त्रासदी की पृष्ठभूमि जानबूझकर रची गयी।
आखिर क्यों सारे नियम कानून-कायदों को धता बताते हुए देश में पचासों टन जहरीला रसायन रखवाया गया? वो भी इस तथ्य की अनदेखी करते हुए की इतनी मात्रा में एक जगह इस गैस का रख-रखाव संभव नहीं था।
एंडरसन के देश अमेरिका ने तो इस पर प्रतिबन्ध तक लगा दिया था।सुषमा स्वराज ने अपने बयान में राजीव गाँधी को सीधे तौर पर इस घटना क्रम का आरोपी ठहराया। और ये भी स्पष्ट किया की कैसे उन्होंने हिन्दुस्तान की जनभावना पर कुठराघात करते हुए अमेरिका सरकार से अपने मित्र के पुत्र आदिल शहरयार की रिहाई के बदले वारेन एंडरसन का सौदा किया।
कौन था ये आदिल, जिसके बदले राजीव गाँधी ने अमेरिका के सामने देश की भावनाओं का गला घोंट दिया?
आदिल शहरयार नेहरु-गांधी परिवार के मित्र मोहम्मद युनुस का बेटा था। आदिल पर फ्लोरिडा में बम विस्फ़ोट, फर्जीवाड़ा और ड्रग एक्टिविटीज में लिप्तीकरण का आरोप था। अमेरिका ने आदिल को 35 साल की सजा सुनाई।
भोपाल गैस काण्ड के बाद एंडरसन की भारत से सकुशल विदाई की बात पर भारत सरकार की ओर से आदिल की रिहाई की शर्त रखी गयी।
इसकी प्रमाणिकता सीआईए (CIA) ने अपनी रिपोर्ट में भी दर्शायी है। हालाँकि बाद में इससे जुड़े सभी डॉक्यूमेंट नष्ट कर दिए गए। परन्तु कांग्रेस और राजनीति के पुराने लोग दबी जुबान से इसे स्वीकारते रहे हैं।आलोचक आरोप लगाते रहे हैं की घटना से पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने यूनियन कार्बाइड को पर्याप्त संरक्षण देते हुए उसमें स्वयं हिस्सेदारी की। साल 2002 में अमेरिकी एजेंसी सीआईए (CIA) ने अपनी एक रिपोर्ट में ये बताया था की मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह सिर्फ दिल्ली के आदेशों का पालन कर रहे थे। तभी तो कठोर और गैरजमानती धाराओं के बावजूद, एंडरसन के गेस्ट हाउस में जज को बुलवाकर जमानत दिलवाई गयी और मुख्यमंत्री कार्यालय के विशेष विमान से दिल्ली भेज दिया गया। आगे एंडरसन की ‘दिल्ली से अमेरिका टू दिल्ली’ की सुखद यात्रा से दुनिया भली-भाँति परिचित है।
भोपाल गैस काण्ड के तीन दशक पूर्ण हो जाने के बाद भी लोगों को इन्साफ नहीं मिल पाया है। मुख्य आरोपी वारेन एंडरसन बुढापे की मौत मर गया। भोपाल के उन प्रभावित इलाकों में पीड़ितों की अबोध तीसरी पीढी अब भी उस रसायन का प्रकोप झेल रही है। कौन था इसका जिम्मेदार?
आज इतने बरसों बाद देश फिर से पूछ रहा है कि उनके भारतरत्न प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने देश को धोखे में रखकर एंडरसन को क्यों भगाया?
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