जानिए, क्या है ब्रह्मास्त्र और इसकी वास्तिवकता।
भारतीय संस्कृति की विशालता और वैज्ञानिकता इतनी विशाल है कि इतिहास भी जब भी-कभी अपने को दोहरता है तो भारतीय विज्ञान औऱ संस्कृति पर ही अटकता है। चाहें वह 1945 का पहला परमाणु परिक्षण क्यों ना हो, या फिर आंइस्टीन की 100 साल पुरानी गुरूत्वाकर्षण की थ्योरी जो आज सच साबित हुई है।
आज हम बात कर रहे हैं पौराणिक वर्णित शस्त्र ब्रह्मास्त्र की जो इतना शक्तिशाली था कि देवता और मनुष्य सभी उससे कापंते थे। माना जाता है कि उस शस्त्र इतनी उर्जा निकलती थी कि वह धरती को पल में भस्म कर सकती थी।
वह विनाश कितना भयावह था इसका अनुमान महाभारत के निम्न स्पष्ट वर्णन से लगाया जा सकता हैः-
“अत्यन्त शक्तिशाली विमान से एक शक्ति – युक्त अस्त्र प्रक्षेपित किया गया…धुएँ के साथ अत्यन्त चमकदार ज्वाला, जिस की चमक दस हजार सूर्यों के चमक के बराबर थी, का अत्यन्त भव्य स्तम्भ उठा…वह वज्र के समान अज्ञात अस्त्र साक्षात् मृत्यु का भीमकाय दूत था जिसने वृष्ण और अंधक के समस्त वंश को भस्म करके राख बना दिया…उनके शव इस प्रकार से जल गए थे कि पहचानने योग्य नहीं थे. उनके बाल और नाखून अलग होकर गिर गए थे…बिना किसी प्रत्यक्ष कारण के बर्तन टूट गए थे और पक्षी सफेद पड़ चुके थे…कुछ ही घण्टों में समस्त खाद्य पदार्थ संक्रमित होकर विषैले हो गए…उस अग्नि से बचने के लिए योद्धाओं ने स्वयं को अपने अस्त्र-शस्त्रों सहित जलधाराओं में डुबा लिया…”
प्राचीन भारत में परमाणु विस्फोट के अन्य और भी अनेक साक्ष्य मिलते हैं। राजस्थान में जोधपुर से पश्चिम दिशा में लगभग दस मील की दूरी पर तीन वर्गमील का एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ पर रेडियोएक्टिव राख की मोटी सतह पाई जाती है, वैज्ञानिकों ने उसके पास एक प्राचीन नगर को खोद निकाला है जिसके समस्त भवन और लगभग पाँच लाख निवासी आज से लगभग 8,000 से 12,000 साल पूर्व किसी विस्फोट के कारण नष्ट हो गए थे।
क्या है ब्रह्मास्त्र ?
ब्रह्मास्त्र का अर्थ होता है ब्रह्म (ईश्वर) का अस्त्र। ब्रह्मास्त्र एक दिव्यास्त्र है जो परमपिता ब्रह्मा का सबसे मुख्य अस्त्र माना जाता है। एक बार इसके चलने पर विपक्षि प्रतिद्वन्दि के साथ साथ विश्व के बहुत बड़े भाग का विनाश हो जाता है। इस शस्त्र को शास्त्रों में सबसे विनाशक शस्त्र का दर्जा प्राप्त है, रामायण औऱ महाभारत काल में इस शस्त्र का वर्णन मिलता है जिसमें हमें इसकी मारक क्षमता का पता चलता है।
शास्त्रों में कहा जाता है कि यदि दो ब्रह्मास्त्र आपस में टकराते हैं तो तब समझना चाहिए कि प्रलय ही होने वाली है। इससे समस्त पृथ्वी का विनाश हो जाएगा और इस प्रकार एक अन्य भूमण्डल और समस्त जीवधारियों की रचना करनी पड़ेगी।
रामायण और महाभारत में भी परमाणु बम का प्रमाण
हो सकता है कि दुनिया का पहला परमाणु बम महाभारत के युद्ध में चला हो। आधुनिक काल में जे. रॉबर्ट ओपनहाइमर ने गीता और महाभारत का गहन अध्ययन किया। उन्होंने महाभारत में बताए गए ब्रह्मास्त्र की संहारक क्षमता पर शोध किया और अपने मिशन को नाम दिया ट्रिनिटी (त्रिदेव)। रॉबर्ट के नेतृत्व में 1939 से 1945 का बीच वैज्ञानिकों की एक टीम ने यह कार्य किया। 16 जुलाई 1945 को इसका पहला परीक्षण किया गया।
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एक शोधकार्य से विदेशी वैज्ञानिकों को पला चला कि वास्तव में महाभारत में परमाणु बम का उपयोग हुआ था। पुणे के डॉक्टर व लेखक पद्माकर विष्णु वर्तक ने अपने शोधकार्य के आधार पर कहा था कि महाभारत के समय जो ब्रह्मास्त्र इस्तेमाल किया गया था वह परमाणु बम के समान ही था। डॉ. वर्तक ने 1969-70 में एक किताब लिखी ‘स्वयंभू’। इसमें इसका उल्लेख मिलता है।
प्राचीन भारत में कहीं-कहीं ब्रह्मास्त्र के प्रयोग किए जाने का वर्णन मिलता है। रामायण में भी मेघनाद से युद्ध हेतु लक्ष्मण ने जब ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करना चाहा तब श्रीराम ने उन्हें यह कहकर रोक दिया कि अभी इसका प्रयोग उचित नहीं, क्योंकि इससे पूरी लंका साफ हो जाएगी।
ब्रह्मास्त्र के प्रकार
ब्रह्मास्त्र कई प्रकार के होते थे। छोटे-बड़े और व्यापक रूप से संहारक। इच्छित, रासायनिक, दिव्य तथा मांत्रिक-अस्त्र आदि। माना जाता है कि दो ब्रह्मास्त्रों के आपस में टकराने से प्रलय की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इससे समस्त पृथ्वी के समाप्त होने का भय रहता है। महाभारत में सौप्तिक पर्व के अध्याय 13 से 15 तक ब्रह्मास्त्र के परिणाम दिए गए हैं।
वेद-पुराणों आदि में वर्णन मिलता है जगतपिता भगवान ब्रह्मा ने दैत्यों के नाश हेतु ब्रह्मास्त्र की उत्पति की। ब्रह्मास्त्र का अर्थ होता है ब्रह्म (ईश्वर) का अस्त्र। प्राचीनकाल में शस्त्रों से ज्यादा संहारक होते थे अस्त्र। शस्त्र तो धातुओं से निर्मित होते थे लेकिन अस्त्र को निर्मित करने की विद्या अलग ही थी।
प्रारंभ में ब्रह्मास्त्र देवी और देवताओं के पास ही हुआ करता था। प्रत्येक देवी-देवताओं के पास उनकी विशेषता अनुसार अस्त्र होता था। देवताओं ने सबसे पहले गंधर्वों को इस अस्त्र को प्रदान किया। बाद में यह इंसानों ने हासिल किया।
ब्रह्मास्त्र प्रचीन भारत का सबसे शक्तिशाली अस्त्र था जो बहुत दुर्लभ और बहुत कम ही लोगों के पास था। माना जाता है कि ब्रह्मास्त्र सिर्फ उन्हीं लोगों को दिया जाता था जो कटोर तप करके भगवान को खुश करते थे, और भगवान उन्हें खुश होकर यह शस्त्र दिया करते थे। शास्त्र बताते हैं कि जब भी इसका या इसके समान दूसरे किसी भी अस्त्र-शस्त्र का प्रयोग हुआ है हमेशा पृथ्वी औऱ अनेक लोकों में जीवन का नाश हुआ है।
ब्रह्मास्त्र का ज्ञान हमारे ही ग्रंथों में आदिकाल से छिपा हुआ है और विड़बना देखिए हम उन्हीं शास्त्रों को मिथिक मानकर रख देते हैं, औऱ इंतजार करते हैं कि कोई पश्चिमी वैज्ञानिक जब कुछ बतायेगा वही सही होगा, भले वही क्यों ना शस्त्रों से सीखी हुआ हो।
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