Vidarbha : सूखे की मार में कैसे ‘मोती’ बना तारणहार
नागपुर : समाचार माध्यमों में हाल के दौर में महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र की चर्चा आमतौर पर किसानों पर व्याप्त संकट के संदर्भ में ही ज्यादातर होता रहा है। इसी विदर्भ इलाके में नागपुर के एक किसान संजय गंडाते ने अपने अभिनव पहल से खेती किसानी को एक बार फिर न केवल चर्चा में ला दिया है बल्कि संकट ग्रस्त किसानों के लिए एक प्रेरणा भी दी है।
संजय गंडाते की खेतिहर ज़िन्दगी आम भारतीय किसानों की तरह बारिश की कृपा दृष्टि पर ही निर्भर थी। पिछले कुछ सालों से अपने तीन एकड़ खेत में धान की खेती कर रहे संजय के लिए अपने छह सदस्यीय परिवार के भरन पोषण का खर्च निकालना भी मुश्किल था। इफको लाइव से बातचीत में संजय बताते हैं “पारंपरिक तौर पर मेरा परिवार धान की खेती करता था। लेकिन मुश्किल से गुजारा चल पाता था। साल भर में महज़ 24-25 हज़ार रूपए की आमदनी थी। वो भी निश्चित नहीं था”। ज़ाहिर है इतनी कम और अनिश्चित आमदनी में परिवार एक तरह से आर्थिक विपन्नता का ही शिकार था।
लेकिन संजय ने हिम्मत नहीं हारी। पारंपरिक किसानी से अलग हटकर संजय ने मिरर राइटिंग का काम शुरू किया लेकिन वहां भी निराशा ही हाथ लगी। लेकिन धून के पक्के संजय कुछ अलग करने की ठान चुके थे। बड़े बुर्जुगों से सीप में मोती बनने की कहानी संजय ने भी अपने बचपन में सुना था। संजय के मन में ये बात आई कि क्यों न सीप से मोती निकाला जाए। बस फिर क्या था, निकल पड़े एक अनजान सफर पर जिसका न तो रास्ता पता था और न ही मंजिल। संजय गंडाते कहते हैं, ‘पहले मैंने यहीं गढ़चिरौली स्थित कृषि विज्ञान केंद्र में एक विशेषज्ञ से जाकर पूछा। उन्होंने ही रास्ता भी दिखाया और तकनीकी जानकारी भी उपलब्ध कराई। उनके ही दिशा निर्देशन में मैंने ये काम शुरू किया।‘ गंडाते बताते हैं भारत में आज भी खेती कई पैमानों पर निर्भर करती है जो किसी के भी नियंत्रण से बाहर है इसलिए अपने परिवार का पेट पालने और कुछ नया करने के मकसद से मैंने ये प्रयोग किया जिसके लिए जरूरी सारे संसाधन आसानी से उपलब्ध थे। उसने इलाके में मौजुद कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों से आधारभूत प्रशिक्षण पाकर और उनके दिशा निर्देशन में कृत्रिम मोती का उत्पादन शुरू किया।
संजय जिस गांव में रहते हैं, बेनगंगा नदी उसके बगल से होकर गुजरती है। वो इनके लिए बड़ी मददगार साबित हुईं। 31 वर्षीय संजय गंडाते ने 900 स्कावयर मीटर के एक ताजे पानी के पोखरे में कृत्रिम मोती पैदा कर इलाके के किसानों के लिए मिसाल कायम की है।
वेनगंगा से घोंघा पकड़ कर अगले अठ्ठारह महीनों तक उपयुक्त वातावरण में तब तक रखा जाता है जब तक की मोती आकार न ग्रहण कर ले। वो कहते हैं कि उपयुक्त परिस्थितियों में मोती के स्वरूप ग्रहण करने में तुलनात्मक रूप से कम वक्त लगता है। प्राकृतिक मोती प्रकृति प्रदत्त होते हैं, जो संयोग की बात है। दूसरी तरफ संवर्धित मोती मानव निर्मित होते हैं जो प्राप्तकर्ता सीप / सीपियों के आंतरिक अंगों में मेंटल ग्राफ्ट और उचित नाभिक की शल्य कार्यान्वयन से बनते हैं।
गंडाते कहते हैं , “हमने इसकी खेती ताजे पानी के एक छोटे से तालाब में शुरू किया है और हमारी ये कोशिश है कि खेती से जुड़े अपने आय को हम इसके जरिए बढ़ा सकें। अब तक का हमारा अनुभव बड़ा उत्साहवर्धक रहा है।” वो आगे बताते हैं कि इसमें उनको सफलता मिलने के बाद अब वो अन्य किसानों के लिए कृत्रिम मोती संवर्धन के लिए कार्यशाला का आयोजन कर रहे हैं।
कभी 24-25 हजार रूपये की आय के लिए धान खेत में हाड़ तोड़ मेहनत करने वाले संजय गंडाते की आज सलाना आय 10 लाख रूपये से उपर हो चुकी है। स्थानीय स्तर पर एक मोती की कीमत उन्हें एक हज़ार रूपये से अधिक आसानी से मिल जाती है। हालांकि संजय के पास देशी-विदेशी 15 से अधिक कंपनियों के ऑफर हैं जो उन्हें उनकी मोती के लिए अग्रिम पैसे देने को तैयार बैठे हैं लेकिन संजय उन कंपनियों के ऑफर में ये सोचकर दिलचस्पी नहीं रखते कि उन्हें लगता है कि वो इसको स्वीकार कर उनकी गुलामी में आ जाएंगे।
बहरहाल संजय की आय ठीक ठाक हो चुकी है। लेकिन संजय के लिए पारंपरिक खेती छोड़कर ये प्रयोग करना इतना भी आसान नहीं रहा। संसाधन की कमी तो उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती थी ही। शुरुआती दौर में तो मोती पाने के प्रयोग में इन्हें कई असफलताओं का भी सामना इन्हें करना पड़ा।
संजय ने शुरूआती दौर में सबसे पहले सीपियों को पकड़कर पकड़कर घर के ही बर्तनों, मटकों आदि में रखना शुरू किया था। लेकिन संजय बताते हैं कि कुछ दिन के बाद ही सीपी मर जाती थीं। फिर संजय ने घर के ही आस पास छोटे छोटे गड्डे बनाकर उसमें पानी डालकर सीपियां रखीं। परिणाम उत्साहवर्धक रहे। तब जाकर संजय ने गांव में ही भाड़े पर तालाब लिया और सीपियों को उस तालाब के खुले वातावरण में डालकर मनमाफिक परिणाम हासिल किया। हालांकि उनके इस प्रयास में उन्हें कई बार आस पास के असमाजिक तत्वों ने भी परेशान किया।
बहरहाल संजय को अपनी पहल के सकारात्मक परिणाम तो मिले हैं लेकिन संजय के लिए मुश्किलें अब भी कम नहीं हुई हैं। इफको लाइव ने संजय से बातचीत में उनसे जब आगे की योजना के बारे में पूछा तो सबसे उन्होंने कहा कि सबसे पहली जरूरत उनके लिए एक तालाब की है। फिलहाल वो भाड़े के तालाब से अपना काम चला रहे हैं। उसके बाद ही संजय मोतियों के कृत्रिम संवर्धन को बड़े पैमाने पर शुरू कर सकते हैं या और लोगों को भी इस पेशे से जोड़ने के लिए रास्ता बनाने की योजना पर चल सकते हैं। हालांकि संजय गंडाते अपने इस पहल पर सरकार की ओर से किसी तरह की मदद नहीं मिलने की शिकायत जरूर करते हैं।
संजय गंडाते ने 2011 में आस पास से 500 सीपियां चुनकर अपने इस सफर का आगाज़ किया था। आज संजय सीपियों की तीन तरह की प्रजातियों से और उन सीपियों के अंदर 11 प्रकार के पदार्थ से वाकिफ हो चुके हैं। संजय बताते हैं कि इन सीपियों की मदद से सिर्फ मोती ही नहीं बल्कि वो मनमाफिक मूर्तियां भी बनाने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। उनका सपना है कि वो देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की मूर्तियां इन सीपियों की मदद से बनाएंगे और उन्हें भेंट करेंगे।
ज़ाहिर है संजय का अब तक का सफर कम मजेदार नहीं रहा। खासतौर पर महाराष्ट्र में जहां किसानों की आत्महत्या एक बड़ा मुद्दा है वहां के इस किसान ने अपनी पहल और ज़ोखिम उठाने के साहस से दुसरों को भी रास्ता दिखाया है।
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