नेहरू ऐसा नहीं करते तो अंबेडकर हिन्दू धर्म नहीं छोड़ते !
नंद कुमार ने ईनाडु इंडिया से विशेष बातचीत में कहा कि 1948 तक देशभर में संघ का विस्तार बेहद तेज गति से हुआ था। यही नहीं 1950 के मध्य तक संघ दुनिया का सबसे बड़ा स्वंयसेवी संगठन बन जाता। इस विस्तार में दलितों के साथ-साथ हिन्दू समाज का हर वर्ग संघ के साथ जुड़ रहा था। नंदकुमार के मुताबिक उन्हीं दिनों में संघ ने हिन्दू समाज में व्याप्त भेदभाव को खत्म करने का अभियान शुरु ही किया था कि तत्कालीन नेहरू सरकार ने संघ पर गांधी हत्या के बाद बैन लगा दिया था।
संघ प्रतिबंधित न होता तो अंबेडकर नहीं करते धर्मपरिवर्तन
नंद कुमार के मुताबिक संघ परिवार ने 1964 में उडुपी में प्रस्ताव पास कर कहा था कि हिंदू समाज में कोई पतित नहीं है और सभी समान हैं। नंद कुमार ने दावा किया कि संघ बैन नहीं होता तो यह 1950 के मध्य तक ही इस प्रस्ताव को पास कर काम शुरु कर दिया जाता।
नंद कुमार ने कहाकि अंबेडकर ने सबसे पहले 1935 में हिन्दु धर्म छोड़ने की बात कही थी और करीब 20 साल के इंतजार के बाद अपने आखिरी वक्त में बौद्ध धर्म अपनाया था। संघ नेता के मुताबिक अगर संघ को बैन नहीं किया गया होता तो अंबेडकर भी धर्म परिवर्तन नहीं करते।
‘हिन्दु विरोधी नहीं थे अंबेडकर’
जे नंद कुमार के मुताबिक कुछ लोग अंबेडकर को हिन्दू विरोधी बताने का षडयंत्र कर रहे हैं, हम अब उनकी साजिश का पर्दाफाश करने के लिए पूरी ताकत से लोगों को बताएंगे कि अंबेडकर कौन थे, उनकी क्या सोच थी। उन्होंने कहा कि अंबेडकर कभी हिन्दू रोधी नहीं थे बल्कि वह हिन्दू धर्म में जो बुराइयां थी उसके विरोधी थे।
नंदकुमार ने कहा कि हिंदु मत में जो बुराइयां हैं संघ भी उसके खिलाफ है। हमने अपने नागौर में हुई प्रतिनिधि मंडल सभा में भी इस पर बात की। हम लोगों को यह भी बताएंगे कि अंबेडकर को सिर्फ दलित के तौर पर ना देखें वह बहुत बड़े इकॉनमिनस्ट थे, भाषाविद् थे। नंद कुमार के मुताबिक संघ आज से भेदभाव और छुआ-छूत के खिलाफ काम नहीं कर रहा है।
उन्होंने कहा कि 1964 के बाद संघ ने 2014 में दोबारा से समरसता को बढ़ावा देने का काम किया है। इसी साल संघ प्रमुख मोहन भागवत ने 'एक मंदिर, एक कुंआ, एक शमशान' का नारा दिया था।
मुनस्मृति नहीं है हिन्दुत्व का आधार
संघ नेता नंद कुमार के मुताबिक हिन्दू मनुस्मृति को नहीं मानता। उन्होंने कहा कि कुछ लोग इसे साजिश के तहत चर्चा में ला रहे हैं ताकि हिंदुओं को बांटा जा सके। उन्होंने कहा कि लोगों को ऐसी साजिश को समझना होगा। संघ प्रचारक ने कहा कि हम मनुस्मृति को नहीं अंबेडकर स्मृति को मानते हैं। अंबेडकर ने हमारा संविधान लिखा है।
हम संविधान को मानते हैं। नंद कुमार ने कहा कि हिन्दू धर्म में स्मृतियों की कोई धार्मिक और सामाजिक उपयोगिता नहीं है। नंद कुमार के मुताबिक इतिहास में सैकड़ों स्मृतियां हैं, लेकिन सिर्फ मनुस्मृति को महत्व वही लोग दे रहे हैं जो हिन्दू धर्म में लोगों को बांटना चाहते हैं। नंद कुमार के मुताबिक मनुस्मृति बहस का हिस्सा तब बनी जब अंग्रेजों ने इसे सरकारी छापेखाने में छापा। नंद कुमार के मुताबिक अंग्रेजों की बांटों और राज करो नीति के तहत की मनुस्मृति को छापा गया था।
No comments:
Post a Comment