डॉ. प्रवीण तिवारी
समझौता ब्लास्ट में एनआईए पर राजनैतिक दबाव की छाप साफ देखने को मिल रही है. ब्लास्ट किसने और कैसे किए से ज्यादा जोर इस बात पर दिखाई पड़ रहा था कि ये ब्लास्ट अभिनव भारत से जुड़े लोगों ने किए हैं. असीमानंद और प्रज्ञा दो ऐसे चेहरे थे जो भगवा पहनते भी थे. इनका इस्तेमाल आरएसएस और वीएचपी तक पहुंचने के लिए किया जा रहा था. सुशील कुमार शिंदे, पी. चिदंबरम, दिग्विजय सिंह जैसे तमाम कांग्रेसी नेताओं की बातें इस ओर इशारा कर रही थीं कि हिंदू आतंकवाद या भगवा आतंकवाद के जुमले को किसी तरह लोगों की जुबान पर चढ़ा दिया जाए.
एटीएस और एनआईए सभी की जांच का आधार इकबालिया बयान और एक बाइक दिखाई पड़ती है. एनआईए की जांच इस बात पर टिकी रही कि सिम कार्ड एक ही दुकान से खरीदे गए, एक जैसे एक्सप्लोसिव का इस्तेमाल किया गया. कई गवाहों के इकबालिया बयानों के आधार पर ये कहानी बुनी गई जो इस ओर इशारा कर रही थीं कि कैसे असीमानंद और कर्नल पुरोहित के मन में आतंकवादी घटनाओं में हिंदुओं के मारे जाने का गुस्सा था. ये बातें किसी मीटिंग में कहना भी एक आधार बनाया गया. गवाहों ने ये कहा कि उनके सामने इस तरह की बातें कही गईं. गवाहों के जो अधिकारिक बयान सामने आए उसमें उन्होंने तमाम मीटिंग्स में मौजूद रहने की बात भी कही, लेकिन अब ये गवाह इस जांच की सच्चाई बयान कर रहे हैं.
इस पूरी जांच में गवाहों के मुकरने के बाद नया मोड़ आ गया है. कैप्टन नितिन जोशी जो कि इस मामले के अहम गवाह है उन्होंने जांच पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं. नितिन जोशी के मुताबिक उनके साथ मारपीट की गई. उनके परिवार और उन्हें झूठे मामलों में फंसाने की साजिश रची गई. उन पर दबाव बनाया गया कि वो अपने बयान में ये कहें कि उन्होने कर्नल पुरोहित के पास आरडीएक्स देखा था. साथ ही बम का बदला बम से लेने की बात कही थी.
दबाव में नितिन जोशी ने ये बयान दिया भी. जब नितिन जोशी पर सवाल खड़े किए गए कि आखिर वो अब तक इस मसले पर चुप क्यूं रहे तो उन्होंने बताया कि वो पहले भी 2010 में मानवाधिकार आयोग में इस बारे में शिकायत कर चुके हैं. वो बेहद डरे हुए थे. इसीलिए इस मामले में कुछ भी कह नहीं पा रहे थे. नितिन ऐसे अकेले गवाह नहीं हैं जो जबरदस्ती बयान दिलवाए जाने की बात कह रहे हैं. इस मामले के अब तक 19 गवाह इसी तरह की बात कह चुके हैं. एक बात बहुत साफ है कि जांच एजेंसियां भगवा आतंकवाद की एक स्क्रिप्ट लिखने में जुटी हुई थीं. ये राजनीति का एक ऐसा घिनौना स्तर है जो इस ओर इशारा करता है कि हमारे देश में मतदाताओं की मानसिकता को लेकर राजनैतिक दल क्या सोचते हैं.
सवाल ये भी उठ रहा है कि अब गवाह खुद को सुरक्षित कैसे महसूस कर रहे हैं या एनआईए पर वर्तमान सरकार का भी तो दबाव हो सकता है? ये सवाल उठना लाजिमी है लेकिन ये भी गौर करने वाली बात है कि इसी सरकार को रोकने के लिए ये पूरी कहानी बुनी जा रही थी.
शरद कुमार अमेरिका से वापिस आते ही कह चुके हैं कि कर्नल पुरोहित के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिले हैं. ये बात अपने आप में कई गहरे सवाल खड़े करती है. आर्मी के एक सर्विंग ऑफिसर को गिरफ्तार किया गया और उसे यातनाएं तक दी गईं. उनके इकबालिया बयान को भगवा आतंकवाद का आधार बनाया गया और अब जांच एजेंसी कह रही है कि उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं मिले हैं.
ये बात सही है कि असीमानंद और साध्वी प्रज्ञा जैसे चेहरों का उग्र हिंदुत्व से कुछ जुड़ाव दिखता है लेकिन ये भी सच है कि इस उग्र हिंदुत्व को पहले भगवा आतंकवाद का जामा पहनाया गया और फिर इन चेहरों को आरएसएस और विश्व हिंदू परिषद से जोड़ने की कोशिश की गई. इस कोशिश में जांच एजेंसियां उस वक्त भी नाकाम रही लेकिन जांच का ये तरीका इन संगठनों को आतंकी संगठन बताने की कोशिश को बेनकाब कर रहा है.
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