आनंद कुमार
एक आम शिकायत होती है कि नए लेखको की कहानियां अक्सर लोग नहीं पढ़ते. अगर शुद्ध साहित्य के नारी विमर्श, दलित चिंतन जैसे मुद्दों को छोड़ दें तो पढ़े जाने की संभावना और कम हो जाती है. ऐसे में K. Ajay Kumar की “Tiger in the office” कम ही लोगों ने पढ़ी होगी. ये कहानी बताती है कि पूंजीवादी व्यवस्था काम कैसे करती है. चलिए आज इसी कहानी को समझने की कोशिश करते हैं.
तो जनाब जंगल कट रहे हैं, पेड़ों वाले जंगल की जगह कॉन्क्रीट वाले जंगल खड़े हो गए हैं. जाहिर है ऐसे में जानवरों को जगह कम पड़ने लगेगी. ऐसी ही कमी से परेशान एक बेचारा बाघ एक दिन एक बड़े शहर में आ फंसा ! अपने गुडगाँव, माफ़ कीजिये, गुरुग्राम जैसी किसी जगह में ! अजीब से जगह पे पहुँच के बेचारा पहले से ही अल्पसंख्यक हो चुका बाघ बड़ा घबराया.
भाग के वो बड़ी बिल्डिंग में घुसा और एक अँधेरे कोने में दुबक के जा बैठा. पूरे दिन बाघ घबराया रहा. उस इलाके में कई इंसान आते थे. डरा सहमा बाघ जहाँ घुसा था वो एक बड़ा कॉर्पोरेट ऑफिस था, और बाघ वाश-रूम में छुपा था. डरे सहमे बाघ ने ना गुर्राने की कोशिश की ना ही अपने अँधेरे कोने से बाहर आया. किसी ने बाघ को नहीं देखा. मगर चार दिन जब बीत चले तो बाघ बहादुर की भूख भी नाकाबिले बर्दाश्त हो गई !
जब उस से भूख बर्दाश्त नहीं हुई तो उसने बाथरूम में आये एक सूट-बूट वाले को दबोचा और फ़ौरन उसे खा गया ! अब उसने जिसे खाया था वो कंपनी का कोई ए.जी.एम. था ! मगर आप तो जानते ही हैं की असिस्टेंट जनरल मेनेजर का गायब होना किसी को खलता नहीं. तो ए.जी.एम. साहब के गायब हो जाने पर भी किसी ने गौर नहीं किया. दो दिन और बीते तो बाघ की भूख फिर बढ़ने लगी.
अगली बार उसने फिर एक सूट-बूट वाले को दबोचा और उसे भी चट कर गया ! इस बार उसने कंपनी के जी.एम. को ही खा लिया था ! मगर आप तो जानते हैं कि जनरल मेनेजर किए गायब होने से किसी को तकलीफ़ नहीं होती. बल्कि बाघ वाले बाथरूम में कुछ लोग उसके ना दिखने पर खुश होते भी सुनाई देते थे ! अच्छा हुआ सर खाने नहीं आता, जैसी बातें होती थी. अब तो बाघ की हिम्मत बढ़ गई.
अगले दिन जब दोपहर बीती और उसे भूख फिर से लगने लगी तो उसने हर बार की तरह इंतज़ार करने, बर्दाश्त करने की बजाये अगले ही आने वाले को दबोचने की सोची ! उसने अगले ही दिन सेल्स के एक वाईस प्रेसिडेंट को खा डाला. अब ये सेल्स वि.पी. भी कोई लोगों का प्रिय नहीं था. उसके गायब होने पर तो बाकायदा लोगों ने खुशियाँ मनाई. कहते रहे बहुत चीखता चिल्लाता था कमबख्त. अच्छा हुआ जो गायब हो गया.
मगर हाय री किस्मत ! अगली बार जब मनचले हो चुके बाघ को भूख लगी तो कोई सूट-बूट वाला उसके बाथरूम में नहीं घुसा. एक निरीह सा बिहारी टाइप कोई वर्दी में था. हैरान परेशान एक हाथ में चाय के ट्रे में कप संभाले आया था. जैसे ही वो चाय की ट्रे बेसिन पर रखकर मुड़ा, की मारा अल्पसंख्यक बाघ ने झपट्टा ! उसे भी पूरा का पूरा निगल गया और जा बैठा अपने कोने में.
पंद्रह मिनट भी नहीं बीते की पूरे कॉर्पोरेट ऑफिस में हड़कंप मच गया ! मेरी चाय नहीं आई ! मेरी फाइल कहाँ है का शोर जारी हुआ. लोग बेचारे निरीह बिहारी चपरासी को ढूँढने में जुट गए. आखरी बार पैंट्री से चाय लेकर निकलता देखा गया था ये भी पता चल गया. किसी ने बाथरूम में झाँक कर देखा तो चाय की ट्रे भी पड़ी नज़र आई और चपरासी का एक जूता भी दिख गया ! फ़ौरन पुलिस बुलवा ली गई, अल्पसंख्यक बाघ धर दबोचा गया !
इस तरह एक काम के आदमी को खा जाने के कारण बाघ मारा गया. आपके ना होने से किसी इंसान के कितने काम रुकते हैं वो उसके जीवन में आपकी उपयोगिता है.
तो मूलतः आपके बड़े नाम या पद की वजह से नहीं उनके जीवन में आपकी क्या उपयोगिता है इस वजह से आपको लोग ढूंढते हैं. इस कहानी को बड़े तौर पर अपने जीवन में देखना हो तो थोड़े ही साल पहले की किंगफ़िशर एयरलाइन याद कीजियेगा. 2007-09 के दौर में इस कंपनी के कर्मचारी एअरपोर्ट पर पाए जाने वाले सबसे नकचढ़े स्टाफ होते थे. जब किंगफ़िशर ने डेक्कन एयरलाइन्स को ख़रीदा तो उसे किंगफ़िशर रेड नाम दिया था. किंगफ़िशर रेड के कर्मचारियों को किंगफ़िशर के कर्मचारियों की तुलना में आधी के लगभग तनख्वाह मिलती थी. जो सलूक उनके साथ किंगफ़िशर के पुराने कर्मचारी करते थे वो लगभग अछूतों सा व्यवहार था.
आज जो किंगफ़िशर के ख़त्म होने पर हजारों नौकरियां जा चुकी हैं, उसपर कोई शोर भी नहीं मचता, ये बिलकुल वही बाघ के वि.पी. को खा जाने जैसा मामला है. उपयोगिता उतनी नहीं थी आपकी कि आपको याद किया जाए.
इसी चीज़ को घर में देखना हो तो गर्मी की छुट्टियाँ आ रही हैं. बीवी के मायके जाने में देख लीजियेगा. धोबी, बिजली, फ़ोन के बिल से लेकर मोज़े-रुमाल कहाँ रखे हैं, ये जो कई लोग नहीं कर पाते, उसमें भी दिख जायेगा.
ये एक मुख्य वजह है कि हम लोगों को अपना हरेक काम खुद करने की सलाह देते हैं. पुरुषों को इसलिए क्योंकि घर में भी उनकी कोई उपयोगिता तो बनी रहे. ऐसा ना हो कि 30-35 साल की छूटी आदत की वजह से आपकी उपयोगिता घर में अचानक रिटायर करते ही एक दिन शून्य हो जाए. महिलाओं के लिए इसलिए क्योंकि शादी करते ही कोई नयी जगह सिर्फ कानूनी तौर पे आपकी होती है. हर कर्तव्य आप पर निर्भर हो तभी अधिकार सारे आपके हाथ आते हैं.
बाकी अपनी उपयोगिता बनाना और बनाये रखना तो व्यक्तिगत फैसला है. किसी काम के रहना है या नहीं, थोड़े साल बाद किसी चीज़ के लिए उनसे सलाह ली जाएगी या नहीं, ये तो पुरुष को खुद ही सोचना होगा. फिर उनके बगैर घर का एक पत्ता भी ना हिल पाए, पति महोदय दो कदम चल पायें या नहीं अकेले ये भी तो हर महिला को खुद ही तय करना होता है.
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