मध्य प्रदेश के मुरैना से लगभग पचीस किलोमीटर दूर चम्बल के बीहड़ों में एक जगह पड़ती है "बटेश्वर".. वहां आठवीं से दसवीं शताब्दी के बीच गुर्जारा-प्रतिहारा वंशों द्वारा करीब एक ही जगह पर दो सौ मंदिरों का निर्माण किया गया था.. भगवान् शिव और विष्णु को समर्पित ये मंदिर खजुराहो से भी तीन सौ वर्ष पूर्व बने थे.. चम्बल में डाकुवों के आतंक के कारण ये और भी उपेक्षित रहे और लगभग सारे के सारे गिर चुके थे
भारतीय पुरातत्व विभाग के डायरेक्टर "के के मुहम्मद" ने इन मंदिरों को पुनर्स्थापित करने कि सौगंध ली.. उस समय उस क्षेत्र में "निर्भय सिंह गुर्जर" का आतंक था.. के के मुहम्मद ने ये काम अपनी ज़िम्मेदारी पर शुरू किया क्यूंकि ज़मीन में मिल चुके मंदिरों को पूरी तरह से उसी स्वरुप में दुबारा लाने का काम उनके जैसा अनुभवी विशेषग्य ही कर सकता था..
के के मुहम्मद बताते हैं कि जब पुनर्निर्माण का कार्य चल ही रहा था तो पहाड़ी के ऊपर के एक मंदिर में एक व्यक्ति उन्हें मिला जो बैठा बीड़ी पी रहा था.. के के साहब को गुस्सा आया और उन्होंने उस से कहा कि "तुमको पता है कि ये मंदिर है.. और तुम यहाँ बैठ के बीड़ी पी रहे हो?".. वो आगे बढे उसे वहां से निकालने के लिए तभी उनके एक अधिकारी ने पीछे से आके उनको पकड़ लिया और बीड़ी पीने वाले व्यक्ति की तरफ इशारा करके बोला "अरे आप इन सर को नहीं जानते हैं.. इन्हें पीने दीजिये".. के के मुहम्मद समझ गए कि ये निर्भय सिंह गुर्जर है.. और कहते हैं कि "मैं उसके चरणों में बैठ गया और उसे समझाने लगा कि एक समय था कि आपके ही वंश के लोगों ने इन मंदिरों को बनाया था.. और अगर आपके ही पूर्वजों की इन अनमोल धरोहर और मूर्तियों को अभी न बचाया गया तो ये समय के साथ गायब हो जायेंगी.. इसलिए क्या आप हमारी मदद नहीं करेंगे इनके पुनर्निर्माण में?".. निर्भय को के के मुहम्मद कि बात समझ आ गयी और उसने अपना पूरा सहयोग दिया उन्हें इन मंदिरों के पुनर्निर्माण में
के के मुहम्मद कि वजह से आज सौ से भी अधिक मंदिर वहां अपने पुराने रूप में लाये जा चुके हैं.. के के मुहम्मद इन मंदिरों को अपना तीर्थ मानते हैं.. और चाहते हैं कि आने वाले समय में इस स्थान को तीर्थ यात्रा के रूप में मान्यता मिले.. भारत के विभिन्न स्थानों पर जाने कितने मंदिरों का जीर्णोद्वार किया है के के मुहम्मद ने अब तक.. उनको मंदिरों और भारतीय मान्यातों का बहुत गूढ़ ज्ञान और श्रद्धा है.. क्यूंकि बिना श्रद्धा के इस तरह का पुनर्निर्माण संभव नहीं होता है
मगर क्या आने वाली पीढ़ी जब इन तीर्थों पर जयकारे लगाएगी तो क्या के के मुहम्मद को भी कभी याद करेगी या बस हमेशा यही याद रखेगी कि बाबर ने ये मंदिर गिराया और गजनवी ने वो?
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