डॉ सुधीर व्यास
1912 में तुर्की-इतालवी तथा बाल्कन युद्धों में, तुर्की के विपक्ष में, ब्रिटेन के योगदान को इस्लामी संस्कृति तथा सर्व इस्लामवाद/इस्लामी उम्मा पर प्रहार समझकर (यही समझाया गया था) भारतीय 'मुसलमान' ब्रिटेन के प्रति उत्तेजित हो उठे, यह विरोध भारत में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध रोषरूप में परिवर्तित हो गया यह भी कहा व लिखा गया है जबकि मूलतः इसका भारत में ब्रिटिश विरोध से कुछ लेना देना ही नहीं था.
भारतीय इतिहास में खिलाफत आन्दोलन का वर्णन तो है किन्तु कहीं विस्तार से नहीं बताया गया कि खिलाफत आन्दोलन वस्तुत: भारत की स्वाधीनता के लिए नहीं अपितु वह एक राष्ट्र विरोधी व हिन्दू विरोधी आन्दोलन था.
भारतीय इतिहास में खिलाफत आन्दोलन का वर्णन तो है किन्तु कहीं विस्तार से नहीं बताया गया कि खिलाफत आन्दोलन वस्तुत: भारत की स्वाधीनता के लिए नहीं अपितु वह एक राष्ट्र विरोधी व हिन्दू विरोधी आन्दोलन था.
खिलाफत आन्दोलन दूर स्थित देश तुर्की के खलीफा को गद्दी से हटाने के विरोध में भारतीय मुसलमानों द्वारा चलाया गया आन्दोलन था, चतुर राजनीतिज्ञ और वस्तुतः अंग्रेज मित्रों द्वारा असहयोग आन्दोलन भी खिलाफत आन्दोलन की सफलता के लिए चलाया गया आन्दोलन ही था.
आज भी अधिकांश भारतीयों को यही पता है कि असहयोग आन्दोलन स्वतंत्रता प्राप्ति हेतु चलाया गया कांग्रेस का प्रथम आन्दोलन था किन्तु सत्य तो यही है कि इस आन्दोलन का कोई भी राष्ट्रीय लक्ष्य नहीं था
काँग्रेस की भारत व हिंदू विरोधी मुख़ालफत का आगाज़
खिलाफत आंदोलन का तात्पर्य या अर्थ ही अधिकांश मित्र नहीं जानते कि यह क्या था या खिलाफत का मतलब ही क्या है वो खिलाफत को खिलाफ का करीबी रिश्तेदार शब्द समझ लेते हैं जबकि खिलाफ होने को उर्दू में ही मुखालफत करना कहते हैं जबकि ” सुन्नी/वहाबी इस्लामी खलीफा साम्राज्य ” को खिलाफत कहा जाता है ..!!
उस्मानी साम्राज्य (1299 – 1923) या ऑटोमन साम्राज्य या तुर्क साम्राज्य, उर्दू में कहें तो सल्तनत-ए-उस्मानिया 1299 में पश्चिमोत्तर अंतालिया / Antalya से स्थापित एक एक तुर्क इस्लामी सुन्नी साम्राज्य था, महमूद द्वितीय द्वारा 1493 में कॉन्सटेंटिनोपोल / Constantinople जीतने के बाद यह एक वृहद इस्लामी साम्राज्य में बदल गया.
उस्मानी साम्राज्य सोलहवीं-सत्रहवीं शताब्दी में अपने चरम शक्ति पर था, अपनी शक्ति के चरमोत्कर्ष के समय यह एशिया, यूरोप तथा उत्तरी अफ्रीकी हिस्सों में फैला हुआ था. यह साम्राज्य पश्चिमी तथा पूर्वी सभ्यताओं के लिए विचारों के आदान प्रदान के लिए एक सेतु की तरह भी था, इस ऑटोमन या उस्मानिया साम्राज्य ने 1453 में कुस्तुनतुनिया / आज के इस्ताम्बूल को जीतकर बैजन्टाईन साम्राज्य का समूल अन्त कर दिया इस्ताम्बुल बाद में इनकी राजधानी बनी रही. एक ऐतिहासिक सत्य यह भी है कि इस्ताम्बूल पर इस खिलाफत की जीत ने यूरोप में पुनर्जागरण को प्रोत्साहित किया था.
चलें पुन: खिलाफत के इतिहास और खिलाफत आंदोलन की ओर चलें, एशिया माईनर में सन 1300 तक सेल्जुकों का पतन हो गया था पश्चिम अंतालिया में अर्तग्रुल एक तुर्क सेनापति व सरदार था. एक समय जब वो एशिया माइनर की तरफ़ कूच कर रहा था तो उसने अपनी चार सौ घुड़सवारों की सेना को भाग्य की कसौटी पर आजमाया उसने हारते हुए पक्ष का साथ दिया और युद्ध जीत लिया.
उन्होंने जिनका साथ दिया वे सेल्जुक थे, सेल्जुक प्रधान ने अर्तग्रुल को उपहार स्वरूप एक छोटा-सा प्रदेश दिया, “अर्तग्रुल के पुत्र उस्मान” ने 1281 में अपने पिता की मृत्यु के पश्चात प्रधान का पद हासिल किया. उसने 1299 में अपने आपको सेल्जुकों से स्वतंत्र घोषित कर दिया. बस यहीं से महान् तुर्क उस्मानी साम्राज्य व इस्लामी खिलाफत की स्थापना हुई. इसके बाद जो साम्राज्य उसने स्थापित किया उसे उसी के नाम पर उस्मानी साम्राज्य कहा जाता है ! (अंग्रेज़ी में ऑटोमन, Ottoman Empire)
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