अब तक भारत की सरकारें और खासकर कांग्रेस पार्टी, फॉरमोसा द्वीप (अब ताइपेई) पर हुए विमान हादसे में सुभाष चंद्र बोस के जीवित बच जाने की बात को मानने से इनकार करती रहीं थी.
अब नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा नेताजी से जुड़े दस्तावेज़ सार्वजनिक किए जाने से कांग्रेस और खासकर नेहरू-गांधी परिवार द्वारा फैलाए गए झूठ का पर्दाफ़ाश हो गया है. सामने आए सबूत साफ तौर पर बताते हैं कि नेताजी 1945 के प्लेन क्रैश में बच गए थे.
नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा सार्वजनिक की गई एक फाइल नं 870/11/p/16/92/Pol नेताजी पर अहम खुलासा करती है. इसमें इस बात का जिक्र है कि जिस प्लेन क्रैश में नेताजी की मौत की बात कांग्रेस द्वारा कही और अपने द्वारा गठित विभिन्न जांच आयोगों से कहलवाई जाती रही है, उसके बाद भी नेताजी ने रेडियो पर देश की जनता को मैसेज जारी किए.सार्वजनिक एक फाइल में नेताजी के तीन रेडियो ब्रॉडकास्ट का जिक्र है. नेताजी के ये रेडियो प्रसारण 18 अगस्त, 1945 के कथित विमान हादसे के काफी बाद हुए थे.
माना जाता है कि बंगाल के गवर्नर हाउस से इन रेडियो प्रसारणों की जानकारी पीएमओ भेजी गई थी. इसमें पीसी कर नाम के एक अफसर का जिक्र है. इस दौरान आरजी कैसी बंगाल के गर्वनर थे.इसमें कहा गया है कि 31 मीटर बैंड पर नेताजी का रेडियो मैसेज जारी किया गया था. ये नोट गवर्नर कैसी के सामने भी पेश किया गया था.
पहला ब्रॉडकास्ट
26 दिसंबर, 1945 को हुआ था जिसमें सुभाष चंद्र बोस ने कहा, मैं दुनिया की महान शक्तियों की शरण में हूं. लेकिन मेरा दिल भारत के लिए रो रहा है. मैं तीसरे विश्व युद्ध के बाद भारत जाऊंगा. हो सकता है इसमें 10 साल या उससे कम लगें. तब मैं उन लोगों के खिलाफ फैसला सुनाउंगा जो लाल किले से मेरे लोगों के खिलाफ केस चला रहे हैं.
दूसरा रेडियो प्रसारण
1 जनवरी, 1946 को हुआ था जिसमें नेताजी कहते हैं, हमें दो साल के अंदर आजादी जरूर मिल जाएगी. ब्रिटेन का साम्राज्यवाद खत्म होगा और देश को आजादी मिलेगी. भारत को अहिंसा से आजादी नहीं मिल सकती, लेकिन मैं गांधी जी की इज्जत करता हूं.
तीसरा सन्देश
फरवरी 1946 को प्रसारित हुआ जिसमें नेताजी कहते हैं, मैं सुभाष चंद्र बोस बोल रहा हूं. जय हिंद. जापान के सरेंडर के बाद मैं तीसरी बार अपने हिंदुस्तानी भाई और बहनों से बात कर रहा हूं. ब्रिटिश पीएम पैथिक लॉरेंस के साथ दो और लोगों को भारत भेज रहे हैं ताकि ये लोग ब्रिटेन के साम्राज्यवाद को बढ़ा सकें और हमारे देश का खून चूसा जा सके.
सार्वजनिक की गई फाइलों में एक पत्र भी है जिसे 22 जुलाई 1946 को गांधी जी के एक सचिव खुर्शीद नौरोजी ने लुई फिशर को लिखा था. इसमें लिखा गया था, दिल से तो भारतीय सेना आजाद हिंद फौज के साथ ह लेकिन अगर बोस रूस की मदद से देश आते हैं तो गांधी, नेहरू या कांग्रेस, देश की जनता को उनके बारे में समझा नहीं पाएगी.
इसके साथ ही एक अन्य फाइल में जिक्र है कि 26 अक्टूबर 1945 को ब्रिटिश कैबिनेट में नेताजी के बारे में चर्चा हुई थी. ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने इस मीटिंग की अध्यक्षता की थी.
इसमें जंग के बाद नेताजी के साथ किए जाने वाले सलूक पर बात हुई थी. मीटिंग में वायसराय लॉर्ड वॉवेल के कैबिनेट को भेज एक नोट पर भी चर्चा हुई थी. इसमें वॉवेल ने लिखा था कि नेताजी को लेकर पॉलिसी फाइनल की जानी चाहिए.
एक फाइल में लॉर्ड माउंटबेटन की डायरी का जिक्र है. माउंटबेटन को ब्रिटेन के मिलिट्री इंटेलिजेंस की एक रिपोर्ट मिली थी. उस वक्त माउंटबेटन साउथ-ईस्ट एशिया में ब्रिटेन के सहयोगी देशों की ज्वाइंट आर्मी के चीफ थे.
इस रिपोर्ट में कहा गया था कि बोस जब बर्मा (अब म्यांमार) छोड़ने जा रहे थे तभी चीन ने एक मैसेज इंटरसेप्ट किया. इसमें जापान की ओर से नेताजी को कहा गया था कि वे अभी बर्मा में ही रहें. लेकिन कुछ दिनों बाद नेताजी बर्मा से थाईलैंड पहुंच गए
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