Saturday, 16 April 2016


डॉ त्रिभुवन सिंह




पहली बात तो ये समझ लिया जाय कि मॅक्समुल्लर ने और उनके पहले के तथाकथित इंडोलॉजिस्ट या फिलोलॉजिस्ट "आर्य " को एक अलग नस्ल (रेस) घोषित करने के पहले, इस शब्द का मतलब क्या निकाला था.
उनके हिसाब से आर्य माने संस्कृत बोलने वाले लोग. आर्य का सही मतलब मैं बाद में बताऊंगा, लेकिन पहले ये समझ लिया जाय कि आर्यों को एक अलग नस्ल सिद्ध करने के पीछे क्या षडयंत्र था. अंग्रेजों को चलिए भारतीय राजनीति में, हिन्दुओं को बांटने के तो राजनैतिक स्वार्थ थे, लेकिन जर्मनों को क्यों रूचि थी? और हिन्दुओं का ‪‎पवित्र‬ स्वस्तिक का चिन्ह क्रिश्चन हिटलर का "लोगो/पहचान" कैसे बना?
अगर आर्य का मतलब संस्कृत बोलने वाले लोंगो से था, तो यूरोप और जर्मनी के लोग आर्य कैसे बने, क्या मात्र पितृ मातृ के फोनेटिक पितर या मतर जैसी संभावित वर्तनी के मिलते जुलते स्वरुप के कारण?
पहले बात इस पर किया जाय कि जर्मन निवासियों की भारतीय संस्कृत के पुस्तको में और संस्कृत भाषा में क्यों रूचि थी?
इसके पहले एक संक्षिप्त टिप्पणी करना चाहूँगा उन religions के बारे में जिनको अब्राह्मिक religions के नाम से जाना जाता है. जिनकी cosmology के अनुसार जिनके प्रथम पूर्वज अब्राहम/इब्राहिम थे. इनमे 3 religions है. Jews, Christians और इस्लाम.
ये mono god (एक गॉड एक अल्लाह ) और उसके messenger यानि उनके पैगम्बर पर आधारित फलसफा है. अंग्रेजी में उनको Monotheism कहते हैं. और उनका दावा है कि उनके भगवान् ही सच्चे भगवान है. और उनका धर्म ही असली धर्म है. बाकी धर्म झूठे हैं.
Jews के messenger Moses या मूसा, Christians के messenger Jesus, और मुसलमानों के पैगम्बर मोहम्मद, जो इनको न माने वो infidel या मुशरिक/काफिर, या Pagan या heathen के नाम से जाने जाते हैं, इनकी धर्म परंपरा में.
उनके साथ क्या व्यवहार करना चाहिये, मैं इस पर बात नहीं करूंगा. लेकिन समयकाल इनकी उत्पत्ति की क्रमशः 4000 साल पूर्व, 2000 साल पूर्व और 1400 साल पूर्व. एक बात और स्पष्ट करना उचित होगा कि ये तीनों भाईवादी Religions एक दूसरे के infidel या काफिर मानते हैं.
समयकाल का वर्णन इसलिए कि आगे आने वाले कमेंट्स में इस समयकाल का काफी महत्व है. मैं इन धर्मो के blasphemy, Evangelical, हेरेटिक और apostatic, और apologetic philosophy पर बात नहीं करना चाहता, क्योकि मेरा उद्देश्य विवाद उत्पन्न करना नहीं है, बल्कि उसे सुलझाना है।
Christianity के प्रोफेट जीसस पैदायशी तौर पर यहूदी थे । उनकी मातृभाषा Hebrew थी. लेकिन उन्होंने जिस धर्म का फैलाव किया उसको उनके शिष्यों ने खास तौर पर संत पॉल ( pl correct if I am wrong) ने उसको Christianity के नाम से प्रचारित किया. लेकिन तथाकथित महान रोमन umpire में प्रचलित और practiced गुलामी या ‪‎slavery‬ प्रथा को ‎बाइबिल‬ में सैद्धान्तिक रूप से अंगीकार किया गया. जिसको वे 15वीं से 20वी शताब्दी तक, colonial रूल में copybook स्टाइल में प्रैक्टिस करने वाले थे.
भारत के colonized विद्वानों ने बाद में slavery और गुलामी का ट्रांसलेशन भारत के सन्दर्भ में दास शब्द से किया गया. जबकि दोनों में बहुत ख़ास फरक है.
क्या फर्क है ?
slavery और गुलामी वो है, जिसका अनुभव पूर्व में अफ्रीकी नीग्रो ( ढेर सारे भारतीय भी, जो आज मारिशस जैसे जगहों पे थे colonial era में. slave और गुलाम वो है, जिनके पास ड्यूटी तो होती है, लेकिन अधिकार नहीं होते.
और दास एक अलग परंपरा है, जिनके पास धर्मसंगत ड्यूटी भी होती है, और अधिकार भी. वो उनके खिलाफ आवाज उठा सकते है जिनकी सेवा में वे नियत किये गए हैं. उदाहरण स्वरूप आप विष्णु शर्मा के पंचतंत्र को पढ़िए. दास का अर्थ था ईश्वर के सेवक.
और अगर ज्यादा समझना है, बिना मेहनत के तो तुलसीदास कबीरदास रहीमदास के नामों को याद करिए. ये slave/गुलाम थे, कि गुलामी से मात्र शरीर ही नहीं आत्मा के बंधन खोलते थे.
Monotheisn/One God थ्योरी, भगवान् के बारे में आने के पहले, क्रिश्चियनिटी के पूर्व यूरोप में ग्रीक रोमन सभ्यता में, और अरब में इस्लाम के आने के पूर्व, बहुदेववाद का ही प्रचलन था. अगर रोमन सभ्यता में देखें तो आप पायेंगे कि हर चीज के लिए एक गॉड या गॉडेस थी. गूगल करिए- गॉडेस ऑफ़ ब्यूटी = वीनस. उदाहरण के स्वरुप में.
और प्रोफेट मुहम्मद के काबा पर (हजरत के बाद) कब्जा करने के पूर्व काबा को "sanctuary of idols" यानी मूर्तियों की सैंक्चुअरी के नाम से जाना जाता था. जहाँ 360 मूर्तियाँ अलग अलग देवताओं के मानने वाले लोगों के अराध्य देवों की मूर्तियाँ थी. और जब पैगम्बर मोहम्मद ने काबा पर अपना अधिपत्य कायम किया, तो वहां मैरी और बालक जीसस की मूर्तियों को छोड़कर सारी मूर्तियाँ, यहाँ तक कि Solman/ सुलेमान तक की मूर्तियाँ तुड़वा दीं.
जारी....

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