भारत में बुरी तरह हारा था सिकंदर, जानें कैसे सुपारी इतिहासकारों ने इतिहास का नाश किया
भारतीयों के अंदर हीन भावना भरने के लिए सुपारी इतिहासकारों ने कैसे भारत के महान इतिहास का गुड गोबर किया हम उसे इस घटना से समझ सकते हैं। यूनान के इतिहास लेखक सिकंदर से युद्ध करने वाले भारतीय राजा का नाम अपनी भाषा में पोरस अथवा पुरु बताते हैं, किंतु यह उनका वास्तविक नाम नहीं बल्कि पुरुवंश का परिचायक है, कटोच इतिहास में इस वीर राजा का नाम परमानन्द कटोच बताया जाता है।
एक और इतिहासकार इनका नाम पुरुषोत्तम खुखेरीयान बताते हैं जबकि पंजाबी क्षत्रिय यानी खत्री बताते हैं तथा इनके वंशज खत्रियो में पुरी कहलाते बताए जाते हैं, कटोच राजपूत प्राचीन चंद्रवंशी क्षत्रिय हैं, कटोच चंद्रवंशी पुरु के वंशज हैं।पुरु वंशी राजा पोरस (यूनानी इतिहास लेखको द्वारा दिया गया नाम) का राज्य चेनाब नदी से लगे हुए क्षेत्रो पर था। हम इस युद्ध पर भारतीय लेखको के बजाए यूनानी इतिहासकारो का ही विवरण दे रहे हैं :- “प्लूटार्क” नामक यूनानी इतिहासकार लिखता है कि, “सिकन्दर की 20 हजार पैदल सैनिक तथा 15 हजार अश्व सैनिक पोरस की युद्ध क्षेत्र में एकत्र की गई सेना से बहुत ही अधिक थी। सिकन्दर की सहायता फारसी सैनिकों ने भी की थी। कहा जाता है कि इस युद्ध के शुरू होते ही पोरस ने महाविनाश का आदेश दे दिया उसके बाद पोरस के सैनिकों ने तथा हाथियों ने जो विनाश मचाना शुरु किया कि सिकन्दर तथा उसके सैनिकों के सर पर चढ़े विश्वविजेता के भूत को उतार कर रख दिया।”
पोरस के हाथियों द्वारा यूनानी सैनिकों में उत्पन्न आतंक का वर्णन कर्टियस ने इस तरह से किया है, “इनकी तुर्यवादक ध्वनि से होने वाली भीषण चीत्कार न केवल घोड़ों को भयातुर कर देती थी, जिससे वे बिगड़कर भाग उठते थे अपितु घुड़सवारों के हृदय भी दहला देती थी।
आगे वह लिखता है कि, इन पशुओं ने ऐसी भगदड़ मचायी कि अनेक विजयों के ये शिरोमणि अब ऐसे स्थानों की खोज में लग गए जहाँ इनको शरण मिल सके। उन पशुओं ने कईयों को अपने पैरों तले रौंद डाला और सबसे हृदयविदारक दृश्य वो होता था जब ये स्थूल-चर्म पशु अपनी सूँड़ से यूनानी सैनिक को पकड़ लेता था, उसको अपने उपर वायु-मण्डल में हिलाता था और उस सैनिक को अपने आरोही के हाथों सौंप देता था जो तुरन्त उसका सर धड़ से अलग कर देता था, इन पशुओं ने युद्ध के मैदान में घोर आतंक उत्पन्न कर दिया था।”
उपरोक्त दो यूनानी लेखकों की तरह का वर्णन “डियोडरस” ने भी किया है। डियोडरस लिखता है कि, विशाल हाथियों में अपार बल था और वे अत्यन्त लाभकारी सिद्ध हुए, उन्होंने अपने पैरों तले बहुत सारे सैनिकों की हड्डियाँ-पसलियाँ चूर-चूर कर दी थीं। युद्धक्षेत्र का का वर्णन करते हुए डियोडरस बताता है कि, पोरस के हाथी इन सैनिकों को अपनी सूँड़ों से पकड़ लेते थे और जमीन पर जोर से पटक देते थे, जिसके पश्चात् अपने विकराल गज-दन्तों से सैनिकों को गोद- गोद कर मार डालते थे।
डियोडरस का ये कहना कि पोरस के हाथियों में अपार बल था और वे अत्यन्त लाभकारी सिद्ध हुए ये क्या सिद्ध करता है ? या फिर “कर्टियस” का ये कहना कि इन पशुओं ने आतंक मचा दिया था ये क्या सिद्ध करता है ?
एक और विद्वान ई.ए. डब्ल्यू. बैज इस युद्ध का वर्णन करत एहुय एब्ताते हैं कि,”झेलम के युद्ध में सिकन्दर की अश्व-सेना का अधिकांश भाग मारा गया था। सिकन्दर ने अनुभव कर लिया कि यदि अब लड़ाई जारी रखूँगा तो पूर्ण रुप से अपना नाश कर लूँगा। अतः सिकन्दर ने पोरस से शांति की प्रार्थना की, “श्रीमान पोरस मैंने आपकी वीरता और सामर्थ्य स्वीकार कर ली है, मैं नहीं चाहता कि मेरे सारे सैनिक अकाल ही काल के गाल में समा जाय। मैं इनका अपराधी हूँ और भारतीय परम्परा के अनुसार ही पोरस ने शरणागत शत्रु का वध नहीं किया था।” ये बातें किसी भारतीय लेखक द्वारा नहीं बल्कि एक विदेशी द्वारा कही गई है। अतः इन बातो से क्या यह सिद्ध नही होता कि इस युद्ध में महाराज पुरू की विजय हुई थी ? इन सभी तथ्यों से यह सिद्ध हो जाता है कि, इतिहासकारों ने भारत के इतिहा सके सात किस तरह से खिलवाड़ किया था।
भारतीयों के अंदर हीन भावना भरने के लिए सुपारी इतिहासकारों ने कैसे भारत के महान इतिहास का गुड गोबर किया हम उसे इस घटना से समझ सकते हैं। यूनान के इतिहास लेखक सिकंदर से युद्ध करने वाले भारतीय राजा का नाम अपनी भाषा में पोरस अथवा पुरु बताते हैं, किंतु यह उनका वास्तविक नाम नहीं बल्कि पुरुवंश का परिचायक है, कटोच इतिहास में इस वीर राजा का नाम परमानन्द कटोच बताया जाता है।
एक और इतिहासकार इनका नाम पुरुषोत्तम खुखेरीयान बताते हैं जबकि पंजाबी क्षत्रिय यानी खत्री बताते हैं तथा इनके वंशज खत्रियो में पुरी कहलाते बताए जाते हैं, कटोच राजपूत प्राचीन चंद्रवंशी क्षत्रिय हैं, कटोच चंद्रवंशी पुरु के वंशज हैं।पुरु वंशी राजा पोरस (यूनानी इतिहास लेखको द्वारा दिया गया नाम) का राज्य चेनाब नदी से लगे हुए क्षेत्रो पर था। हम इस युद्ध पर भारतीय लेखको के बजाए यूनानी इतिहासकारो का ही विवरण दे रहे हैं :- “प्लूटार्क” नामक यूनानी इतिहासकार लिखता है कि, “सिकन्दर की 20 हजार पैदल सैनिक तथा 15 हजार अश्व सैनिक पोरस की युद्ध क्षेत्र में एकत्र की गई सेना से बहुत ही अधिक थी। सिकन्दर की सहायता फारसी सैनिकों ने भी की थी। कहा जाता है कि इस युद्ध के शुरू होते ही पोरस ने महाविनाश का आदेश दे दिया उसके बाद पोरस के सैनिकों ने तथा हाथियों ने जो विनाश मचाना शुरु किया कि सिकन्दर तथा उसके सैनिकों के सर पर चढ़े विश्वविजेता के भूत को उतार कर रख दिया।”
पोरस के हाथियों द्वारा यूनानी सैनिकों में उत्पन्न आतंक का वर्णन कर्टियस ने इस तरह से किया है, “इनकी तुर्यवादक ध्वनि से होने वाली भीषण चीत्कार न केवल घोड़ों को भयातुर कर देती थी, जिससे वे बिगड़कर भाग उठते थे अपितु घुड़सवारों के हृदय भी दहला देती थी।
आगे वह लिखता है कि, इन पशुओं ने ऐसी भगदड़ मचायी कि अनेक विजयों के ये शिरोमणि अब ऐसे स्थानों की खोज में लग गए जहाँ इनको शरण मिल सके। उन पशुओं ने कईयों को अपने पैरों तले रौंद डाला और सबसे हृदयविदारक दृश्य वो होता था जब ये स्थूल-चर्म पशु अपनी सूँड़ से यूनानी सैनिक को पकड़ लेता था, उसको अपने उपर वायु-मण्डल में हिलाता था और उस सैनिक को अपने आरोही के हाथों सौंप देता था जो तुरन्त उसका सर धड़ से अलग कर देता था, इन पशुओं ने युद्ध के मैदान में घोर आतंक उत्पन्न कर दिया था।”
उपरोक्त दो यूनानी लेखकों की तरह का वर्णन “डियोडरस” ने भी किया है। डियोडरस लिखता है कि, विशाल हाथियों में अपार बल था और वे अत्यन्त लाभकारी सिद्ध हुए, उन्होंने अपने पैरों तले बहुत सारे सैनिकों की हड्डियाँ-पसलियाँ चूर-चूर कर दी थीं। युद्धक्षेत्र का का वर्णन करते हुए डियोडरस बताता है कि, पोरस के हाथी इन सैनिकों को अपनी सूँड़ों से पकड़ लेते थे और जमीन पर जोर से पटक देते थे, जिसके पश्चात् अपने विकराल गज-दन्तों से सैनिकों को गोद- गोद कर मार डालते थे।
डियोडरस का ये कहना कि पोरस के हाथियों में अपार बल था और वे अत्यन्त लाभकारी सिद्ध हुए ये क्या सिद्ध करता है ? या फिर “कर्टियस” का ये कहना कि इन पशुओं ने आतंक मचा दिया था ये क्या सिद्ध करता है ?
एक और विद्वान ई.ए. डब्ल्यू. बैज इस युद्ध का वर्णन करत एहुय एब्ताते हैं कि,”झेलम के युद्ध में सिकन्दर की अश्व-सेना का अधिकांश भाग मारा गया था। सिकन्दर ने अनुभव कर लिया कि यदि अब लड़ाई जारी रखूँगा तो पूर्ण रुप से अपना नाश कर लूँगा। अतः सिकन्दर ने पोरस से शांति की प्रार्थना की, “श्रीमान पोरस मैंने आपकी वीरता और सामर्थ्य स्वीकार कर ली है, मैं नहीं चाहता कि मेरे सारे सैनिक अकाल ही काल के गाल में समा जाय। मैं इनका अपराधी हूँ और भारतीय परम्परा के अनुसार ही पोरस ने शरणागत शत्रु का वध नहीं किया था।” ये बातें किसी भारतीय लेखक द्वारा नहीं बल्कि एक विदेशी द्वारा कही गई है। अतः इन बातो से क्या यह सिद्ध नही होता कि इस युद्ध में महाराज पुरू की विजय हुई थी ? इन सभी तथ्यों से यह सिद्ध हो जाता है कि, इतिहासकारों ने भारत के इतिहा सके सात किस तरह से खिलवाड़ किया था।
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