इस कहानी को पढ़ने के बाद आप के मन को बहूत शांति मिलेगी जो दिल छू जाये ॥॥
.
एक बार की बात है की एक शहर में बहुत अमीर सेठ रहता था| अत्यधिक धनी होने पर भी वह हमेशा दुखी ही रहता था| एक दिन ज़्यादा परेशान होकर वह एक ऋषि के पास गया और अपनी सारी समस्या ऋषि को बताई|
उन्होने सेठ की बात ध्यान से सुनी| और सेठ से कहा की कल तुम इसी वक्त फिर से मेरे पास आना मैं कल ही तुम्हें तुम्हारी सारी समस्याओं का हल बता दूँगा| सेठ खुशी खुशी घर गया और अगले दिन जब फिर से ऋषि के पास आया तो उसने देखा कि ऋषि सड़क पर कुछ ढूँढने में व्यस्त थे|
सेठ ने गुरुजी से पूछा कि महर्षि आप क्या ढूँढ रहे हैं , गुरुजी बोले की मेरी एक अंगूठी गिर गयी है मैं वही ढूँढ रहा हूँ पर काफ़ी देर हो गयी है लेकिन अंगूठी मिल ही नहीं रही है| यह सुनकर वह सेठ भी अंगूठी ढूँढने में लग गया, जब काफ़ी देर हो गयी तो सेठ ने फिर गुरुजी से पूछा कि आपकी अंगूठी कहा गिरी थी| ऋषि ने जवाब दिया कि अंगूठी मेरे आश्रम में गिरी थी पर वहाँ काफ़ी अंधेरा है इसीलिए मैं यहाँ सड़क पर ढूँढ रहा हूँ|
सेठ ने चौंकते हुए पूछा की जब आपकी अंगूठी आश्रम में गिरी है तो यहाँ क्यूँ ढूँढ रहे हैं| ऋषि ने मुस्कुराते हुए कहा की यही तुम्हारे कल के प्रश्न का उत्तर है, खुशी तो मन में छुपी है लेकिन तुम उसे धन में खोजने की कोशिश कर रहे हो| इसीलिए तुम दुखी हो, यह सुनकर सेठ ऋषि के पैरों में गिर गया|
तो मित्रों, यही बात हम लोगों पर भी लागू होती है जीवन भर पैसा इकट्ठा करने के बाद भी इंसान खुश नहीं रहता क्यूंकी हम पैसा कमाने में इतना मगन हो जाते हैं और अपनी खुशी आदि सब कुछ भूल जाते हैं| स्वामी विवेकानंद का कहना है कि समस्त ब्रह्माण्ड हमारे इस शरीर के ही अंदर विद्धमान है जबकि हम जीवनभर इधर उधर भटकते रहते हैं। सत्य बोलना, परोपकार करना, अच्छी सोच रखना बहुत बड़ा सुख है लेकिन हम सही जगह अपनी खुशियां ढूंढ ही नहीं रहे हैं। सागर हमारे सामने है और हम हाथ में चम्मच लिए प्यासे खड़े हैं। केवल पैसा कमाना ही सुख नहीं है मित्रों अच्छे कर्म करो अपने माता पिता की सेवा करो और हमेशा दूसरों के हित में सोचो फिर देखो जो आपको मिलेगी वो अतुलनीय होगी यही इस कहानी की सीख है।
उन्होने सेठ की बात ध्यान से सुनी| और सेठ से कहा की कल तुम इसी वक्त फिर से मेरे पास आना मैं कल ही तुम्हें तुम्हारी सारी समस्याओं का हल बता दूँगा| सेठ खुशी खुशी घर गया और अगले दिन जब फिर से ऋषि के पास आया तो उसने देखा कि ऋषि सड़क पर कुछ ढूँढने में व्यस्त थे|
सेठ ने गुरुजी से पूछा कि महर्षि आप क्या ढूँढ रहे हैं , गुरुजी बोले की मेरी एक अंगूठी गिर गयी है मैं वही ढूँढ रहा हूँ पर काफ़ी देर हो गयी है लेकिन अंगूठी मिल ही नहीं रही है| यह सुनकर वह सेठ भी अंगूठी ढूँढने में लग गया, जब काफ़ी देर हो गयी तो सेठ ने फिर गुरुजी से पूछा कि आपकी अंगूठी कहा गिरी थी| ऋषि ने जवाब दिया कि अंगूठी मेरे आश्रम में गिरी थी पर वहाँ काफ़ी अंधेरा है इसीलिए मैं यहाँ सड़क पर ढूँढ रहा हूँ|
सेठ ने चौंकते हुए पूछा की जब आपकी अंगूठी आश्रम में गिरी है तो यहाँ क्यूँ ढूँढ रहे हैं| ऋषि ने मुस्कुराते हुए कहा की यही तुम्हारे कल के प्रश्न का उत्तर है, खुशी तो मन में छुपी है लेकिन तुम उसे धन में खोजने की कोशिश कर रहे हो| इसीलिए तुम दुखी हो, यह सुनकर सेठ ऋषि के पैरों में गिर गया|
तो मित्रों, यही बात हम लोगों पर भी लागू होती है जीवन भर पैसा इकट्ठा करने के बाद भी इंसान खुश नहीं रहता क्यूंकी हम पैसा कमाने में इतना मगन हो जाते हैं और अपनी खुशी आदि सब कुछ भूल जाते हैं| स्वामी विवेकानंद का कहना है कि समस्त ब्रह्माण्ड हमारे इस शरीर के ही अंदर विद्धमान है जबकि हम जीवनभर इधर उधर भटकते रहते हैं। सत्य बोलना, परोपकार करना, अच्छी सोच रखना बहुत बड़ा सुख है लेकिन हम सही जगह अपनी खुशियां ढूंढ ही नहीं रहे हैं। सागर हमारे सामने है और हम हाथ में चम्मच लिए प्यासे खड़े हैं। केवल पैसा कमाना ही सुख नहीं है मित्रों अच्छे कर्म करो अपने माता पिता की सेवा करो और हमेशा दूसरों के हित में सोचो फिर देखो जो आपको मिलेगी वो अतुलनीय होगी यही इस कहानी की सीख है।
No comments:
Post a Comment