इतिहास में बहुत कम मिसाल मिलेंगी… जब किसी बाप ने कौम के लिए… राष्ट्र के लिए… एक हफ्ते में अपने 4–4 बेटे क़ुर्बान कर दिए हों.
आज पूस का वो आठवां दिन था जब दशम् गुरु श्री गुरु गोविन्द सिंह जी महाराज के दो साहबजादे चमकौर साहब के युद्ध में शहीद हो गए।
बड़े साहबजादे श्री अजीत सिंह जी की आयु मात्र 17 वर्ष थी और छोटे साहबजादे श्री जुझार सिंह जी की आयु मात्र 14 वर्ष थी.
सिखों के आदेश (गुरुमत्ता) की पालना में गुरु साहब ने गढ़ी खाली कर दी और सुरक्षित निकल गए. पिछली रात माता गुजरी दोनों छोटे साहिबजादों के साथ गंगू के घर पर थीं.
उधर चमकौर साहिब में युद्ध चल रहा था और इधर गनी खां और मनी खां ने माता गुजरी समेत दोनों छोटे साहिबजादों को बंदी बना लिया.
अगले दिन यानि पूस की 9 को उन्हें सरहिंद के किले में ठन्डे बुर्ज में रखा गया। 10 पूस को तीनों को नवाब वजीर खां की कचहरी में पेश किया गया ।
शर्त रखी… इस्लाम कबूल कर लो… वरना…
वरना क्या?
मौत की सज़ा मिलेगी…
पूस का 13वां दिन… नवाब वजीर खां ने फिर पूछा… बोलो इस्लाम कबूल करते हो?
छोटे साहिबज़ादे फ़तेह सिंह जी, जिनकी आयु 6 वर्ष थी, ने पूछा… अगर मुसलमान हो गए तो फिर कभी नहीं मरेंगे न?
वजीर खां अवाक रह गया… उसके मुंह से जवाब न फूटा…
तो साहिबज़ादे ने जवाब दिया कि जब मुसलमान हो के भी मरना ही है तो अपने धर्म में ही अपने धर्म की खातिर क्यों न मरें…
दोनों साहिबजादों को ज़िंदा दीवार में चिनवाने का आदेश हुआ. दीवार चीनी जाने लगी.
जब दीवार 6 वर्षीय फ़तेह सिंह जी की गर्दन तक आ गयी तो 8 वर्षीय जोरावर सिंह जी रोने लगे.
फ़तेह सिंह जी ने पूछा, जोरावर रोता क्यों है?
जोरावर सिंह जी बोले, रो इसलिए रहा हूँ कि आया मैं पहले था पर कौम के लिए शहीद तू पहले हो रहा है…उसी रात माता गुजरी ने भी ठन्डे बुर्ज में प्राण त्याग दिए.
गुरु साहब का पूरा परिवार… 6 पूस से 13 पूस… इस एक सप्ताह में… कौम के लिए… धर्म के लिए… राष्ट्र के लिए शहीद हो गया.जब गुरु साहब को इसकी सूचना मिली तो उनके मुंह से बस इतना निकला –
इन पुत्रन के कारने, वार दिए सुत चार।
चार मुए तो क्या हुआ, जब जीवें कई हज़ार।।
चार मुए तो क्या हुआ, जब जीवें कई हज़ार।।
इस साल यानी 2016 में 22 दिसंबर पूस की 8-9 थी… दोनों बड़े साहिबजादों, अजीत सिंह जी और जुझार सिंह जी का शहीदी दिवस…
कितनी जल्दी भुला दिया हमने इस शहादत को? सुनी आपने कहीं कोई चर्चा?? किसी टीवी चैनल या किसी अखबार में???
4 बेटे और माँ की शहादत… एक सप्ताह में…पृथ्वीराज कपूर की पड़पोती (प्रपौत्री) ने अगर ये इतिहास पढ़ा होता तो शायद अपने बेटे का नाम तैमूर न रखती… अजीत, जुझार, जोरावर या फ़तेह सिंह रखती…
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