Friday 20 January 2017



वीर हक़ीक़त राय
इस 12 वर्षीय वीर बालक ने धर्म परिवर्तन के बदले अपना सिर कटवाना पसन्द किया और शहीद हो गया। उसे नहीं पता था कि तथाकथित धर्म-निर्पेक्ष नपुसंक हिन्दू ही पुनः मृतक तुल्य बना छोडें गे कि कोई उस का सार्वजनिक तौर पर नाम भी ना ले और हिन्दू मुसलिम सोहार्द का नाटक चलता रहै। आज इस वीर का नाम वर्तमान पीढी के मानसिक पटल से मिट चुका है और दिल्ली स्थित हिन्दू महासभा भवन में इस शहीद की मूक प्रतिमा उपेक्षित सी खडी है। बूढें नेहरू का जन्म तो मरणोपरान्त भी ‘बाल-दिवस’ के रूप में मनाया जाता है किन्तु आज कोई भी हिन्दू बालक वीर हकीकत राय के अनुपम बलिदान को नहीं जानता।
हकीकतराय का जन्म सियालकोट में 1724 को हुआ था। उस समय वह ऐक मात्र हिन्दू बालक मुस्लमान बालकों के साथ पढता था। उस की प्रगति से सहपाठी ईर्षालु थे और अकेला जान कर उसे बराबर चिडाते रहते थे। ऐक दिन मुस्लिम बालकों ने देवी दुर्गा के बारे में असभ्य अपशब्द कहे जिस पर हकीकतराय ने आपत्ति व्यक्त की। मुस्लिम बच्चों ने अपशब्दों को दोहरा दोहरा कर हकीकतराय को भडकाया और उस ने भी प्रतिक्रिया वश मुहमम्द की पुत्री फातिमा के बारे में वही शब्द दोहरा दिये।
मुस्लिम लडकों ने मौलवी को रिपोर्ट कर दी और मौलवी ने हकीकतराय को पैगंम्बर की शान में गुस्ताखी करने के अपराध में कैद करवा दिया। हकीकतराय के मातापिता ने ऐक के बाद ऐक लाहौर के स्थानीय शासक तक गुहार लगाई। उसे जिन्दा रहने के लिये मुस्लमान बन जाने का विकल्प दिया गया जो उस वीर बालक ने अस्वीकार कर दिया। उस ने अपने माता-पिता और दस वर्षिया पत्नी के सामने सिर कटवाना सम्मान जनक समझा। अतः 20 जनवरी 1735 को जल्लाद ने हकीकत राय का सिर काट कर धड से अलग कर दिया।
उपरोक्त ऐतिहासिक वृतान्त इस्लामी क्रूरता और नृशंस्ता के केवल अंशमात्र उदाहरण हैं। किन्तु हिन्दू समाज की कृतघन्ता है कि वह अपने वीरों को भूल चुका हैं जिन्हों ने बलिदान दिये थे। आज वह उन के नाम इस लिये नहीं लेना चाहते कि कहीं भारत में रहने वाले अल्पसंख्यक नाराज ना हो जायें। धर्म निर्पेक्ष भारत में अत्याचारी मुस्लिम शासकों के कई स्थल, मार्ग और मकबरे सरकारी खर्चों पर सजाये सँवारे जाते हैं। कई निम्न स्तर के राजनैताओं के मनहूस जन्म दिन और ‘पुन्य तिथियाँ’ भी सरकारी उत्सव की तरह मनायी जाती हैं परन्तु इन उपेक्षित वीरों का नाम भी लेना धर्म निर्पेक्षता का उलंघन माना जाता है।
बटवारे पश्चात हिन्दूस्तान के प्रथम हिन्दू शहीद नाथूराम गोडसे का चित्र हिन्दूस्तान के किसी मन्दिर या संग्रहालय में नहीं लगा जिस ने पाकिस्तानी हिन्दू नर-संहार का विरोध करते हुये अपना बलिदान दिया था। हिन्दुस्तान में हिन्दूओं की ऐसी अपमान जनक स्थिति आज भी है जो उन्हीं की कायरता के फलस्वरूप है क्योंकि उन की स्वाभिमान मर चुका है।

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