Friday, 6 January 2017

और मैंने संस्कृत भाषा में वकालत करने की ठानी

देववाणी संस्कृत के प्रति भले ही लोगों का रुझान कम हो लेकिन वाराणसी के एडवोकेट आचार्य पंडित श्यामजी उपाध्याय का संस्कृत के लिए समर्पण शोभनीय है। 1976 से वकालत करने वाले आचार्य पण्डित श्यामजी उपाध्याय 1978 में वकील बने। इसके बाद इन्होंने देववाणी संस्कृत को ही तरजीह दी।
श्याम जी कहते हैं कि  ‘जब मैं छोटा था, तब मेरे पिताजी ने कहा था कि कचहरी में काम हिंदी, अंग़्रेजी और उर्दू में होता है परंतु संस्कृत भाषा में नहीं। ये बात मेरे मन में घर कर गई और मैंने संस्कृत भाषा में वकालत करने की ठानी और ये सिलसिला आज भी चार दशकों से जारी है !
सभी न्यायालयीन काम जैसे- शपथपत्र, प्रार्थनापत्र, दावा, वकालतनामा और यहां तक की बहस भी संस्कृत में करते चले आ रहे हैं। पिछले ४ दशकों में संस्कृत में वकालत के दौरान श्यामजी के पक्ष में जो भी निर्णय और आदेश हुआ, उसे न्यायाधीश साहब ने संस्कृत में या तो हिंदी में सुनाया।
संस्कृत भाषा में कोर्टरूम में बहस सहित सभी लेखनी प्रस्तुत करने पर सामनेवाले पक्ष को असहजता होने के सवाल पर श्यामजी ने बताया कि वो संस्कृत के सरल शब्दों को तोड़-तोड़कर प्रयोग करते है, जिससे न्यायाधीश से लेकर विपक्षियों तक को कोई दिक्कत नहीं होती है और अगर कभी सामनेवाला राजी नहीं हुआ तो वो हिंदी में अपनी कार्यवाही करते हैं।
केवल कर्म से ही नहीं अपितु संस्कृत भाषा में आस्था रखनेवाले श्यामजी हर वर्ष कचहरी में संस्कृत दिवस समारोह भी मनाते चले आ रहे हैं। लगभग ५ दर्जन से भी अधिक अप्रकाशित रचनाओं के अलावा श्यामजी की २ रचनाएं “भारत-रश्मि” और “उद्गित” प्रकाशित हो चुकि है।
कचहरी समाप्त होने के बाद श्याम जी का शाम का समय अपनी चौकी पर संस्कृत के छात्रों और संस्कृत के प्रति जिज्ञासु अधिवक्ताों को पढ़ा कर बीताते है। संस्कृत भाषा की यह शिक्षा श्यामजी निःशुल्क देते हैं।
संस्कृत भाषा में रूचि लेनेवाले बुज़ुर्ग अधिवक्ता शोभनाथ लाल श्रीवास्तव ने बताया कि, संस्कृत भाषा को लेकर पूरे न्यायालय परिसर में श्यामजी के लोग चरण स्पर्श ही करते रहते हैं।
जब ये कोर्टरूम में रहते हैं तो इनके सहज-सरल संस्कृत भाषा के चलते श्रोता शांति से पूरी कार्यवाही में रुचि लेते हैं। श्यामजी के संपर्क में आने से उनके संस्कृत भाषा का ज्ञान भी बढ़ गया।आचार्य श्यामजी उपाध्याय संस्कृत अधिवक्ता के नाम से प्रसिध्द हैं। वर्ष २००३ में मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने संस्कृत भाषा में अभूतपूर्व योगदान के लिए इनको ‘संस्कृतमित्रम्’ नामक राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया था।

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