बात जलीकट्टू को सुप्रीम कोर्ट द्वारा बैन करने की नहीं है.... बात दही हाँडी की ऊँचाई से होने वाली परेशानी की नहीं है... बात दिवाली के पटाखों से होने वाले प्रदूषण और होली में जल के दुरुपयोग से भी नहीं है.... और ना ही बात दुर्गा विसर्जन पर पाबंदी लगाकर ताजिये निकालने की है। बात कहीं इससे भी आगे की है ...
दक्षिण भारत में अभी भी संस्कृति-परम्पराओं के प्रति गहरा लगाव है. आज तमिलनाडु में हम जो "लहर" देख रहे हैं वह इसलिए भी है क्योंकि रजनीकांत, कमल हासन, सूर्या, एआर रहमान... जैसे सितारों ने खुलकर जल्लीकट्टू के समर्थन में आवाज़ उठाई... दक्षिण भारत की जनता की जागरूकता के साथ इन सितारों के पाँव जमीन पर टिके हुए हैं... इसीलिए जल्लीकट्टू के समर्थन में यह आंदोलन खड़ा हुआ. ऐसा नहीं है कि दक्षिण भारत में "सेकुलरिज्म" और मिशनरी गतिविधियाँ कम हैं, बल्कि भरपूर हैं... परन्तु वहाँ का मानस अभी भी जड़ों से जुड़ा हुआ है.
तमिलनाडु ने हमें एक राह दिखाई है... क्या उत्तर-पश्चिम-पूर्वी भारत के लोग कुछ सीखेंगे... क्या एकजुट होकर इस NGOवादी वामपंथी-मिशनरी गिरोह के खिलाफ बिना किसी संकोच के उठ खड़े होंगे .?
जबकि उत्तर भारत में हम तेजी से अपनी संस्कृति-परम्पराओं से कटते जा रहे हैं, दिखावा हावी हो रहा है. बड़े ही व्यवस्थित तरीके से काँग्रेस-वामपंथ और मिशनरी के साहित्य-किताबों ने दिमागों में सेकुलरिज़्म और गुलामी भर दी है. आज यहाँ "छिछोरा" भास्कर होली पर पानी बचाओ, या दीवाली पर पटाखे न जलाओ का कोई अभियान छेड़ता है, तो सबसे पहले आमिर खान, अमिताभ बच्चन जैसे लोग उसके समर्थन में आगे आ जाते हैं. कई बुद्धिजीवियों की तरह इन उत्तर भारतीय सितारों को भी यह डर सताता है कि कहीं परम्पराओं का समर्थन करने पर उन्हें "दकियानूस" अथवा हिन्दू त्यौहारों का समर्थन करने पर "हिंदूवादी" न समझ लिया जाए...
मनुष्य को हिजड़ा बनाने के लिए उसका बंध्याकरण करना जरूरी नहीं है, बस उसे मानसिक रूप से हिजड़ा बना दो. सेकुलरिज्म के पैरोकारों और वामपंथी लेखकों-इतिहासकारों ने हिंदुओं में यह काम बखूबी किया है.
तमिलनाडु ने हमें एक राह दिखाई है... क्या उत्तर-पश्चिम-पूर्वी भारत के लोग कुछ सीखेंगे... क्या एकजुट होकर इस NGOवादी वामपंथी-मिशनरी गिरोह के खिलाफ बिना किसी संकोच के उठ खड़े होंगे .?
..."जल्लीकट्टू" परंपरा देशी गौवंश के उन्नत संरक्षण हेतु है. देशी गाय की प्राजतियों में ए-2 प्रोटीन होता है, जो कि माता के दूध के समान है. जल्लीकट्टू का वास्तविक उद्देश्य प्रत्येक गाँव में एक उन्नत प्रजाति के साँड का चुनाव करना है, ताकि गौवंश की उन्नत प्रजाति विकसित होती रहे. इसमें जिस सर्वश्रेष्ठ साँड का चुनाव होता है, उसे कोविल कालाई (मंदिर का साँड) कहते हैं एवं उसका पोषण मंदिर के संसाधनों से ही किया जाता है, एवं वह आवश्यकता पड़ने पर ग्रामवासियों को नि:शुल्क उपलब्ध रहता है.
जिस गाय के सबसे अधिक दूध होता है, उसी के बछ़ड़े को पवित्र नंदी मानकर कोविल कालाई के लिये तैयार किया जाता है. कोविल कालाई के चुनाव के पश्चात जो भी बछ्ड़े बचते हैं, उसे कृषक जुताई आदि अन्य कार्यों में ले लेते हैं. जल्लीकट्टू के प्रारंभ में सबसे पहले यही पवित्र कोविल कोलाई छोड़ा जाता है, जिसे कोई नहीं रोकता, और लोग उसे हाथ जोड़कर नमस्कार करते हैं. उसके पश्चात अन्य साँड छोड़े जाते हैं, जिनमें से अगला कोविल कालाई चुनने की परंपरा है. अत: यह परंपरा में एक उन्नत प्रजाति का एक पवित्र साँड चुनने के लिये हैं, जिसमें अत्याचार का कोई स्थान ही नहीं है.....
(भारत में हिंदुओं के प्रत्येक त्यौहार के पीछे सांस्कृतिक, वैज्ञानिक और स्थानीय फैक्टर होते हैं... NGOs के साथ मिलकर इन्हें बर्बाद करने का गंभीर षड्यंत्र चल रहा है... मैं तमिलनाडु के जागरूक हिंदुओं के साथ हूँ... त्यौहारों-परम्पराओं को नष्ट करने की इस चालबाजी के खिलाफ हमेशा उठ खड़े होना होगा...)Suresh Chiplunkar
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बात जलीकट्टू को सुप्रीम कोर्ट द्वारा बैन करने की नहीं है.... बात दही हाँडी की ऊँचाई से होने वाली परेशानी की नहीं है... बात दिवाली के पटाखों से होने वाले प्रदूषण और होली में जल के दुरुपयोग से भी नहीं है.... और ना ही बात दुर्गा विसर्जन पर पाबंदी लगाकर ताजिये निकालने की है। बात कहीं इससे भी आगे की है। बात है आपको प्रताड़ित करने की ...आपको अपमानित करने की...आपके स्वाभिमान को नष्ट करने की...और तो और आपके अस्तित्व को नकारने की ।
उन्होंने दशकों से आपको ऐसी व्यवस्था में जीने के लिए विवश किया है, ऐसी शिक्षा दी है , ऐसे नियम कायदे बनाए हैं ताकि आप अपनी पहचान एवं स्मृति को भुला दें ... लोकतंत्र में आपको हमेशा हाशिए पर रखा गया क्योंकि आप बहुसंख्यक थे .... और आप भी इसी दंभ में रह गये।
अल्पसंख्यकों को तरजीह देने के नाम पर आपके साथ होने वाले छलावे पर आपने कब ध्यान दिया था ?
.....इस देश में मैक्समूलर की भविष्यवाणी को सच करने के लिए एक प्रबुद्ध वर्ग का उदय हुआ था , क्या आपको नहीं पता था ....जिन्होंने निरंतर आपकी उपेक्षा की ? उनकी जड़ें देश में ऐसी जमी कि आपने कभी उखाड़ने का साहस भी नहीं किया। वे रक्त-बीज की तरह पैदा होते रहे और लोकतंत्र के सभी स्तंभों के इर्द-गिर्द अपने आप को जमा कर लिये। वे ही भारत के कर्णधार बने ...वे ही सर्वेसर्वा बने। आपने उनके इरादों पर कभी आपत्ति नहीं की ..सच तो ये है कि आप अपनी क्षमता को पहचान ही नहीं पाये थे।
आपको हतोत्साहित क्यों किया जा रहा है ?...इसे आपको ही समझना होगा।
यह एक सुनियोजित अभियान का हिस्सा है जिसमें हिन्दू संस्कृति एवं इसकी अस्मिता को समाप्त करने की कुचेष्टा हो रही है।
हिन्दुत्व की सतत प्रवाहमान , पावन धारा को खत्म करने का प्रयास किया जा रहा है।
देश में धर्मनिरपेक्षता की एक ऐसी कहानी लिखी गई जिसमें सेक्यूलर प्रबुद्ध जनों के लिए सार्वजनिक रूप से तिलक लगाना , नारियल फोड़ना , दीप प्रज्वलित करना , मंदिरों में जाना तो निषेध था... परंतु टोपी पहनना , सरकारी इफ्तार पार्टी का दावत देना , गैर हिन्दू-अनुष्ठानों में शामिल होना अथवा मस्जिदों-चर्चों में जाने की स्वीकृति दी गई।
धर्मनिरपेक्षता का अर्थ यह लगाया गया कि ...यह राष्ट्रीय जीवन का एक ऐसा स्वरूप है जिसमें हिन्दू कही जाने वाली किसी वस्तु का कोई स्थान ना हो...यानी कि तुम अपनी पहचान एवं अस्मिता को भुला दो ।
परंतु अब ...
अब तुम जैसे षड्यंत्रकारियों की इच्छा पूरी नहीं होगी , अब हिन्दुत्व जग चुका है। तुम्हारी बनाई गई व्यवस्थाओं से प्रतिकार करने की उसमें हिम्मत आ चुकी है। तुम्हारी उस सोच को उखाड़ फेंकने का मन बना लिया गया है जिसके तहत तुम अल्पसंख्यकों के नाम पर बहुसंख्यकों की उपेक्षा करते आए हो ।
मजहब के नाम पर गोलबंदी तुम करते हो और हमें साम्प्रदायिक कहते हो ?
वोट पाने के लिए सांप्रदायिक बिल लाकर तुम हमें डराते हो और और हमारे विरोध करने पर इसे अल्पसंख्यकों के साथ ज्यादती कहते हो?
मजहब के नाम पर तुष्टीकरण के लिए संविधान बदलकर न्याय की बात करते हो?
मजहब के नाम पर वोट बैंक तुम बनाते हो , सत्ता के लिए गठजोड़ करते हो , देशद्रोहियों के साथ खड़े होते हो और हम पर ऊँगली उठाते हो ?
तमिलनाडु में हो रहा अभूतपूर्व प्रदर्शन इसी गुस्से का नतीजा है। हिन्दुत्व अपनी हजारों वर्षों पुरानी सांस्कृतिक परम्परा को दम तोड़ते नहीं देख सकता है।
हिन्दुत्व अब जाग चुका है ... अब वो निद्रा में नहीं रह सकता है .... अब वो गूँगा नहीं है....अब वो मुखर हो चुका है.... चुनौतियों से भागेगा नहीं बल्कि तुम्हारी बनाई हुई व्यवस्थाओं से टकरा कर रहेगा और .......
और अंततः तुम्हारी व्यवस्थाओं को झुकाकर रहेगा।
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बात जलीकट्टू को सुप्रीम कोर्ट द्वारा बैन करने की नहीं है.... बात दही हाँडी की ऊँचाई से होने वाली परेशानी की नहीं है... बात दिवाली के पटाखों से होने वाले प्रदूषण और होली में जल के दुरुपयोग से भी नहीं है.... और ना ही बात दुर्गा विसर्जन पर पाबंदी लगाकर ताजिये निकालने की है। बात कहीं इससे भी आगे की है। बात है आपको प्रताड़ित करने की ...आपको अपमानित करने की...आपके स्वाभिमान को नष्ट करने की...और तो और आपके अस्तित्व को नकारने की ।
उन्होंने दशकों से आपको ऐसी व्यवस्था में जीने के लिए विवश किया है, ऐसी शिक्षा दी है , ऐसे नियम कायदे बनाए हैं ताकि आप अपनी पहचान एवं स्मृति को भुला दें ... लोकतंत्र में आपको हमेशा हाशिए पर रखा गया क्योंकि आप बहुसंख्यक थे .... और आप भी इसी दंभ में रह गये।
अल्पसंख्यकों को तरजीह देने के नाम पर आपके साथ होने वाले छलावे पर आपने कब ध्यान दिया था ?
.....इस देश में मैक्समूलर की भविष्यवाणी को सच करने के लिए एक प्रबुद्ध वर्ग का उदय हुआ था , क्या आपको नहीं पता था ....जिन्होंने निरंतर आपकी उपेक्षा की ? उनकी जड़ें देश में ऐसी जमी कि आपने कभी उखाड़ने का साहस भी नहीं किया। वे रक्त-बीज की तरह पैदा होते रहे और लोकतंत्र के सभी स्तंभों के इर्द-गिर्द अपने आप को जमा कर लिये। वे ही भारत के कर्णधार बने ...वे ही सर्वेसर्वा बने। आपने उनके इरादों पर कभी आपत्ति नहीं की ..सच तो ये है कि आप अपनी क्षमता को पहचान ही नहीं पाये थे।
आपको हतोत्साहित क्यों किया जा रहा है ?...इसे आपको ही समझना होगा।
यह एक सुनियोजित अभियान का हिस्सा है जिसमें हिन्दू संस्कृति एवं इसकी अस्मिता को समाप्त करने की कुचेष्टा हो रही है।
हिन्दुत्व की सतत प्रवाहमान , पावन धारा को खत्म करने का प्रयास किया जा रहा है।
देश में धर्मनिरपेक्षता की एक ऐसी कहानी लिखी गई जिसमें सेक्यूलर प्रबुद्ध जनों के लिए सार्वजनिक रूप से तिलक लगाना , नारियल फोड़ना , दीप प्रज्वलित करना , मंदिरों में जाना तो निषेध था... परंतु टोपी पहनना , सरकारी इफ्तार पार्टी का दावत देना , गैर हिन्दू-अनुष्ठानों में शामिल होना अथवा मस्जिदों-चर्चों में जाने की स्वीकृति दी गई।
धर्मनिरपेक्षता का अर्थ यह लगाया गया कि ...यह राष्ट्रीय जीवन का एक ऐसा स्वरूप है जिसमें हिन्दू कही जाने वाली किसी वस्तु का कोई स्थान ना हो...यानी कि तुम अपनी पहचान एवं अस्मिता को भुला दो ।
परंतु अब ...
अब तुम जैसे षड्यंत्रकारियों की इच्छा पूरी नहीं होगी , अब हिन्दुत्व जग चुका है। तुम्हारी बनाई गई व्यवस्थाओं से प्रतिकार करने की उसमें हिम्मत आ चुकी है। तुम्हारी उस सोच को उखाड़ फेंकने का मन बना लिया गया है जिसके तहत तुम अल्पसंख्यकों के नाम पर बहुसंख्यकों की उपेक्षा करते आए हो ।
मजहब के नाम पर गोलबंदी तुम करते हो और हमें साम्प्रदायिक कहते हो ?
वोट पाने के लिए सांप्रदायिक बिल लाकर तुम हमें डराते हो और और हमारे विरोध करने पर इसे अल्पसंख्यकों के साथ ज्यादती कहते हो?
मजहब के नाम पर तुष्टीकरण के लिए संविधान बदलकर न्याय की बात करते हो?
मजहब के नाम पर वोट बैंक तुम बनाते हो , सत्ता के लिए गठजोड़ करते हो , देशद्रोहियों के साथ खड़े होते हो और हम पर ऊँगली उठाते हो ?
तमिलनाडु में हो रहा अभूतपूर्व प्रदर्शन इसी गुस्से का नतीजा है। हिन्दुत्व अपनी हजारों वर्षों पुरानी सांस्कृतिक परम्परा को दम तोड़ते नहीं देख सकता है।
हिन्दुत्व अब जाग चुका है ... अब वो निद्रा में नहीं रह सकता है .... अब वो गूँगा नहीं है....अब वो मुखर हो चुका है.... चुनौतियों से भागेगा नहीं बल्कि तुम्हारी बनाई हुई व्यवस्थाओं से टकरा कर रहेगा और .......
और अंततः तुम्हारी व्यवस्थाओं को झुकाकर रहेगा।
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