Tuesday, 3 January 2017

orijen

प्रारम्भिक वैदिक साहित्य से यह ज्ञात होता है कि वैदिक आर्य प्रकृति के प्रत्येक रूप में एक देवता की कल्पना करते थे एवं उसके गुण-दोषों पर मुक्त भाव से चिंतन करते थे.
ऋग्वेद, शतपथ ब्राहमण, और ऐतरेय ब्राह्मण में 33 देवताओं का उल्लेख मिलता है, किंतु इन विभिन्न देवों को पूजते रहने के बाद भी, आर्य यह मानते थे के ये सभी देवता, मूलतः एक ही है.
प्रसिद्ध निरुक्तकार यास्क ने ‘नरराष्ट्रमिव’ का उदाहरण देते हुए कहा है कि जैसे असंख्य मनुष्य राष्ट्र रूप में एक ही है, वैसे ही विविध रूप में प्रकट होते हुए भी सभी देवो में एक ही परमात्मा व्याप्त है. इन्ही परमात्मा को ब्राह्मण ग्रंथो में प्रजापति कहा गया है.
आगे के उपनिषद काल में, ऋग्वेद के नासीदीय सूक्त (सृष्टी के रचना सम्बन्धी सूक्त ) में जो प्रचंड चिंतन किया गया था उसी का सूक्ष्म चिंतन करते हुए एकेश्वरवाद की अवधारणा को विस्तार दिया गया.
उपनिषदों ने चिंतन द्वारा यह स्थापित किया कि सृष्टी पांच तत्वों से मिल के बनी है और इन पांच तत्वों का स्वामी महातत्व है जिनमें यह पञ्चतत्व विद्यमान रहते हैं.
‘काल’ पाकर यह महातत्व फैलने लगता है और उसी से सृष्टी का जन्म, रचना और विकास होता है. फिर एक समय ऐसा आता है जब वह सिमटने लगता है और फिर सारा फैलाव सिमट कर महातत्व में फिर से केन्द्रित हो जाता है.
इस बात को समझाने के लिए वृ. उपनिषद में मकडी के जाले की उपमा का प्रयोग किया गया है कि जैसे मकड़े के भीतर से जाली निकल कर चारों ओर छा जाती है उसी प्रकार सृष्टी का सृजन होता है फिर वह जाली सिमटकर भीतर चली जाती है.
यही सृष्टी का विनष्ट होना है. इस पूरी प्रक्रिया को सूक्ष्म रूप से समझने के लिए उपक्रम के तौर पर द्वैत और अद्वैत सिद्धांत का प्रयोग उपनिषदों ने किया और कालांतर में षडदर्शनों का विकास हुआ और जड़ व् चेतन, जीव एवं प्रकृति, आत्मा और ब्रह्म, पुरुष एवं प्रकृति जैसी जटिल समस्याओं का विचारा आया.
इन्हीं सब प्रश्नों को जैन व बौद्ध धर्म में भी अपनी अपनी शब्दावली में सोचा गया और विश्व की अन्य प्राचीन संस्कृतियों में भी ऐसी समस्याओं के ऊपर विचार होते रहे.
इन सब के फलस्वरूप, उपनिषद काल के चिंतको ने वैदिक प्रजापति को ब्रह्म के रूप में स्थापित कर दिया और यज्ञ मार्गी जीवन के स्थान पर तीन मार्गो को रेखांकित किया- ज्ञान मार्ग, और कर्म मार्ग (भक्ति मार्ग के ऊपर भी कहीं कहीं चिंतन मिलता है) जिसका अनुसरण करते हुए ब्रह्म में विलीन हो कर मोक्ष की प्राप्ति की जा सकती है.
उपनिषदों के निचोड़ ने मोटे तौर पर यह स्थापित किया कि यज्ञ मार्ग या भोग मार्ग के सिद्धांत की जगह कर्मफलवाद का सिद्धांत सही है. मनुष्य जैसा कर्म करता है उसे वैसा फल भुगतना पड़ता है.
इसीलिए मनुष्य को चाहिए के वो अपना कर्म सुधारे क्योकि उसके सुधरने से मनुष्य का अगला जन्म अच्छा होगा और उस जन्म में भी जब वह अच्छा कर्म करेगा तो उसका तीसरा जन्म और भी अच्छा होगा.
इस प्रकार, जन्म जन्मान्तर तक पवित्र कर्म करते करते उसकी मुक्ती हो जायेगी और वह जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हो कर मोक्ष (ब्रह्म में विलीन ) हो जाएगा.गीता उपनिषद कही जाती है, इसीलिए यह निगम ग्रन्थ है. किन्तु यह भागवत आगम ग्रन्थ भी समझी जाती है. भगवान् कृष्ण का महत्त्व यह है कि उन्होंने प्राचीन भागवत संप्रदाय को वेदांत दर्शन के ज्ञान और संख्या दर्शन के अध्यात्म से एकाकार कर दिया.
गीता वह ग्रन्थ है जिसमें भारत की वैदिक, प्राग्वैदिक और वेदिकोत्तर धाराएं, निगम और और आगम, एक जगह आकर एकीकृत हो जाती हैं. वेदों और उपनिषदों के सर्ववाद और आगमों के इश्वर को गीता एकाकार कर देती है और वह विश्वास प्रकट करती है कि जो एक है, वही सबमें व्याप्त है.
निगम ग्रंथो के अनुसार मुक्ति के कारण सिर्फ कर्म और ज्ञान समझे जाते थे परन्तु गीता ने आगम ग्रंथो से देवत्व के भाव को ग्रहण करते हुए ज्ञान और कर्म मार्ग के साथ-साथ भक्ती की भी सार्थकता प्रतिपादित की और धर्म और मुक्ती को आम जनों के लिए सरल बना दिया.
जो कठिन चिंतन और अत्यधिक उच्च कर्मो को करने में असमर्थ थे, जो कठिन प्रक्रियाएं अपना कर साक्षात ब्रह्म का अनुभावन करने में असमर्थ थे और सरल तौर पर जैसे प्रतिमा पूजन और सरल भाव से किसी भी प्रभु के स्मरण और स्तवन मात्र से भी मुक्ति के आकांक्षी थे.
इसीलिए गीता को हिन्दू धर्म का सर्वमान्य ग्रन्थ माना जाता है और लगभग सारे विद्वान् और सुधारक अपनी पक्षसिद्धि के लिए गीता की व्याख्या अवश्य लिखते हैं.अतः सनातन धर्म में एकेश्वरवाद किसी निर्वात में अचानक से नहीं उत्पन्न हुआ और ना ही एक क्रान्ति के रूप अवतरित हुआ. वस्तुतः सनातन धर्म में एकेश्वरवाद दीर्घ-काल के चिंतन का प्रतिफल है और प्रसव काल की पीड़ा सह कर प्राकृतिक तरह से जन्मा.
कालांतर में पश्चिमी विचारकों ने भारत के एकेश्वरवाद को लेकर दीर्घकालीन प्रयोग को न समझ कर अपने दृष्टिकोण से भारत के धर्म और अध्यात्म की व्याख्या की.

No comments:

Post a Comment