Monday, 23 January 2017

क्यों विश्वविख्यात था नालंदा विश्वविद्यालय
•    प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना गुप्त काल के दौरान 5वीं सदी(413 ईस्वीं) में हुई थी. लेकिन, 1193 में आक्रमण के बाद इसे नेस्तनाबूत कर दिया गया था.
•    अगर प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय नष्ट नहीं किया जाता तो यह विश्व के सबसे पुराने विश्वविद्यालयों इटली की बोलोना (1088), काहिरा की अल अज़हर (972) और ब्रिटेन की ऑक्सफ़ोर्ड (1167) से भी कुछ सदियों पुरानी होती.
•    इस विश्वविद्यालय की स्थापना का श्रेय गुप्त शासक कुमार गुप्त प्रथम 450-470 को प्राप्त है.
•    इस विश्वविद्यालय को कुमार गुप्त के उत्तराधिकारियों का पूरा सहयोग मिला. गुप्तवंश के पतन के बाद भी आने वाले सभी शासक वंशों ने इसकी समृद्धि में अपना योगदान जारी रखा. इसे महान सम्राट हर्षवर्द्धन और पाल शासकों का भी संरक्षण मिला.
•    उस दौरान नालंदा को स्थानीय शासकों और भारत की दूसरी रियासतों के साथ ही कई विदेशी शासकों से भी अनुदान मिलता था. यह विश्व का प्रथम पूर्णतः आवासीय विश्वविद्यालय था. उस समय इसमें विद्यार्थियों की संख्या करीब 10,000 और अध्यापकों की संख्या 1500 थी. यहां भारत से ही नहीं कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, फारस तथा तुर्की से भी विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने आते थे.
•    नालंदा के प्रसिद्ध आचार्यों में शीलभद्र, धर्मपाल, चंद्रपाल, गुणमति और स्थिरमति प्रमुख थे.
•    सातवीं सदी में ह्वेनसांग के समय इस विश्व विद्यालय के प्रमुख शीलभद्र थे. प्रसिद्ध भारतीय गणितज्ञ एवं खगोलज्ञ आर्य भट भी इस विश्वविद्यालय के प्रमुख रहे थे.
•    बौद्ध धर्म, व्याकरण, दर्शन, शल्य विद्या, ज्योतिष, योग शास्त्र तथा चिकित्साशास्त्र भी पाठ्यक्रम के अन्तर्गत थे.
•    नालंदा विश्वविद्यालय का मुख्य उद्देश्य- ऐसी पीढियों का निर्माण करना था, जो न केवल बौद्धिक बल्कि आध्यात्मिक हों.
•    तिब्बती परंपरा के अनुसार, विश्वविद्यालय में चार दृष्टिकोण निहित संग्रहों को आयोजित किया गया, जिसे नालंदा में पढ़ाया जाता था. जिसमें शामिल हैं: सर्वास्तिवदा  सौत्रांतिका , सर्वास्तिवदा वैभिका , महायान के प्रवर्तक नागार्जुन, वसुबन्धु, असंग तथा धर्मकीर्ति की रचनाओं का विस्तृत रूप से अध्ययन.
•    नालंदा विश्वविद्यालय के अधिकतर छात्र तिब्बतीय बौद्ध संस्कृतियों वज्रयान और महायान से संबद्ध थे. इनमें शिक्षकों की संख्या भी अधिक थी. बौद्ध सूक्ष्मवाद के प्राथमिक सिद्धांतकारों और भारतीय दार्शनिक तर्कशास्त्र के बौद्ध संस्थापकों में से एक महान विद्वान धर्मकीर्ति जैसे आचार्य यहां विद्यार्थियों का मार्गदर्शन किया करते थे.
•    बौद्ध संन्यासियों ने पहले वहां एक अध्ययन केंद्र स्थापित किया.
•    विश्वविद्यालय की प्रशासनिक प्रणाली, एक तरह से लोकतांत्रिक थी.
•    नालंदा के स्नातक बाहर जाकर बौद्ध धर्म का प्रचार करते थे.
•    नालंदा विश्वविद्यालय का पुस्तकालय ‘धर्म गूंज’, जिसका अर्थ है ‘सत्य का पर्वत’, संभवतः दुनिया का सबसे बड़ा पुस्तकालय था. यह दुनिया भर में भारतीय ज्ञान का अब तक का सबसे प्रतिष्ठित और प्रसिद्ध केन्द्र था. ऐसा कहा जाता है कि पुस्तकालय में हजारों की संख्या में पुस्तकें और संस्मरण उपलब्ध थे. इस विशालकाय पुस्तकालय के आकार का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसमें लगी आग को बुझाने में छह महीने से अधिक का समय लग गया. इसे इस्लामिक आक्रमणकारियों ने आग के हवाले कर दिया था. नालंदा विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में तीन मुख्य भवन थे, जिसमें नौ मंजिलें थी. तीन पुस्तकालय भवनों के नाम थे रत्नरंजक’, ‘रत्नोदधि’, और ‘रत्नसागर’.

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