Thursday 5 January 2017

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जो मित्र इजरायल में लड़के या लड़कियों द्वारा अत्याधुनिक हथियार लेकर घूमे जाने पर आश्चर्य व्यक्त कर रहे है तो उन्हें मैं बता दूं इसराइल में हर नागरिक सैनिक है वह हर एक छात्र को ग्रेजुएशन की डिग्री तभी मिलती है जब वह 2 साल का सैन्य ट्रेनिंग पूरा कर लेता है । सभी को सेना के द्वारा जो हथियार मिलते हैं उन्हें वह अपने घर ले जा सकता है और हर समय अपने साथ रख सकता है । हर एक चौराहे पर या मोहल्ले पर एक खास तरह के अलार्म सिस्टम लगे होते हैं जब भी कोई संकट आती है अलार्म बजता है और सभी है नागरिको हथियार लेकर बाहर निकल आते हैं ।
इजरायली कानून के अनुसार कोई भी इसराइली नागरिक किसी भी फिलिस्तीनी को या अरब देश के नागरिक को गोली मार सकता है उसके ऊपर हत्या का केस नहीं चलेगा
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हमारे दो पवित्र ग्रंथ रामायण और महाभारत में किसी भी पात्र के नाम के साथ उपनाम नही है।
जैसे रामचन्द जी के नाम के साथ, न तो सिंह जुड़ा है, न लाला, न ही चौधरी..
दशरथ जी के नाम के साथ ना तो सिंह जुड़ा है, ना चौधरी, ना ठाकुर और न ही अन्य कुछ..
यहां तक की रामायण को लिखने वाले वाल्मीकि जी के नाम के साथ भी कोई उपनाम नही जुड़ा है।
महाभारत के किसी भी पात्र, श्री कृष्ण, अर्जुन, युधिष्टर, भीष्म, कुंती, सजंय, विदुर, के साथ भी कोई उपनाम नही है।
इससे यही सिद्ध होता है कि उपनाम सामाजिक विकृति है, जो विधर्मियों द्वारा हिन्दू समाज को तोड़ने हेतु कालांतर में उतपन्न की गई है।
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Jitendra Pratap Singh
हम व्यक्तिगत चिंता से घिरे हुए है, हम व्यक्तिगत नुकसान से डरते है. इसीलिए डर के तमाम कारक हमारे घर में प्रवेश कर रहे है. लेकिन हम उस डर को गले से लगाकर बैठे है. मुस्लिम समाज के अंदर दिखने वाली ऐसी बाते जिससे गैर मुस्लिमो का जीना मुश्किल होता है उन सारी बातों को हम मुस्लिमों के सामने दृढ़ता से बोलने को,लिखने को ,चर्चा करवाने को डरते है. हम डरते है के हम यह सच्चाई बोलने लगे तो कही ये हमारी जान ना लेले. उनके लिए यह मुश्किल भी तो नही है. बस 'इस्लाम खतरे में है' इतना ही उन्हें चिल्लाना होता है.

. हम हिन्दू ऐसे है के पडोसी के घर को आग लगी हुई हो तो हम मदद करने जाने के बजाये अपने घर में दरवाजा बंद करके बैठना पसंद करते है. हम तब तक निश्चिन्त रहते है जब तक आग हमारे घर को न लग जाए. आने वाले दिनों में सेक्युलरीसम के नाम पर महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान के अंदर हिंदुओं के घर जलाये जाने वाले है, वह वक्त आनेमे अभी कुछ साल और बीतेंगे. लेकिन तब तक हम सोये रहेंगे. इससे परमानैंट छुटकारा पाना है तो हमें इस्लाम की समाने दिखने वाली बुराईया खुद मुसलमानों को बताते रहना चाहिए. इससे उनके अंदर सुधारानाये आये तो अखिल मानव जाती का कल्याण हो जाएगा. बस, चुप मत रहो जो जो सच्चाईया है वह मुसलमानों को बताते रहो, लिखते रहो. इससे आतंकवादी मानसिकता जिसमे इस्लाम गैरमुस्लिमों का जीने का अधिकार की नकारता है, उसमे बदलाव अवश्य आयेगा. दूध में शक्कर की तरह अगर इस्लाम रह सके तो उसका बाकीका समाज स्वागत जी करेगा. लेकिन हमें उसके लिए सच बोलने से होनेवाले नुकासान के डर से खुद को मुक्त कराना होगा. मुसलामनों को पता तो चले की बाकीकी दुनिया उनके बारे में क्या सोचती है ?

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