Saturday, 21 January 2017



आज बहुत ख़ुशी हुई ... शायद विश्वास नही होता अगर इस कबूतर के पैरो पर पेंट नही लगा होता ...

मेरे घर में अक्सर एक कबूतर का जोड़ा आकर रहता था .. जब भी दरवाजा या बालकनी खुली होती ये दोनों मेरे घर में घुस जाते ..हम लोग इन्हें खाने के दाने भी देते रहते थे ... एक तरह से दोस्ती हो गयी थी ... फिर एक बेहद दुखद घटना हुई ..करीब 15 दिन पहले पोछा सूखने के लिए पंखा चल रहा था तो एक कबूतर पंखे की चपेट में आ गया .. और उसके गर्दन के पास बहुत चोट लगी और वो बेड पर गिर गया .. खून से बेड लाल हो गया .. तुरंत उठाकर डिटोल लगाया और चोट पर बैडेज लगाया .. फिर जीवदया का काम करने वाली मित्रNeha Patel को फोन किया की किसी डाक्टर को मेरे घर भेजो ... थोड़ी देर में एक संस्था का आदमी पिंजरालेकर आया और घायल कबूतर को पांजरापोल लेकर गया .. जो मेरे घर से करीब बीस किमी दूर है ..

आज आराम कर रहा था तो कानो में वही जानी पहचानी आवाज गूंजी ..जैसे कोई बुला रहा हो ..दोस्त मै आ गया ..देखा तो आँखों पर विश्वास नही हुआ ..वही कबूतर स्वस्थ होकर मेरे घर में बैठा हुआ गुटरूं गू कर रहा था .फिर उसके पास जाकर उसके पैरो को देखा ..वही पेंट के निशान जो एक बार मेरे घर की पेंटिग के समय पेंट पर बैठने से लग चुके थे ...

सच में ...बहुत ख़ुशी हुई .. और सोच रहा हूँ की इस कबूतर ने अहमदाबाद जैसे विशाल कंक्रीट के जंगलो में मेरा घर कैसे खोज लिया ?    ....
Jitendra Pratap Singh

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