Sunday, 29 January 2017

 असली इतिहास, जो कि पुस्तकबद्ध भी है!
एक फ़िल्मकार हैं संजय लीला भंसाली । आजकल एक फ़िल्म बना रहे हैं .. पद्मावती ।
 एक नजर असली इतिहास पर :-
26 अगस्त इतिहास स्मृति – चित्तौड़ पद्द्मिनी का जौहर ।।।
जौहर की गाथाओं से भरे पृष्ठ भारतीय इतिहास की अमूल्य धरोहर हैं ।
ऐसे अवसर एक नहीं, कई बार आए हैं, जब हिन्दू ललनाओं ने अपनी पवित्रता की रक्षा के लिए ‘जय हर-जय हर’ कहते हुए हजारों की संख्या में सामूहिक अग्नि प्रवेश किया था । यही उद्घोष आगे चलकर ‘जौहर’ बन गया । जौहर की गाथाओं में सर्वाधिक चर्चित प्रसंग चित्तौड़ की रानी पद्मिनी का है, जिन्होंने 26 अगस्त, 1303 को 16,000 क्षत्राणियों के साथ जौहर किया था ।
पद्मिनी का मूल नाम पद्मावती था । वह सिंहलद्वीप के राजा रतनसेन की पुत्री थी. एक बार चित्तौड़ के चित्रकार चेतन राघव ने सिंहलद्वीप से लौटकर राजा रतन सिंह को उनका एक सुंदर चित्र बनाकर दिया । इससे प्रेरित होकर राजा रतन सिंह सिंहलद्वीप गए और वहां स्वयंवर में विजयी होकर उन्हें अपनी पत्नी बनाकर ले आए. इस प्रकार पद्मिनी चित्तौड़ की रानी बन गयीं।
पद्मिनी की सुंदरता की ख्याति अलाउद्दीन खिलजी ने भी सुनी थी। वह उसे किसी भी तरह अपने हरम में डालना चाहता था। उसने इसके लिए चित्तौड़ के राजा के पास धमकी भरा संदेश भेजा, पर राव रतन सिंह ने उसे ठुकरा दिया ।
अब वह धोखे पर उतर आया। उसने रतन सिंह को कहा कि वह तो बस पद्मिनी को केवल एक बार देखना चाहता है। रतन सिंह ने खून-खराबा टालने के लिए यह बात मान ली।
एक दर्पण में रानी पद्मिनी का चेहरा अलाउद्दीन को दिखाया गया।
वापसी पर रतन सिंह उसे छोड़ने द्वार पर आए।
इसी समय उसके सैनिकों ने धोखे से रतन सिंह को बंदी बनाया और अपने शिविर में ले गए। अब यह शर्त रखी गयी कि यदि पद्मिनी अलाउद्दीन के पास आ जाए, तो रतन सिंह को छोड़ दिया जाएगा।
यह समाचार पाते ही चित्तौड़ में हाहाकार मच गया, पर पद्मिनी ने हिम्मत नहीं हारी। उसने कांटे से ही कांटा निकालने की योजना बनाई।
अलाउद्दीन के पास समाचार भेजा गया कि पद्मिनी रानी हैं, अतः वह अकेले नहीं आएंगी.।
उनके साथ पालकियों में 800 सखियां और सेविकाएं भी आएंगी।
अलाउद्दीन और उसके साथी यह सुनकर बहुत प्रसन्न हुए। उन्हें पद्मिनी के साथ 800 युवतियां अपने आप ही मिल रही थीं, पर उधर पालकियों में पद्मिनी और उसकी सखियों के बदले सशस्त्र वीर बैठाये गए। हर पालकी को चार कहारों ने उठा रखा था, वे भी सैनिक ही थे पहली पालकी के खिलजी के शिविर में पहुंचते ही रतन सिंह को उसमें बैठाकर वापस भेज दिया गया और फिर सब योद्धा अपने शस्त्र निकालकर शत्रुओं पर टूट पड़े।
कुछ ही देर में शत्रु शिविर में हजारों सैनिकों की लाशें बिछ गयीं।
इससे बौखलाकर अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ पर हमला बोल दिया।
इस युद्ध में राव रतन सिंह तथा हजारों सैनिक मारे गए।
जब रानी पद्मिनी ने देखा कि अब जीतने की आशा नहीं है, तो उसने जौहर का निर्णय किया।
रानी और किले में उपस्थित सभी नारियों ने सम्पूर्ण श्रृंगार किया।
हजारों बड़ी चिताएं सजाई गयीं. ‘जय हर-जय हर’ का उद्घोष करते हुए सर्वप्रथम पद्मिनी ने चिता में छलांग लगाई और फिर क्रमशः सभी वीरांगनाएं अग्नि प्रवेश कर गयीं।
जब युद्ध में जीत कर अलाउद्दीन पद्मिनी को पाने की आशा से किले में घुसा, तो वहां जलती चिताएं उसे मुंह चिढ़ा रही थीं।

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