महाभारत के भीष्म जी ने दीर्घ आयु प्राप्त करने के यह उपाय बतााये हैं :-
१) सदाचार से दीर्घ आयु, श्री और कीर्ति प्राप्त होती है ।
२) नास्तिकता,आलस्य,गुरू की आज्ञा और शास्त्र की आज्ञा का उल्लंघन करना ये बातें आयु का नाश करती हैं ।
३) शील और मर्यादा को छोड़ना और व्याभिचार करना ये दो बातें आयु का नाश करती हैं ।
४) क्रोध न करना, सत्य का पालन करना, हिंसा न करना, असूया ( चुगली ) न करना, कुटिल्ता न करना, इससे १०० वर्ष की आयु प्राप्त होती है ।
५) नाखून खाना, उच्छिष्ट भक्षण करना इनसे आयु का नाश होता है ।
६) ब्रह्ममुहूर्त में उठकर धर्म का विचार करना और दोनो संधिकाल में संध्या करना । इससे भी दीर्घायु प्रप्त होती है ।
७) व्याभिचार न करना , क्योंकि व्याभिचार से आयुष्य का नाश होता है ।
८) माता पिता और आचार्य को नमस्कार करना ।
९) ग्राम के पास शौच न करना ।
१०) जूता, वस्त्र, पात्रदूसरे का वर्ता हुआ धारण न करना । अपने एक पाँव से दूसरा पाँव न घसीटना, नित्य ब्रह्मचर्य से रहना ।
११) आक्रोश, झगड़ा न करना ।
१२) किसी को मर्मवेदी वाक्य न बोलना । निन्दा न करना, हीन से किसी पदार्थ को स्विकार न करना ।
१३) पाँव गीले रख कर भोजन करना ।
१४) केशों को न खींचना, सिर पर प्रहार न करना । दोनो हाथों से सिर न खुजलाना ।
१५) दुर्गन्ध वायु में न ठहरना ।
१६) छुट्टी के दिन पढ़ना नहीं ।
१७) सोने के समय दूसरा वस्त्र पहनना ।
१८) कभी कभी उपवास करना ।
१९) एक पात्र में दूसरे के साथ भोजन न करना ।
२०) रजस्वाला स्त्री का बनाया हुआ भोजन न करना ।
२१) निषिद्ध अन्न का सेवन न करना ।
२२) दिन में दो बार ही भोजन करना और बीच में कुछ न खाना ।
२३) जिस अन्न में केश हों उसको न खाना ।
२४) संध्याकाल में न सोना, न पढ़ना और न खाना ।
२५) सदा प्रयत्न करते रहना । क्योंकि प्रयत्नशील मनुष्य को ही सुख प्राप्त होता है ।
२६) ऐसी अपनी शक्ति बढ़ानी कि जिससे शत्रुओं का हमला न हो सके तथा अपने नौकर और स्वजन अपना अनादर न कर सकें ।
२७) सदा ही श्रेष्ठ पुरुषों का जीवन चरित्र पढ़ना ।
१) सदाचार से दीर्घ आयु, श्री और कीर्ति प्राप्त होती है ।
२) नास्तिकता,आलस्य,गुरू की आज्ञा और शास्त्र की आज्ञा का उल्लंघन करना ये बातें आयु का नाश करती हैं ।
३) शील और मर्यादा को छोड़ना और व्याभिचार करना ये दो बातें आयु का नाश करती हैं ।
४) क्रोध न करना, सत्य का पालन करना, हिंसा न करना, असूया ( चुगली ) न करना, कुटिल्ता न करना, इससे १०० वर्ष की आयु प्राप्त होती है ।
५) नाखून खाना, उच्छिष्ट भक्षण करना इनसे आयु का नाश होता है ।
६) ब्रह्ममुहूर्त में उठकर धर्म का विचार करना और दोनो संधिकाल में संध्या करना । इससे भी दीर्घायु प्रप्त होती है ।
७) व्याभिचार न करना , क्योंकि व्याभिचार से आयुष्य का नाश होता है ।
८) माता पिता और आचार्य को नमस्कार करना ।
९) ग्राम के पास शौच न करना ।
१०) जूता, वस्त्र, पात्रदूसरे का वर्ता हुआ धारण न करना । अपने एक पाँव से दूसरा पाँव न घसीटना, नित्य ब्रह्मचर्य से रहना ।
११) आक्रोश, झगड़ा न करना ।
१२) किसी को मर्मवेदी वाक्य न बोलना । निन्दा न करना, हीन से किसी पदार्थ को स्विकार न करना ।
१३) पाँव गीले रख कर भोजन करना ।
१४) केशों को न खींचना, सिर पर प्रहार न करना । दोनो हाथों से सिर न खुजलाना ।
१५) दुर्गन्ध वायु में न ठहरना ।
१६) छुट्टी के दिन पढ़ना नहीं ।
१७) सोने के समय दूसरा वस्त्र पहनना ।
१८) कभी कभी उपवास करना ।
१९) एक पात्र में दूसरे के साथ भोजन न करना ।
२०) रजस्वाला स्त्री का बनाया हुआ भोजन न करना ।
२१) निषिद्ध अन्न का सेवन न करना ।
२२) दिन में दो बार ही भोजन करना और बीच में कुछ न खाना ।
२३) जिस अन्न में केश हों उसको न खाना ।
२४) संध्याकाल में न सोना, न पढ़ना और न खाना ।
२५) सदा प्रयत्न करते रहना । क्योंकि प्रयत्नशील मनुष्य को ही सुख प्राप्त होता है ।
२६) ऐसी अपनी शक्ति बढ़ानी कि जिससे शत्रुओं का हमला न हो सके तथा अपने नौकर और स्वजन अपना अनादर न कर सकें ।
२७) सदा ही श्रेष्ठ पुरुषों का जीवन चरित्र पढ़ना ।
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