Friday 31 January 2014

पादरियों के द्वारा बेहद तेजी से बढ़ते यौनाचार पर वेटिकन खामोश क्यों ?

पादरियों के द्वारा बेहद तेजी से बढ़ते यौनाचार पर वेटिकन खामोश क्यों ?

[आर. एल. फ्रांसिस ]

जिनेवा स्थित एक संयुक्त राष्ट्र पैनल ने रोमन कैथोलिक पादरियों द्वारा हजारों बच्चों के यौन शोषण पर वेटिकन अधिकारियों की एक रिपोर्ट पर सुनवाई शुरु कर दी है। इसके पहले वेटिकन इस तरह की कोई जानकारी संयुक्त राष्ट्र के साथ साझा करने से इनकार करता रहा है। वेटिकन का शुरु से ही यह मत रहा है कि इन मामलों की जिम्मेदारी उन देशों की न्यायपालिकाओं की है जहां यह यौन शोषण हुए है। पादरियों द्वारा बच्चों के यौन शोषण के मामलों में सही प्रतिक्रिया नहीं देने के लिए वेटिकन की आलोचना की गई।

संयुक्त राष्ट्र में सुनवाई को लेकर पीड़ितों को उम्मीद है कि इस सुनवाई से चर्च की ‘‘गोपनीयता’’ की नीति का अंत होगा। पोप फ्रांसिस ने अपना पद सभालने के बाद कहा था कि यौन शोषण के मामलों को निपटाना चर्च की विश्रसनीयता बनाए रखने के लिए जरुरी है। बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक दी होल सी, वेटिकन सिटी के सदस्यों को जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र की समिति के समक्ष इस मामले पर सफाई देनी होगी। वेटिकन की विधाई संस्था दी होली सी ने ‘संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार समझौते’ पर दस्तखत किए है जिसके तहत वो बच्चों को संरक्षण और सही देखभाल के लिए कानूनी रुप में बाध्य है।

ऐसा पहली बार होगा जब संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार समिति (यूएनसीआरसी) विस्तृत सवाल-जवाब करेगी और होल सी सार्वजनिक मंच पर अपना बचाव करेगा। वेटिकन पर आरोप है कि उसने पीड़ितों के बजाय बच्चों का शोषण करने वाले पादरियों का बचाव किया जिसकी वजह से हजारों बच्चों को यौन शोषण का शिकार होना पड़ा। पिछले साल जुलाई में संयुक्त राष्ट्र समिति ने वेटिकन से अनुरोध किया था कि वो साल 1995 के बाद से सामने आए यौन शोषण के सभी मामलों की विस्तृत जानकारी दे। दी होली सी से यह भी पूछा जा सकता है कि क्या अपराधों के दोषी पादरी, नन और साधुओं को दोषी पाए जाने के बाद भी बच्चों के संपर्क में रहने दिया गया, ऐसे लोगों के खिलाफ क्या कानूनी कार्रवाई की गई और क्या शिकायत करने वालों की आवाज दबाई गई?

पोप बेनेडिक्ट सौहलवें ने जब 19 अप्रैल 2005 को कैथोलिक चर्च की कमान संभाली थी तो उस समय कैथोलिक ईसाइयों को उनसे काफी उम्मीदें थी कि वह चर्च के कायदे-कानूनों में बदलाव लाएगें, सबसे विवादास्पपद मामला पादरियों द्वारा बच्चों के यौन उत्पीड़न से जुड़ा था जिसे लेकर मुकदमें तक हुए और कई देशों में पीड़ितों को चर्च द्वारा भारी मुआवजा भी देना पड़ा। सबसे दुखद यह कि पोप के आलोचकों ने उन पर ऐसे मामलों की लीपापोती करने में सहभागी होने के आरोप भी लगाए। दरअसल वेटिकन हजारों सालों से पूरे संसार पर अपना वर्चस्व स्थापित करना चाहता है। पोप जॉन पॉल द्वितीय ने साल 1999 के अपने भारत दौरे के दौरान इस तरह का साफ ऐलान ही कर दिया था।

पोप जॉन पॉल द्वितीय ने कहा था कि किस तरह ईसा की पहली सहस्राब्दी में यूरोपीय महाद्वीप को कैथोलिक चर्च ने पाया और दूसरी सहस्राब्दी आते आते उत्तर और दक्षिणी महाद्वीपों व अफ्रीका पर चर्च का वर्चस्व स्थापित हो गया और अब तीसरी सहस्राब्दी एशिया महाद्वीप की है। वेटिकन दावा कर रहा है कि चर्च की शरण में आने पर ही मानव जाति को अपने पापों से मुक्ति तथा स्वर्ग का साम्राज्य मिल सकता है। पूरे संसार को चर्च की शरण में लाने की योजना में लगे हुए चर्च के पास अपने अनुयायियों की पुकार को सुनने का समय ही नहीं है।

डेड हजार साल पहले कैथोलिक चर्च की शरण में आए अमेरिका और यूरोप के धर्मांतरित कैथलिकों के वंशज विगत कई दशकों से पोप के पास दुहोई दे रहे थे कि उन्हें चर्च के शोषण से बचाओं। वो चिल्ला चिल्ला कर कह रहे थे कि तुम्हारा पूरा सिस्टम ऊपर से नीचे तक पाप में डूबा हुआ है, परन्मु वेटिकन सुनने को ही तैयार नही था। ईसाई धर्म में अनेक चर्च एवं डिनोमिनेशन है पर इन सबमें रोमन कैथोलिक चर्च संख्या, बल और प्रभाव में सबसे अग्रणी भी है और सबसे ज्यादा पापाचार में लिप्त भी। इस चर्च के भीतर यह पापाचार कब से फैला हुआ है कहना कठिन है। भारत समेत अधिक्तर देशों में सधारण विश्वासियों के साथ साथ चर्च की नने (धर्म-बहने) भी यौन शोषण का शिकार रही है। हालही में इटली की एक नन ने एक बच्चे को जन्म दिया है और उसका नाम पोप फ्रंासिस के नाम पर रखा है। चर्च का दावा है कि नन को मालूम ही नही था कि वह गर्भवती है। लेकिन पाप का घड़ा तो भरता ही है और भर कर फूटता भी है।

अमेरिका और यूरोप में पचास साल पहले ही चर्च के प्रति विद्रोह के स्वर उठने लगे थे। साल 1963 में अमरीका के न्यू मैक्सिको स्थित ‘सर्वेन्ट्स आफ दि होली पोर्सलीट’ के प्रमुख ने पोप जॉन पाल छठ्म से मुलाकात करके चर्च के अंदर फैले अनाचार को खत्म करने की मांग की थी। वेटिकन ने फादर फिट्ज गेराल्ड की शिकायत को चर्च के हित की दुहाई देते हुए खारिज कर दिया। तब से अब तक वेटिकन में चार नये चेहरे आ चुके हैं-पोप जॉन पाल छट्म, पोप जॉन पाल द्वितीय, पोप बेनेडिक्ट सोहलवें और अब पोप फ्रांसिस। पिछले पचास सालो में न जाने कितनी शिकायते वेटिकन के पास पंहुची और प्रत्येक परमपिता पोप इस पर चुप्पी साधे बैठा रहा।

वेटिकन की चुप्पी को देखते हुए अमेरिका और यूरोप के विश्वासियों ने इसके विरुद्ध अनेक मंच गठित किए और उनकी सार्वजनिक अपील पर हजारों भुक्तभोगी, जो कल तक चुप थे, खुलकर सामने आ गए। नीदरलैंड में ‘हेल्प एण्ड लॉ लाइन’ और अमेरिका में ‘सर्वाइवर्स नेटवर्क फार एब्यूज्ड बाई चर्च’ के कारण पीड़ितों में साहस आया और जो पहले अपने को अकेला समझ कर या दूसरे दबावों के कारण चुप थे खुल कर सामने आने लगे है।

सोचने वाली बात यह है कि पापाचार को रोकने से अधिक महत्वपूर्ण वेटिकन का हित क्या हो सकता है? चर्च मत के अनुसार मनुष्य जन्म से ही पापी है और इस पाप कर्म से बाहर निकलने पर ही उसका उद्वार संभव है। ऐसे में चर्च को ऐसे पापाचारी पादरियों से मुक्त करना उसकी पहली चिन्ता होनी चाहिए। लेकिन वर्तमान समय में चर्च का लक्ष्य कुछ और ही है। वेटिकन ने एक बड़ा ही असान रास्ता पकड़ लिया है कि जिस पादरी के विरुद्व शिकायत मिले, उसका तुंरत तबादला कर दो या फिर उसका दायित्व बदल दो। तांकि चर्च के काम में कोई रुकावट न आए।

यूरोप और अमेरिका के कैथोलिक विश्वासियों के दिलो में सैकड़ों सालों से समाया वेटिकन का गौरव मंद होने लगा है। यूरोप और अमेरिका के विश्वासियों के बीच अपनी मंद पड़ती छवि को लेकर चिंतित चर्च ने नए क्षेत्रों में अपने पांव फैलाने शुरु कर दिए है। इस कार्य के लिए वह राज्यशक्ति का भी उपयोग कर रहा है। भारत में तेज रफतार से नए चर्च और नए डायसिस बनाए जा रहे है। यह काम कितनी तेजी से हो रहा है इसे केवल इस बात से ही समझा जा सकता है कि भारत में कार्यरत वेटिकन के राजदूत द्वारा तीन सालों के अंदर ही 25 बिशप बनाए गए है। हालाकि भारत के धर्मांतरित ईसाइयों की समस्याओं पर वेटिकन अपने कान बंद किए हुए है।

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