Thursday, 16 January 2014

'आप' के शहर की दास्तान....

'आप' के शहर की दास्तान.... 

स्टेशन पे एक कुली से बाहर जाने का रास्ता पूंछा .
कुली ने कहा: ” बाहर जाके पूंछो .”
मैंने ख़ुद ही रास्ता ढूंढ़ लिया ,  

बाहर जाके टैक्सी वाले से पूंछा :
” भाई साहब लाल किले का कितना लोगे ?”
जवाब मिला: ” बेचना नही है .”
टैक्सी छोड़ , मैंने बस पकड़ ली 

कंडक्टर से पूंछा: “जी , क्या मैं सिगरेट पी सकता हूँ ?”
वो गुर्र्रा कर बोला : “हरगिज़ नही , यहाँ सिगरेट पीना मन है.”
मैंने कहा: “पर वो जनाब तो पी रहे है!”
फिर से गुर्र्र्राया : “उसने मुझसे पूंछा नही है.” 

लाल किले पंहुचा , होटल गया .
मेनेजर से कहा: “मुझे रूम चाहिए , सातवी मंजिल पे .”
मेनेजर ने कहा: “रहने के लिए या कूदने के लिए ?” 

रूम पंहुचा , वेटर से कहा:
” एक पानी का गिलास मिलेगा ?”
उसने जवाब दिया: “नही साहब , यहाँ तो सारे कांच
के मिलते हैं.” 

होटल से निकला , दोस्त के घर जाने के लिए ,
रास्ते में एक साहब से पूंछा:
” जनाब , ये सड़क कहाँ को जाती है ?”
जनाब हंस कर बोले: “पिछले बीस साल से देख रहा हूँ ,
यही पड़ी है ...   

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