Friday, 31 January 2014

गणतंत्र का इतिहास ---
- पूरी दुनिया को गणतंत्र का पाठ इसी भारत की धरा से पढ़ाया गया था। हमारे ही देश में प्रथम गणतंत्र स्थापित हुआ जिसकी सफलता पूरे विश्व का ध्यान आकर्षित किया।
- राम राज्य में जब श्रीराम अयोध्या से वन को गए तो मार्ग में आने वाले अनेक छोटे छोटे राज्यों को अपने अधीन करने की जगह सशक्त स्थानीय नेतृत्त्व चुनकर उन्हें अत्याचार का प्रतिकार करने की प्रेरणा देते गए.
- गण यह मूल में वैदिक शब्द था। वहाँ 'गणपति' और 'गणनांगणपति' ये प्रयोग आए हैं। इस शब्द का सीधा अर्थ समूह था।
- सृष्टिरचना के लिए गणतत्व की अनिवार्य आवश्यकता है। नानात्व से ही जगत् बनता है।वैदिक सृष्टिविद्या के अनुसार मूलभूत एक प्राण सर्वप्रथम था, वह गणपति कहा गया। उसी से प्राणों के अनेक रूप प्रवृत्त हुए जो ऋषि, पितर, देव कहे गए। ये ही कई प्रकार के गण है। जो मूलभूत गणपति था वही पुराण की भाषा में गणेश कहा जाता है।
- "गणपति" का अभिप्राय भी गणतंत्र के शासक से है.
- गणों के स्वामी गणेश हैं और उनके प्रधान वीरभद्र जो सप्तमातृका मूर्तियों की पंक्ति के अंत में दंड धारण कर खड़े होते हैं। शिव के अनंत गण हैं जिनके वामन तथा विचित्र स्वरूपों का गुप्तकालीन कला में पर्याप्त आकलन हुआ है।
- हजारों वर्ष पहले भी भारतवर्ष में अनेक गणराज्य थे, जहाँ शासन व्यवस्था अत्यंत सुदृढ़ थी और जनता सुखी थी। गण शब्द का अर्थ संख्या या समूह से है। गणराज्य या गणतंत्र का शाब्दिक अर्थ संख्या अर्थात बहुसंख्यक का शासन है।
- इस शब्द का प्रयोग ऋग्वेद में चालीस बार, अथर्व वेद में नौ बार और ब्राह्मण ग्रंथों में अनेक बार किया गया है। वहां यह प्रयोग जनतंत्र तथा गणराज्य के आधुनिक अर्थों में ही किया गया है।
- वैदिक साहित्य में, विभिन्न स्थानों पर किए गए उल्लेखों से यह जानकारी मिलती है कि उस काल में अधिकांश स्थानों पर हमारे यहां गणतंत्रीय व्यवस्था ही थी।
- कालांतर में, उनमें कुछ दोष उत्पन्न हुए और राजनीतिक व्यवस्था का झुकाव राजतंत्र की तरफ होने लगा। ऋग्वेद के एक सूक्त में प्रार्थना की गई है कि समिति की मंत्रणा एकमुख हो, सदस्यों के मत परंपरानुकूल हों और निर्णय भी सर्वसम्मत हों। - कुछ स्थानों पर मूलतः राजतंत्र था, जो बाद में गणतंत्र में परिवर्तित हुआ।
- महाभारत के सभा पर्व में अर्जुन द्वारा अनेक गणराज्यों को जीतकर उन्हें कर देने वाले राज्य बनाने की बात आई है। महाभारत में गणराज्यों की व्यवस्था की भी विशद विवेचना है। - कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भी लिच्छवी, बृजक, मल्लक, मदक और कम्बोज आदि जैसे गणराज्यों का उल्लेख मिलता है।
- उनसे भी पहले पाणिनी ने कुछ गणराज्यों का वर्णन अपने व्याकरण में किया है।
- आगे चलकर यूनानी राजदूत मेगास्थनीज ने भी क्षुदक, मालव और शिवि आदि गणराज्यों का वर्णन किया।
- स्वयं राजा या राजवंश भी नहीं बच सकता था। राजा सागर को अपने अत्याचारी पुत्र को निष्कासित करना पड़ा था। - महाभारत के अनुशासन पर्व में स्पष्ट कहा गया कि जो राजा जनता की रक्षा करने का अपना कर्त्तव्य पूरा नहीं करता, वह पागल कुत्ते की तरह मार देने योग्य है। राजा का कर्त्तव्य अपनी जनता को सुख पहुंचाना है।
- एक बार महात्मा बुद्ध से पूछा गया कि गणराज्य की सफलता के क्या कारण हैं? इस पर बुद्ध ने सात कारण बतलाए थे-
1. जल्दी- जल्दी सभाएं करना और उनमें अधिक से अधिक सदस्यों का भाग लेना।
2. राज्य के कामों को मिलजुल कर पूरा करना।
3. कानूनों का पालन करना तथा समाज विरोधी कानूनों का निर्माण न करना।
4. वृद्ध व्यक्तियों के विचारों का सम्मान करना।
5. महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार न करना।
6 स्वधर्म में दृढ़ विश्वास रखना।
7. अपने कर्तव्य का पालन करना।
अब यह फैसला गण को ही करना है कि हमारा आज का गणतंत्र कितना सफल है।
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