दोनों हाथ नहीं हैं, लेकिन सपनों को पूरा करने का हौसला है 5वीं कक्षा की इस लड़की में ...
सपनों को हकीकत में बदलने के लिए ऊंची उड़ान की नहीं, बल्कि बुलंद हौसलों की ज़रूरत होती है. अगर आपके अंदर कुछ कर गुजरने की चाह हो तो ऊंचे से ऊंचा पहाड़ भी मिनटों में चढ़ा जा सकता है. इस कहावत को सच कर दिखाया है एक लड़की ने.
वो किसी पर बोझ नहीं बनना चाहती है. वो अपने सपने पूरा करना चाहती है. वो अपनी हिम्मत और लगन से अपने सपनों को सच कर दिखाने का माद्दा रखती है. ये है हिसार की रहने वाली मीनू. मीनू ने केवल 2 साल की उम्र में ट्रेन में हुए एक हादसे में अपने दोनों हाथ गंवा दिए थे.
मीनू के हाथ गंवाने का सदमा उसके माता-पिता के लिए बहुत ही दर्दनाक हादसा था. उनको उसकी चिंता थी कि उनकी बेटी की आगे की ज़िन्दगी कैसे कटेगी. लेकिन जैसे-जैसे मीनू बड़ी होती गई, उसने इसे अपनी दिव्यांगता को अपनी कमजोरी मानने के बजाय, इसके साथ जीना सीख लिया और उसमें सफलता भी हासिल की.
मीनू किसी पर बोझ नहीं बनना चाहती इसलिए वह अपना हर काम खुद ही करती है. साइकिल चलाना हो या पैरों से लिखना, कपड़े धोना, साफ-सफाई का काम वह खुद बखूबी करती है
हाथ न होने के बावजूद मीनू पढ़ने-लिखने में हमेशा अव्वल रहती है. वो 5वीं कक्षा में पढ़ती है. उसके माता-पिता मजदूरी का काम करते है.
मीनू के पिता कृष्ण कुमार अपनी बेटी को लेकर कहते है कि वह अपनी बेटी को किसी से कम नहीं समझते. इसके साथ ही वो कहते हैं कि उनके लिए मीनू वैसी ही है जैसी कि और आम लड़कियां. मीनू उनके लिए आम होकर भी ख़ास है और खास होकर भी आम.
मीनू के इस जज़्बे को सलाम!
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