भोपाल की आजादी में
रा.स्व.संघ का योगदान !
भारत भले ही १५ अगस्त १९४७ को स्वतंत्र हो गया हो, किन्तु भोपाल के नबाब हमीदुल्ला खां ने भारत महासंघ में भोपाल के विलय से साफ़ इनकार कर दिया था ! उसका मानना था कि चूंकि अंग्रेजों ने शासन सत्ता मुसलमानों से छीनी थे अतः यहाँ से जाते समय मुसलमानों को ही बापस कर जाना चाहिए ! अथवा भारत का एक तिहाई भाग हिंदुओं से खाली कराकर मुसलमानों को देना चाहिए !
भोपाल के भारत में विलय को लेकर दबाब निर्मित करने के लिए हिंदू नवयुवकों ने प्रजा मंडल के नाम से एक संगठन बनाया, जिसमें सर्व श्री चतुरनारायन मालवीय, अक्षय कुमार जैन, भाई रतन कुमार जैन, ठाकुर माधो सिंह, मास्टर लाल सिंह, लक्ष्मी नारायण सिंघल, महीपाल पथिक, प. उद्धव दास मेहता आदि प्रमुख थे ! दद्दा ने भी इस संगठन के विभिन्न पदों पर कार्य किया !
३० जनवरी १९४८ को महात्मा गांधी की ह्त्या के बाद नबाब को हिंदुओं को कुचलने का बहाना मिल गया ! स्वतंत्र भारत में तो संघ पर प्रतिवंध् लगा ही किन्तु इस नबाबी रियासत में तो स्वयंसेवकों पर भयानक अत्याचार हुए ! घरों की अपमानजनक तलाशी तथा थोड़ा भी संदेह होने पर सामान जब्ती आदि कृत्य किये गए ! भोपाल शहर में ही लगभग सो लोग गिरफ्तार कर जेलों में ठूंस दिए गए ! सर्व श्री उद्धवदास मेहता, बाबा साहब नातू, दिगंबर राव तिजारे, नेमीचंद कक्कड, शरद कुमार बेनर्जी, माणक चंद चौबे, भैयाजी कस्तूरे, मदनलाल शर्मा, ऋषभ चंद मुणोत, शिवचरण लाल भैय्यन, नानूराम दादा, जुगल किशोर भार्गव, बिट्ठल दास शर्मा “गुरू” सीहोर, नरेंद्र चौरसिया, फूलचन्द्र जयपुरिया, मंगली प्रसाद चौरसिया, प्रभाकर बडनेरकर, पांडुरंग वैद्य, सुभाष रेखडे, गोपीकिशन गुप्ता, बाबूलाल बंसल आदि अनेकों कार्यकर्ता वन्दी बनाए गए !
प्रतिवंध के इन दिनों में ही कुछ समय बाद शंकर लाल दद्दा भी गिरफ्तार कर लिए गए ! गिरफ्तार लोगों के परिवार जनों को अनेकों प्रकार से प्रताडित किया गया ! दद्दा की विधवा बहिन श्रीमती सुन्दरबाई, पत्नी श्रीमती गोपीदेवी तथा अन्य महिलाओं को पूछताछ के नाम पर पुलिस जुमेराती बाजार लेकर आई तथा बहां उन पर ठन्डे पानी की तेज धार आधे घंटे तक डाली गई ! १० माह जेल जीवन की यातना सहन करने के बाद नवंबर १९४८ में इन कार्यकर्ताओं की रिहाई संभव हुई !
किन्तु कुछ समय बाद ही भोपाल के भारत में विलय की मांग को लेकर आंदोलन और तीव्र हुआ ! ९ दिसंबर १९४८ को सत्याग्रह कर शंकरलाल जी दद्दा व संघ के सभी वरिष्ठ स्वयंसेवक पुनः जेल पहुँच गए ! उनके साथ इस बार कांग्रेस के सर्व श्री मास्टर लालसिंह ठाकुर, रामकिशन जी, डा.शंकर दयाल शर्मा, रामचरण राय वकील, ठाकुर माधव सिंह, के.एन. प्रधान, अक्षय कुमार जैन, जमुना प्रसाद मुद्गल, कपूर भाई आदि भी थे ! भोपाल की अरिहरा (अरेरा) पहाड़ी स्थित जेल में बंद इन स्वयंसेवकों के व्यवहार ने अनेक अपराधियों का जीवन भी बदल दिया ! उनमें से अनेक बड़े उत्साह से गीत अन्ताक्षरी, खेल बौद्धिक चर्चा, प्रार्थना, कवी सम्मलेन आदि कार्यक्रमों में सम्मिलित होते ! प्रति सप्ताह रामायण का पाठ होता ! परिणाम यह हुआ कि जेल में ही हनुमान जी का एक छोटा सा मंदिर भी बन गया, जो आजतक विद्यमान है !
अंततः १३ अप्रेल १९४९ को सरदार वल्लभ भाई पटेल की चेतावनी के सम्मुख घुटने टेक कर नबाब हमीदुल्ला खां ने भारत महासंघ के विलय पत्र पर हस्ताक्षर किये ! उनके साथ गुजरात में जूनागढ़ तथा हैदरावाद के निजाम ने भी अंतिम रूप से अपनी अपनी रियासतों के भारत में विलय को स्वीकृति दी ! वस्तुतः जन दबाब ही उन्हें इस हेतु वाध्य कर सका, जिसे निर्मित करने में संघ स्वयंसेवकों का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा ! अप्रैल के दूसरे सप्ताह में प्रजामंडल के बंदी कार्यकर्ता भी मुक्त हुए !
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