संघ संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार जन्मजात देशभक्त और प्रथम श्रेणी के
क्रांतिकारी थे। वे युगांतर और अनुशीलन समिति जैसे प्रमुख विप्लवी संगठनों में डॉ.
पाण्डुरंग खानखोजे, श्री अरविन्द, वारींद्र घोष, त्रैलोक्यनाथ चक्रवर्ती आदि के
सहयोगी रहे। रासबिहारी बोस और शचीन्द्र सान्याल द्वारा प्रथम विश्वयुद्ध के समय
1915 में सम्पूर्ण भारत की सैनिक छावनियों में क्रान्ति की योजना में वे मध्यभारत
के प्रमुख थे। उस समय स्वतन्त्रता आंदोलन का मंच कांग्रेस थी। उसमें भी उन्होंने प्रमुख
भूमिका निभाई। 1921 और 1930 के सत्याग्रहों में भाग लेकर कारावास का दंड पाया।
1925 की विजयादशमी पर संघ स्थापना करते समय डॉ. हेडगेवार जी का उद्देश्य
राष्ट्रीय स्वाधीनता ही था। संघ के स्वयंसेवकों को जो प्रतिज्ञा दिलाई जाती थी उसमें
राष्ट्र की स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए तन-मन-धन पूर्वक आजन्म और प्रामाणिकता से प्रयत्न
रहने का संकल्प होता था। संघ स्थापना के तुरन्त बाद से ही स्वयंसेवक स्वतंत्रता
संग्राम में अपनी भूमिका निभाने लगे थे।
क्रान्तिकारी स्वयंसेवक
संघ का वातावरण देशभक्तिपूर्ण था। 1926-27 में जब संघ नागपुर और आसपास तक ही
पहुंचा था उसी काल में प्रसिद्ध क्रान्तिकारी राजगुरू नागपुर की भोंसले वेदशाला में पढते
समय स्वयंसेवक बने। इसी समय भगतसिंह ने भी नागपुर में डॉक्टर जी से भेंट
की थी। दिसम्बर 1928 में ये क्रान्तिकारी पुलिस उपकप्तान सांडर्स का वध करके लाला
लाजपत राय की हत्या का बदला लेकर लाहौर से सुरक्षित आ गए थे। डॉ. हेडगेवार ने
राजगुरू को उमरेड में भैया जी दाणी (जो बाद में संघ के अ.भा. सरकार्यवाह रहे) के
फार्म हाउस पर छिपने की व्यवस्था की थी।
1928 में साइमन कमीशन के भारत आने पर पूरे देश में उसका बहिष्कार हुआ।
नागपुर में हडताल और प्रदर्शन करने में संघ के स्वयंसेवक अग्रिम पंक्ति में थे।
महापुरूषों का समर्थन
1928 में विजयादशमी उत्सव पर भारत की असेम्बली के प्रथम अध्यक्ष और सरदार
पटेल के बडे भाई श्री विट्ठल भाई पटेल उपस्थित थे। अगले वर्ष 1929 में महामना
मदनमोहन मालवीय जी ने उत्सव में उपस्थित हो संघ को अपना आशीर्वाद दिया।
स्वतंत्रता संग्राम की अनेक प्रमुख विभूतियां संघ के साथ स्नेह संबंध रखती थीं।
शाखाओं पर स्वतंत्रता दिवस
31 दिसम्बर, 1929 को लाहौर में कांग्रेस ने प्रथम बार पूर्ण स्वाधीनता को लक्ष्य
घोषित किया और 16 जनवरी, 1930 को देश भर में स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाने
का निश्चय किया गया।
डॉ. हेडगेवार ने दस वर्ष पूर्व 1920 के नागपुर में हुए कांग्रेस के अधिवेशन में पूर्ण स्वतंत्रता
संबंधी प्रस्ताव रखा था, पर तब वह पारित नहीं हो सका था। 1930 में कांग्रेस द्वारा
यह लक्ष्य स्वीकार करने पर आनंदित हुए हेडगेवार जी ने संघ की सभी शाखाओं को
परिपत्र भेजकर रविवार 26 जनवरी, 1930 को सायं 6 बजे राष्ट्रध्वज वन्दन करने और
स्वतंत्रता की कल्पना और आवश्यकता विषय पर व्याख्यान की सूचना करवाई। इस
आदेश के अनुसार संघ की सब शाखाओं पर स्वतंत्रता दिवस मनाया गया।
सत्याग्रह
6 अप्रैल, 1930 को दांडी में समुद्रतट पर गांधी जी ने नमक कानून तोडा और लगभग 8
वर्ष बाद कांग्रेस ने दूसरा जनान्दोलन प्रारम्भ किया। संघ का कार्य अभी मध्यभारत
प्रान्त में ही प्रभावी हो पाया था। यहां नमक कानून के स्थान पर जंगल कानून
तोडकर सत्याग्रह करने का निश्चय हुआ। डॉ. हेडगेवार संघ के सरसंघचालक का
दायित्व डॉ. परांजपे को सौंप स्वयं अनेक स्वयंसेवकों के साथ सत्याग्रह करने गए।
जुलाई 1930 में सत्याग्रह हेतु यवतमाल जाते समय पुसद नामक स्थान पर आयोजित
जनसभा में डॉ. हेडगेवार के सम्बोधन में स्वतंत्रता संग्राम में संघ का दृष्टिकोण स्पष्ट
होता है। उन्होंने कहा- ‘स्वतंत्रता के लिए अंग्रेजों के बूट की पालिश करने से लेकर,उनके
बूट को पैर से निकाल कर उससे उनके ही सिर को लहुलुहान करने तक के सब मार्ग मेरे
स्वतंत्रता प्राप्ति के साधन हो सकते हैं। मैं तो इतना ही जानता हूं कि देश को स्वतंत्र कराना है।‘’
डॉ. हेडगेवार के साथ गए सत्याग्रही जत्थे मे आप्पा जी जोशी (बाद में सरकार्यवाह)
दादाराव परमार्थ (बाद में मद्रास में प्रथम प्रान्त प्रचारक) आदि 12 स्वयंसेवक थे। उनको
9 मास का सश्रम कारावास दिया गया। उसके बाद अ.भा. शारीरिक शिक्षण प्रमुख
(सर सेनापति) श्री मार्तण्ड राव जोग, नागपुर के जिलासंघचालक श्री अप्पाजी हळदे आदि
अनेक कार्यकर्ताओं और शाखाओं के स्वयंसेवकों के जत्थों ने भी सत्याग्रहियों की सुरक्षा
के लिए 100 स्वयंसेवकों की टोली बनाई जिसके सदस्य सत्याग्रह के समय उपस्थित रहते थे।
8 अगस्त को गढवाल दिवस पर धारा 144 तोडकर जुलूस निकालने पर पुलिस की मार से
अनेक स्वयंसेवक घायल हुए।
विजयादशमी 1931 को डाक्टर जी जेल में थे, उनकी उनुपस्थिति में गांव-गांव में
संघ की शाखाओं पर एक संदेश पढा गया, जिसमें कहा गया था- ‘’देश की परतंत्रता नष्ट
होकर जब तक सारा समाज बलशाली और आत्मनिर्भर नहीं होता तब तक रे मना ! तुझे
निजी सुख की अभिलाषा का अधिकार नहीं।‘’
जनवरी 1932 में विप्लवी दल द्वारा सरकारी खजाना लूटने के लिए हुए बालाघाट काण्ड
में वीर बाघा जतीन (क्रान्तिकारी जतीन्द्र नाथ) अपने साथियों सहित शहीद हुए और श्री
बाला जी हुद्दार आदि कई क्रान्तिकारी बन्दी बनाए गए। श्री हुद्दार उस समय संघ के
अ.भा. सरकार्यवाह थे।
संघ पर प्रतिबन्ध
संघ के विषय में गुप्तचर विभाग की रपट के आधार पर मध्य भारत सरकार (जिसके
क्षेत्र में नागपुर भी था) ने 15 दिसम्बर 1932 को सरकारी कर्मचारियों को संघ में भाग
लेने पर प्रतिबंध लगा दिया।
डॉ. हेडगेवार जी के देहान्त के बाद 5 अगस्त 1940 को सरकार ने भारत सुरक्षा कानून
की धारा 56 व 58 के अन्तर्गत संघ की सैनिक वेशभूषा और प्रशिक्षण पर पूरे देश में
प्रतिबंध लगा दिया।
1942 का भारत छोडो आंदोलन
संघ के स्वयंसेवकों ने स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए भारत छोडो आंदोलन में भी सक्रिय
भूमिका निभाई। विदर्भ के अष्टी चिमूर क्षेत्र में समानान्तर सरकार स्थापित कर दी।
अमानुषिक अत्याचारों का सामना किया। उस क्षेत्र में एक दर्जन से अधिक स्वयंसेवकों ने
अपना जीवन बलिदान किया। नागपुर के निकट रामटेक के तत्कालीन नगर
कार्यवाह श्री रमाकान्त केशव देशपांडे उपाख्य बाळासाहब देशपाण्डे को आन्दोलन में
भाग लेने पर मृत्युदण्ड सुनाया गया। आम माफी के समय मुक्त होकर उन्होंने वनवासी
कल्याण आश्रम की स्थापना की।
देश के कोने-कोने में स्वयंसेवक जूझ रहे थे। मेरठ जिले में मवाना तहसील पर झण्डा
फहराते स्वयंसेवकों पर पुलिस ने गोली चलाई, अनेक घायल हुए।
आंदोलनकारियों की सहायता और शरण देने का कार्य भी बहुत महत्व का था। केवल
अंग्रेज सरकार के गुप्तचर ही नहीं, कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यकर्ता भी अपनी पार्टी के
आदेशानुसार देशभक्तों को पकडवा रहे थे। ऐसे में जयप्रकाश नारायण और अरुणा
आसफ अली दिल्ली के संघचालक लाला हंसराज गुप्त के यहां आश्रय पाते थे। प्रसिद्ध
समाजवादी श्री अच्युत पटवर्धन और साने गुरूजजी ने पूना के संघचालक श्री भाऊसाहब
देशमुख के घर पर केन्द्र बनाया था। ‘पतरी सरकार’ गठित करनेवाले प्रसिद्ध क्रान्तिकर्मी
नाना पाटील को औंध (जिला सतारा) में संघचालक पं. सातवलेकर जी ने आश्रय दिया।
स्वतंत्रता प्राप्ति हेतु संघ की योजना
ब्रिटिश सरकार के गुप्तचर विभाग ने 1943 के अन्त में संघ के विषय में जो रपट प्रस्तुत
की वह राष्ट्रीय अभिलेखागार की फाइलों में सुरक्षित है, जिसमें सिद्ध किया है
कि संघ योजनापूर्वक स्वतंत्रता प्राप्ति की ओर बढ रहा है।
साभार
डॉ. सौरभ मालवीय
सहायक प्राध्यापक
माखनलाल चतुर्वेदी
राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल (मध्य प्रदेश)
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