वर्तमान समय में देश में एक छद्म युद्ध का माहौल है। ऐसा युद्ध, जिसकी पृष्ठभूमि में देश और उसमें निवास करने वाले बहुसंख्यक समाज की भावनाओं को आहत करने के कुप्रयास तो है ही, साथ ही अनादि काल से विश्व को बंधुत्व का संदेश देने वाले भारत पर असहिष्णुता का झूठा कलंक लगाने का दुष्प्रयास भी शामिल है। ऐसे आरोप लगाने वाले यह भूल क्यों जाते हैं कि दुनिया में जितने भी पंथ, मजहब या पद्धतियां हैं, वे तो किसी गैर मजहब के अस्तित्व को स्वीकार ही नहीं करते। केवल हिंदू विचारधारा ही विश्व की एकमात्र ऐसी चिंतन प्रणाली है, जो सबमें ईश्वर का रूप देखती है औ उसका सम्मान भी करती है। हिंदू चिंतन ने कभी किसी पर यह थोपने का प्रयास नहीं किया कि भगवद् गीता ही एकमात्र धर्मग्रंथ है, जिसके बगैर उद्धार संभव नहीं है। हिंदू धर्म में जन्म लेने वाले प्रत्येक व्यक्ति में सहिष्णुता जन्मसिद्ध गुण तरह विद्यमान है, जो उसे माता के गर्भ से ही प्राप्त जाता है। जबकि इस्लाम से लेकर ईसाईयत व कम्यूनिज्म तक सभी विचारधाराएँ अन्य कोई चिंतन स्वीकार करने को राजी नहीं हैं।
इस्लाम-
इस्लाम मानने वालों का कहना है अल्लाह को छोड़कर कोई दूसरा ईश्वर नहीं है। उस अल्लाह का एक पैगम्बर हजरत मोहम्मद और पैंगबर के ऊपर एक किताब कुरान है, बस और कुछ नहीं है। कुरान में जो लिखा है, वही सत्य है। बाकी सब गलत है। एक अल्लाह को मान लो, पैगम्बर को , कुरान को मान लो, बाकी सब भूल जाओ। ये तीन चीजें मान तो दुनिया में भाई चारा आ जाएगा। अब चाहे अपनी बुद्धि से मानों या तलवार और बंदूक के दम पर। प्यार से मानों यो आतंक के बल पर।
ईसाईयत-
ईसाइ कहत हैं कि ईश्वर एक है, उनका पैंगम्बर एक है, एक ही धर्म पुस्तक है बाईबिल। बाईबिल के सिवाए दुनिया में कुछ नहीं है। यदि दुनिया के लोग ईशु को मान लें तो दुनिया में भाईचारा स्थापित हो जाएगा। पचास तरह की पूजा पद्धतियों को, भगवानों को समाप्त करो, तभी विश्व का कल्याण संभव है।
कम्युनिज्म-
कम्युनिस्टों का कहना है कि एक मार्क्स है और उस मार्क्स की लिखी पुस्तक दास केपिटल है। बस यही ठीक है। उसने एक सिद्धांत बनाया है व्दंदात्मक भौतिकवाद। इसको छोड़कर कुछ नहीं है। यह सत्य दुनिया मान ले तो सब एक जैसे हो जाएंगे। चाहे इसे समझाने का तरीका कुछ भी हो।
एक अकेले हिंदू जीवन पद्धति में हम कहते हैं कि दुनिया में जो विविधता है ईश्वर की बनाई हुई है। इसी विविधता में विश्व का, मानव जाति का सौंदर्य है। भिन्न भिन्न लोग भिन्न भिन्न चेहरे, भिन्न भिन्न विचार, सभी उस एक माली की देन है, जिसने दुनिया का बगीचा बनाया है। विविधता में एकता ही हमारा सिद्धांत है। हम मानते हैं कि सबसे परमात्मा के अंशस्वरूप आत्मा का निवास है। सब एक ही पिता यानि उस परमेश्वर की संतान हैं। इसलिए यदि हमने एकात्मता को स्वीकार कर लिया तो विश्व बंधुत्व स्थापित हो जाएगा। हम “वसुधैव कुटुम्बकम्” की भावना रखते हैं। हमारा विश्वास यह कि “जाकी रही भावना जैसी, प्रभू मूरत देखी तिन वैसी”। जिसकी जैसी भावना है, ईश्वर को उसने उसी रूप में प्राप्त किया है। हमने कभी नहीं कहा कि विश्व बंधुत्व के लिए सबका हिंदू होना जरूरी है। जब स्वामी विवेकानंद के अमेरिका में अपना ऐतिहासिक उद्बोधन दिया तो उनके भी पहले शब्द मेरे भाईयों और बहनों ही थे, कहने का तात्पर्य यह कि हिंदू चिंतन मानता है कि सब अपने ही हैं, कोई पराया या विधर्मी नहीं है। इसलिए हिंदू विश्व में यहां भी कहीं हैं शांति से जीवन यापन कर रहे हैं, जिस राष्ट्र में निवासरत हैं, उसकी तरक्की में अपना योगदान दे रहे हैं। विनाश के नहीं, विकास के सहभागी बने हुए हैं।
दुनिया के अन्य धर्मों की कट्टरता का ही परिणाम है कि उनका चिंतन व्यक्ति केंद्रित रहा है। जबकि हम व्यक्ति से समेष्टि फिर परमेष्टी की बात करते हैं।
यही कारण है कि जब पाश्चात्य चिंतन कहता है कि दुनिया में संघर्ष है, अस्तित्व के लिए संघर्ष तो हमारा हिंदू चिंतन कहता है कि दुनिया एक ही परब्रम्ह के अंश है तो संघर्ष कैसा? जो संघर्ष दिखता है, वह अहंकार और अज्ञान के कारण है। अज्ञान दूर कर दो, संघर्ष समाप्त हो जाएगा।
पाश्चात्य चिंतन यह भी कहता है कि जो सर्वोत्तम है, वही बचेगा। जबकि हिंदू चिंतन सर्वे भवतुं सुखिनः सर्वे संतु निरामयः का उद्घोष करते हुए कहता है कि हरेक को बचाना है, सुखी और निरोगी रखना है। वे कहते हैं कि हमें पूर्ण अधिकार हैं, किंतु हम कहते हैं कि हमारे यह कर्त्तव्य हैं। वे अधिकारों की बात करते हैं, हम कर्त्तव्यों की बात करते हैं। भारत का इतिहास उठाकर देख लीजिए, हमने पूरे विश्व के धर्मों, जातियों, लोगों, बोली, भाषाओं को उसी प्रकार अंगीकार किया है, जैसे कोई मां अपने बच्चे को हद्य से लगा लेती है।
पूरी दुनिया यह मानती है कि भारत जैसी पुण्यभूमि कोई दूसरी नहीं है। इसे सिद्ध करने के लिए कोई पुराना उदाहण लेने की जरूरत भी नहीं है। बिलकुल ताजातरीन बात पर आते हैं, फेसबुक के मालिक मार्क जुकरबर्ग ने हालही में यह बात कही है कि उन्हें भारत आकर परम शांति का अनुभव हुआ। यहां के मंदिरों में आने के बाद (जो कि वे किसी की सलाह से मंदिर पहुंचे थे) उन्हें जो अनुभूति हुई, वह शब्दों में बयान नहीं की जा सकती। ऐसा कैसे संभव हुआ, इस प्रश्न का एक ही उत्तर है हमारी विश्व के प्रति शुद्ध भावनाएं। जब मंदिरों में प्रार्थना कर रहे होते हैं तो हम कहते हैं कि विश्व का कल्याण हो। हमें पूरे विश्व से क्या लेना देना? हम कहते हैं कि प्राणियों में सद्भावना हो। ईश्वर से यह न कहते हुए कि केवल मेरा या मेरे परिवार का कल्याण हो, हम संपूर्ण विश्व और उसके प्राणियों के प्रार्थना करते हैं, क्योंकि यह संस्कार हमें जन्म से ही प्राप्त हुए हैं। फिर हम असहिष्णु कैसे हुए? जबकि सहिष्णुता तो हमारा जन्मसिद्ध गुण है।
(वस्तुतः हिंदुत्व एक आदर्श जीवन दर्शन है, आवश्यकता है कि हम उसे व्यवहार में भी लायें | केवल हम हिन्दू हैं, और हिन्दू चिंतन सर्वाधिक सहिष्णु और मानवतावादी है, यह कहने भर से काम चलने वाला नहीं है | उस भाव को अंगीकार और हृदयंगम करना ही समय की मांग है | ह्रदय पर हाथ रखकर विचार करें कि हम कितने प्रतिशत हिन्दू हैं ? आज भारत में न केवल अन्य चिंतन धाराओं से संघर्ष है, वरन अपने आप को हिन्दू कहने वाले भी हिंदुत्व चिंतन से विपरीत आचरण कर इस सहिष्णु चिंतन को चुनौती दे रहे हैं | इस महासंग्राम में हम और आप सभी युद्धरत हैं | हिंदुत्व चिंतन की विजय, मानवता की विजय होगी | आईये इस हेतु कृतसंकल्प हों | - संपादक)
No comments:
Post a Comment