दुनिया को ‘गणराज्य प्रणाली’ भी भारत ने दी थी,
जानें भारतवर्ष के प्राचीन गणराज्यों के बारे में
इतिहास की किताबों में भारत के वैशाली को दुनिया का पहला गणतंत्र बताया जाता है हालांकि कम ही लोगों को पता होगा कि मात्र वैशाली ही नहीं भारत में अनेक गणराज्यों का अस्तित्व था जिसका मात्र 5000 वर्ष में ही भारत का इतिहास सिमटा देने वाले इतिहासकारों ने अनभिज्ञता के चलते जिक्र ही नहीं किया |
गणतंत्र जिसका अर्थ होता है जहां जनता सीधा अपना प्रतिनिधि चुनती है | यह बात प्रसिद्ध है की विश्व में सबसे पहले भारत के “वैशाली” में ही गणराज्य था किंतु आपको यह जानकर आश्चर्य होगा की प्राचीन भारत में सिर्फ वैशाली ही नही अनेक गणराज्य मौजूद थे | लेकिन आजतक सिर्फ वैशाली गणराज्य को ही प्राचीन भारतीय गणराज्य के तौर पर प्रस्तुत किया जाता रहा है | किंतु यदि आप ऋग्वेद, महाभारत आदि ग्रंथ पढ़ेंगे तो प्राचीन भारत में अनेक गणराज्यो का उल्लेख मिलता है जो वैशाली के गणराज्य से पुराना था |
दुनिया के सबसे प्राचीनतम ग्रंथ ऋग्वेद में गणतंत्र का उल्लेख 30-35 बार हुआ है तो अथर्ववेद में 9 बार | इसके अलावा महाभारत सहित कई अनेक प्राचीन ग्रंथो में भी गणराज्यो की चर्चा मिलती है | महाभारत के सभा पर्व में यह उल्लेख है कि अर्जुन ने अनेक गणराज्यों को जीत लिया था और उन गणराज्यों से अर्जुन द्वारा टैक्स यानि ‘कर’ लिया जाता था | इसके अलावा महाभारत में की गणतंत्र के नागरिक कैसे थे और सत्ता ब्यवस्था कैसी थी इसका विस्तार से वर्णन किया गया है |
महाभारत में जिन गणराज्यो की चर्चा मिलती है उनमें है अंधक-वृष्णि ,मद्र , वृज्जि और राजन्य आदि| महाभारत में गणराज्यों के नागरिक अपना मत कैसे देते थे तथा वहाँ किसी विषय पर चर्चा किन नियमों के द्वारा होता था इसका वर्णन है | महाभारत के अलावा पाणिनी ने भी अपने ग्रंथ ‘अष्टाध्यायी ‘ में 15 शक्तिशाली गणराज्यों की चर्चा की है | जिनमें ब्रह्मगुप्त ,वृक ,दांडकी, जालमानि,यौधेय ,दामनि, जानकी ,कौंडोपरथ ,पश्र्व आदी है |उसके बाद ऐतरेय ब्राह्मण में भी गणराज्यों की बात देखने को मिलती है, जहाँ लिखा गया है कि उत्तरकुल और उत्तरमद्र नामक दो गणराज्य हिमालय के पार चले गये थे यानी हिमालय के पार तक इसका विस्तार हुआ था |
आचार्य कौटिल्य ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ अर्थशास्त्र में मल्लक ,मदक ,बृजक ,कम्बोज और लिच्छवी गणराज्यों की बात बतायी है | ईसा से 450 वर्ष पहले भारत में कुशीनगर, कपिलवस्तु के शाक्य, मिथिला के विदेह, पिप्पली वन के मौर्य, वैशाली के लिच्छवी, काशी के मल्ल आदि शक्तिशाली गणराज्य थे | इनमें वैशाली के लिच्छवी गणराज्य में तो संसद भवन भी मौजुद थी जिनमें 7707 सांसदों के बैठने की व्यवस्था थी यह सांसद वह थे जो अपने-अपने क्षेत्रों से जनता द्वारा चुने गयें प्रतिनिधि थे | इतना ही नही इन 7707 सांसदो के रहने के लिये 7707 भवन तथा इनकी सुविधा के लिये इतने ही उपवन और कमल पुष्प से शोभित सरोवर भी थे |
उसके बाद ईसा 350 साल पहले पंजाब ,मध्यप्रदेश के मालवा और राजपुताना आदी गणराज्यों तो 300 ईस्वी पुर्व मालव ,मिसोई ,अटल और अराट आदी गणराज्यों की चर्चा होती है | इसके अलावा भारत भ्रमण पर आये यूनानी यात्री मेगस्थनीज सहित कई अनेंक लेखको ने भी अपनी पुस्तकों में मध्यकालीन भारत के गणराज्यों का उल्लेख किया है | कई गणराज्यो के नागरिको ने तो भारत पर आक्रमण करने आयें सिकंदर से लोहा भी लिया था जिनमें क्षत्रिय, अग्रश्रेणी, सौभूति आदि प्रमुख है | इन गणराज्यों के नागरिकों ने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिये सिंकदर के नाको चनें चबा दिये थे जिसका वर्णन यूनानी इतिहासकारो ने ही किया है | इसके साथ ही मालव तथा क्षुद्रक गणराज्यों के नागरिको ने भी सिकंदर से भयंकर युद्ध कर उसके दांत खट्टे कर दिये थे इसे भी कई यूनानी इतिहासकारो ने वर्णित किया है |
सिकंदर के बाद गुप्तवंश के तेजस्वी राजा समुद्रगुप्त के समय भी कई शक्तिशाली गणराज्य थे जिनमें यौधेय, मालव, अभीर, प्रार्जुन, अर्जुनायन, काक और सनसानीक गणराज्यों को समुद्रगुप्त ने अपने राज्य में मिला लिया था | इनमें अर्जुनायण तो विशाल गणराज्य था जो जयपुर, आगरा से लेकर पंजाब के लुधियाना और उप्र के सहारनपुर तक फैला था | इस गणराज्य द्वारा चलाये जा रहे अनेक मुद्रायें खुदाई में भी मिली है |
अतः यह कहना उपयुक्त होगा की गणतंत्र जैसा सुंदर ब्यवस्था का जन्म इस भारत की धरती से ही हुआ था जिसमें वैशाली के अलावा भी कई गणराज्य थे | हालांकि आज के गणराज्य में और प्राचीन भारतीय गणराज्य में जमीन आसमान का फर्क है, प्राचीन भारतीय गणराज्यों में राजनीतिक प्रणाली को कंट्रोल करने वाली समितियां हुआ करतीं थीं जो हर कार्यों पर बारीकी से नजर रखने के साथ ही समय समय पर उनका मूल्यांकन भी किया करती थीं | एक तरह से आज की गणराज्य प्रणाली प्राचीन भारतीय गणराज्य प्रणाली का ही विकृत रूप है |
जानें भारतवर्ष के प्राचीन गणराज्यों के बारे में
इतिहास की किताबों में भारत के वैशाली को दुनिया का पहला गणतंत्र बताया जाता है हालांकि कम ही लोगों को पता होगा कि मात्र वैशाली ही नहीं भारत में अनेक गणराज्यों का अस्तित्व था जिसका मात्र 5000 वर्ष में ही भारत का इतिहास सिमटा देने वाले इतिहासकारों ने अनभिज्ञता के चलते जिक्र ही नहीं किया |
गणतंत्र जिसका अर्थ होता है जहां जनता सीधा अपना प्रतिनिधि चुनती है | यह बात प्रसिद्ध है की विश्व में सबसे पहले भारत के “वैशाली” में ही गणराज्य था किंतु आपको यह जानकर आश्चर्य होगा की प्राचीन भारत में सिर्फ वैशाली ही नही अनेक गणराज्य मौजूद थे | लेकिन आजतक सिर्फ वैशाली गणराज्य को ही प्राचीन भारतीय गणराज्य के तौर पर प्रस्तुत किया जाता रहा है | किंतु यदि आप ऋग्वेद, महाभारत आदि ग्रंथ पढ़ेंगे तो प्राचीन भारत में अनेक गणराज्यो का उल्लेख मिलता है जो वैशाली के गणराज्य से पुराना था |
दुनिया के सबसे प्राचीनतम ग्रंथ ऋग्वेद में गणतंत्र का उल्लेख 30-35 बार हुआ है तो अथर्ववेद में 9 बार | इसके अलावा महाभारत सहित कई अनेक प्राचीन ग्रंथो में भी गणराज्यो की चर्चा मिलती है | महाभारत के सभा पर्व में यह उल्लेख है कि अर्जुन ने अनेक गणराज्यों को जीत लिया था और उन गणराज्यों से अर्जुन द्वारा टैक्स यानि ‘कर’ लिया जाता था | इसके अलावा महाभारत में की गणतंत्र के नागरिक कैसे थे और सत्ता ब्यवस्था कैसी थी इसका विस्तार से वर्णन किया गया है |
महाभारत में जिन गणराज्यो की चर्चा मिलती है उनमें है अंधक-वृष्णि ,मद्र , वृज्जि और राजन्य आदि| महाभारत में गणराज्यों के नागरिक अपना मत कैसे देते थे तथा वहाँ किसी विषय पर चर्चा किन नियमों के द्वारा होता था इसका वर्णन है | महाभारत के अलावा पाणिनी ने भी अपने ग्रंथ ‘अष्टाध्यायी ‘ में 15 शक्तिशाली गणराज्यों की चर्चा की है | जिनमें ब्रह्मगुप्त ,वृक ,दांडकी, जालमानि,यौधेय ,दामनि, जानकी ,कौंडोपरथ ,पश्र्व आदी है |उसके बाद ऐतरेय ब्राह्मण में भी गणराज्यों की बात देखने को मिलती है, जहाँ लिखा गया है कि उत्तरकुल और उत्तरमद्र नामक दो गणराज्य हिमालय के पार चले गये थे यानी हिमालय के पार तक इसका विस्तार हुआ था |
आचार्य कौटिल्य ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ अर्थशास्त्र में मल्लक ,मदक ,बृजक ,कम्बोज और लिच्छवी गणराज्यों की बात बतायी है | ईसा से 450 वर्ष पहले भारत में कुशीनगर, कपिलवस्तु के शाक्य, मिथिला के विदेह, पिप्पली वन के मौर्य, वैशाली के लिच्छवी, काशी के मल्ल आदि शक्तिशाली गणराज्य थे | इनमें वैशाली के लिच्छवी गणराज्य में तो संसद भवन भी मौजुद थी जिनमें 7707 सांसदों के बैठने की व्यवस्था थी यह सांसद वह थे जो अपने-अपने क्षेत्रों से जनता द्वारा चुने गयें प्रतिनिधि थे | इतना ही नही इन 7707 सांसदो के रहने के लिये 7707 भवन तथा इनकी सुविधा के लिये इतने ही उपवन और कमल पुष्प से शोभित सरोवर भी थे |
उसके बाद ईसा 350 साल पहले पंजाब ,मध्यप्रदेश के मालवा और राजपुताना आदी गणराज्यों तो 300 ईस्वी पुर्व मालव ,मिसोई ,अटल और अराट आदी गणराज्यों की चर्चा होती है | इसके अलावा भारत भ्रमण पर आये यूनानी यात्री मेगस्थनीज सहित कई अनेंक लेखको ने भी अपनी पुस्तकों में मध्यकालीन भारत के गणराज्यों का उल्लेख किया है | कई गणराज्यो के नागरिको ने तो भारत पर आक्रमण करने आयें सिकंदर से लोहा भी लिया था जिनमें क्षत्रिय, अग्रश्रेणी, सौभूति आदि प्रमुख है | इन गणराज्यों के नागरिकों ने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिये सिंकदर के नाको चनें चबा दिये थे जिसका वर्णन यूनानी इतिहासकारो ने ही किया है | इसके साथ ही मालव तथा क्षुद्रक गणराज्यों के नागरिको ने भी सिकंदर से भयंकर युद्ध कर उसके दांत खट्टे कर दिये थे इसे भी कई यूनानी इतिहासकारो ने वर्णित किया है |
सिकंदर के बाद गुप्तवंश के तेजस्वी राजा समुद्रगुप्त के समय भी कई शक्तिशाली गणराज्य थे जिनमें यौधेय, मालव, अभीर, प्रार्जुन, अर्जुनायन, काक और सनसानीक गणराज्यों को समुद्रगुप्त ने अपने राज्य में मिला लिया था | इनमें अर्जुनायण तो विशाल गणराज्य था जो जयपुर, आगरा से लेकर पंजाब के लुधियाना और उप्र के सहारनपुर तक फैला था | इस गणराज्य द्वारा चलाये जा रहे अनेक मुद्रायें खुदाई में भी मिली है |
अतः यह कहना उपयुक्त होगा की गणतंत्र जैसा सुंदर ब्यवस्था का जन्म इस भारत की धरती से ही हुआ था जिसमें वैशाली के अलावा भी कई गणराज्य थे | हालांकि आज के गणराज्य में और प्राचीन भारतीय गणराज्य में जमीन आसमान का फर्क है, प्राचीन भारतीय गणराज्यों में राजनीतिक प्रणाली को कंट्रोल करने वाली समितियां हुआ करतीं थीं जो हर कार्यों पर बारीकी से नजर रखने के साथ ही समय समय पर उनका मूल्यांकन भी किया करती थीं | एक तरह से आज की गणराज्य प्रणाली प्राचीन भारतीय गणराज्य प्रणाली का ही विकृत रूप है |
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