Saturday 2 July 2016

आजादी के समय हुए 

षडयंत्र पूर्ण समझौते ...

लारी कोलिंस और दोमिनिक लापियर द्वारा लिखित फ्रीडम एट मिडनाईट के कुछ अंश व उनका विश्लेषण –
भारत की समस्या की जड़ भारत के 28 करोड़ हिन्दुओं और 10.5 करोड़ मुसलमानों का युगों से चला आ रहा आपसी विरोध था | भारत में मुसलमानों के नेता मांग कर रहे थे कि ब्रिटेन उन्हें उनका अपना एक इस्लामी राज्य दे | उन्होंने धमकी दी थी कि उन्हें पाकिस्तान न दिए जाने की स्थिति में एशिया के इतिहास का सर्वाधिक रक्तपातपूर्ण गृहयुद्ध होगा |

उनकी मांगों के विरोध में उतने ही दृढ निश्चय के साथ कांग्रेस पार्टी के नेता थे, जिनकी नजर में उपमहाद्वीप का विभाजन उनकी ऐतिहासिक मातृभूमि का नापाक बटवारा होगा | ब्रिटेन इन दोनों परस्पर विरोधी मांगों के बीच फंस गया था | मसले को सुलझाने की जिम्मेदारी जिन लार्ड माउंटवेटन को सोंपी गई, महारानी विक्टोरिया उनकी पडनानी थीं | वे ही महारानी विक्टोरिया जिन्होंने 1857 के हिंस्त्र सैनिक विद्रोह के बाद ईस्ट इंडिया कम्पनी का अस्तित्व समाप्त कर 30 करोड़ भारतीयों की नियति का उत्तरदायित्व अपने हाथों में लिया था |

सन 1947 के प्रारंभ में इंडियन सिविल सर्विसेस के मात्र 1200 ब्रितानवी सदस्य ही भारत में शेष थे और किसी तरह 41 करोड़ लोगों पर अपनी प्रशासनिक पकड़ बनाए हुए थे | 

शुरू शुरू में भारतीय स्वाधीनता का सारा आन्दोलन बुद्धिजीवी विशिष्ट वर्ग तक ही सीमित रहा, जिसमें हिन्दुओं और मुसलमानों ने साम्प्रदायिक फर्क को भुलाकर एक साझे उद्देश्य के लिए साथ साथ कार्य करने की कोशिश की | लेकिन गांधी की कांग्रेस पार्टी, धीरे धीरे, अनजाने में हिन्दू स्वर ग्रहण करने लगी | मुसलमानों को शंका हुई कि स्वतंत्र भारत के हिन्दू बहुसंख्यक समाज में तो वे डूब कर रह जायेंगे | और धीरे धीरे मुस्लिम लीग का एक पृथक मुस्लिम राष्ट्र का विचार मुसलमान जनता की कल्पना को जकड़ता चला गया | 

16 अगस्त 1946 को मुस्लिम लीग के डायरेक्ट एक्शन के आह्वान पर कलकत्ता के झोंपडपट्टों से मुस्लिम भीड़ सुबह सबेरे लाठियां, सरिये, पलटे लेकर निकल पड़ी | रास्ते में मिलने वाले हर हिन्दू को उन्होंने बड़ी निर्दयता से मारा | भयभीत पुलिस दम दबाकर भाग गई | हिन्दू बाजार बुरी तरह जलने लगे | समाचार मिलने पर हिन्दू भी एकत्रित होकर बदले के लिए निकल पड़े | महानगर के 5000 मृत लोगों की लाशों को नोचने आकाश में गिद्ध मंडराने लगे |

भारत में नए नए आये लार्ड माउंटवेटन को यह समझते देर नहीं लगी कि भारत में भले ही कांग्रेस व मुस्लिम लीग की संयुक्त सरकार है, किन्तु उसके सदस्य एक दूसरे से बात तक नहीं करते | लन्दन में प्रधान मंत्री एटली ने भले ही सत्ता हस्तातरण की तारीख जून 1948 तय की थी, 2 अप्रैल 1947 को अपनी पहली रिपोर्ट में ही युवा एडमिरल माउंटवेटन ने लिखा कि अगर विभाजन की कार्यवाही जल्द ही शुरू नहीं की गई तो गृहयुद्ध का प्रारम्भ हो जाएगा |

अगर उस समय लुई माउंटवेटन या महात्मा गांधी को ज्ञात होता कि जिन्ना के फेंफडे टीवी के चलते नष्टप्राय हो चुके हैं, और वह अधिक समय ज़िंदा नहीं रहने वाले, तो शायद भारत विभाजन टल सकता था | खैर गांधी जी की अनिच्छा के बाबजूद जिन्ना की कठोर मांगों को पूरा करने के लिए भारत के दो सर्वाधिक विशिष्ट प्रदेश पंजाब और बंगाल को काटने जैसा अटपटा और अतार्किक निर्णय होना तय हो गया | पटेल का तर्क था कि पाकिस्तान बन जाने दो वह स्थाई नहीं होगा | नेहरू सोचते थे कि जिन्ना के चले जाने के बाद वे अपने सपनों का समाजवादी राज्य स्थापित कर सकेंगे | नेहरू और पटेल की आवाज एक पक्ष में होते ही शेष आला कमान भी जल्द ही उनसे सहमत हो गया | और गांधी अकेले छूट गए | 

उधर इंग्लेंड में कंजर्वेटिव पार्टी 1945 के चुनाव में पराजित हो गई थी | लेकिन हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स में तब भी उनका बहुमत था | इससे उन्हें वह शक्ति प्राप्त थी, जिसके चलते वे कम से कम दो वर्ष तक भारत की आजादी को विलंबित कर सकते थे | उसके पीछे कारण था, साम्राज्यवादी स्वप्न में चर्चिल की अटल आस्था | 1910 से लेकर तब तक उन्होंने भारत को आजादी की ओर ले जाने के हर कदम का दृढ़ता से विरोध किया था | 

प्रधान मंत्री एटली जानते थे कि चर्चिल माउंटवेटन को पसंद करते हैं, अतः उन्हें मनाने की जिम्मेदारी उन्होंने माउंटवेटन को ही दी | इसलिए माउंटवेटन चर्चिल को मनाने दिल्ली से विशेष रूप से लन्दन गए | उन्होंने बयोवृद्ध नेता को जानकारी दी कि कांग्रेस ने वचन दिया है कि भारत को अधिराज्य स्थिति (डोमिनियन स्टेटस) भी स्वीकार है | माउंटवेटन ने बताया कि वे नेहरू का एक पत्र भी साथ लाये हैं, जिसमें अधिराज्य स्वीकारने की बात लिखी गई है | जैसे ही शत्रुओं के ब्रिटिश कॉमन वेल्थ में बने रहने की संभावना सामने आई, चर्चिल का रुख स्पष्ट रूप से परिवर्तित हो गया | और एक बार कंजर्वेटिव और लेबर पार्टी के साथ आते ही ब्रिटिश संसद में सर्वसम्मति से एतिहासिक प्रस्ताव पारित हो गया | 

इसके बाद शुरू हुई भारत विभाजन की दारुण गाथा | 3 जून 1947 को प्रमुख भारतीय नेताओं ने उपमहाद्वीप को दो पृथक प्रभुतासंपन्न राष्ट्रों में विभाजित करने की औपचारिक घोषणा की | प्रारम्भ हुआ धन के बटवारे से | तय हुआ कि पाकिस्तान को स्टेट बेंक की नगद राशि का 17.5 प्रतिशत प्राप्त होगा और उसे राष्ट्रीय ऋण का भी वही प्रतिशत अपने जिम्मे लेना होगा | भारत के विशाल प्रशासनिक तंत्र की चल संपत्ति का विभाजन 80-20 के अनुपात में हुआ | सरकारी दफ्तरों ने अपनी कुरसियों, मेजों और यहाँ तक कि झाडुओं की भी गिनती शुरू कर दी | पुस्तकालय की पुस्तकों का विभाजन भी कटुता पूर्ण माहौल में हुआ | शब्दकोशों का विभाजन ए से के तक फाड़कर आधा भारत को शेष पाकिस्तान को |

और यह हुआ भी | स्थिति की भयावहता को चित्रित करने के लिए एक यह उदाहरण ही पर्याप्त है | स्वाधीनता की घोषणा के तुरंत बाद माउंटवेटन दिल्ली से शिमला पहुँच गए थे | आबादी के तबादले में हुई हिंसा पूर्वानुमान से बहुत अधिक हुई थी | 4 सितम्बर को भारतीय आईसीएस अधिकारी वी पी मेनन ने माउंटवेटन को फोन कर दिल्ली लौटने का अनुरोध किया | 5 सितम्बर को तीसरे पहर उनकी नेहरू और पटेल के साथ बैठक हुई | दोनों भारतीय नेता गमगीन और घबराये हुए थे | 

टीवी के मरीज मृतप्राय जिन्ना ने तो जो किया वह योजनाबद्ध किया, सोच समझकर किया | वह एक परिपक्व राजनेता निकला | किन्तु कांग्रेस के लुंजपुंज नेतृत्व ने जो किया वह ???

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