Thursday, 28 July 2016

सत्य, तप, पवित्रता और करुणा, चार घटकों से ही धर्म का अस्तित्व

 – डॉ. मोहन भागवत जी

करुणा के अभाव में क्या-क्या हो रहा है. ये सब वर्तमान में हम सभी अनुभव कर रहे हैं, समाचार पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से पढ़ भी रहे हैं तथा न्यूज़ चैनलों के माध्यम से टीवी स्क्रीन पर देख भी रहे हैं. इसे बताने की आवश्यकता नहीं है. करूणा के बिना धर्म नहीं है अर्थात धर्म का अस्तित्व ही नहीं हो सकता है. धर्म के चार घटक हैं – सत्य, तप, पवित्रता और सबसे महत्वपूर्ण और इसके बिना ये तीनों भी अधूरे हैं, वह है – “करुणा.” करूणा के बिना धर्म टिक भी नहीं सकता. दुःख की बात है कि आजकल की दुनिया में करुणा का लोप हो गया है.
 सत्य की कठोरता को जीवन में उतारने के लिए करूणा की शक्ति रूपी छननी से उतारना होता है. मनुष्य के नाते ये कर्तव्य नहीं कि वो किसी को दुखों से बहार निकाल दे. बल्कि, उसके अन्दर करुणा का भाव भर दे. करुणा जिस मनुष्य के अंतःकरण में विद्यमान हो जाएगी, वह स्वतः ही दुखों का निवारण कर लेगा अर्थात जिसके अन्दर करुणा का भाव होगा, वह कभी भी द्वेष से ग्रसित नहीं होगा. जब द्वेष ही इंसान के अन्दर नहीं होगा तो उसे दुःख कहाँ से ग्रसित करेगा?
 जो सबको ठीक रखता है, एक साथ जो सबको सुख देता है, एक साथ जो सबको प्रेम देता है, उसी को धर्म कहते हैं. उसी को तो खुशी कहते हैं. यानि ये सभी क्रियांएँ मनुष्य के अन्दर सम्पन्न होती हैं सिर्फ और सिर्फ एक ही तत्व से, वह तत्व है करुणा का भाव. ये सभी एक साथ साधने वाली बात ही धर्म है. धर्म के चार घटक हैं. पर, उसका सबसे उत्तम घटक करुणा है. जिस भी मनुष्य में करुणा नहीं है तो उसकी अर्थात धर्म की धारणा ही नहीं है.
 कई बार जड़वाद के चलते धर्म में अतिवादिता उत्पन्न होती है. जो ठीक नहीं है और ये भी सत्य है कि धार्मिक परंपराएँ कर्मकांड नहीं होती हैं. कुछ सौं वर्षों से हमने अपनी परम्पराओं को छोड़कर, भुलाकर ऊपर के छोर को पकड़ना शुरू कर दिया है. जिससे समाज में उत्पात मचा हुआ है. धर्म के तीनों तथ्यों सत्य, तप और पवित्रता को चरित्रार्थ करने के लिए करूणा की आवश्यकता होती है. बौद्ध धर्म बुद्ध को करूणा का अवतार कहते ही नहीं, बल्कि मानते हैं.
 सारे विश्व में करूणा केअभाव में जो स्वार्थ और तांडव चला हुआ है. उसे समाप्त करने के लिए संसार में करूणा का प्रचालन शुरू करना होगा. जिसे संसार में फिर से हिन्दू यानी हिंदुस्तान ही आगे बढ़ा सकता है अर्थात विश्व का मार्गदर्शन करेगा. करूणा को अपने अन्दर लेकर जब हम सभी चलेंगे तो एक दिन ऐसा समय आएगा कि फिर से हम सभी जिस धर्म की स्थापना करना चाहते हैं उसे साकार कर देंगे.
 हिन्दू, बौद्ध, जैन और सिख धर्म के भावों के बारे में बताया है. इन चारों धर्मों में एक ही भाव है और वही इनका मूल भी है. वह भाव करूणा है और करूणा से ही धर्म है अर्थात धर्म में करूणा है. इन चारों अलग-अलग धर्मों में जिसे भी विश्वास है.जो दूसरे धर्मों की निंदा करता है, वह कभी अपने धर्म का भी हितैषी नहीं हो सकता. क्योंकि, उसके अन्दर करुणा का भाव नहीं होता है. जब कोई भी व्यक्ति सभी धर्मों की विचारधारा को मानते हुए, अपने धर्म की विचारधारा से मिलान कराता है. तो वह कभी भी अपने धर्म को नहीं छोड़ता. बल्कि, वह अपने धर्म की करूणा के भाव को प्रदर्शित करता है.





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