Friday, 15 July 2016

आतंकियों का कोई मज़हब होता है? या मज़हब ही बना रहा है आतंकी?
9TH January, 1990 भारत के इतिहास का वो काला दाग है, जिससे हटाना या भूल जाना नामुमकिन है. इस दिन लाखों कश्मीरी हिन्दू अपनी  ज़मीन छोड़ कर शरणार्थी बनने पर मजबूर कर दिए गए थे. हैरानी की बात तो तो यह है, की जो लोग आज वानी के लिए आंसू बहा रहे हैं, यह वही लोग हैं जिन्होंने उस जनवरी की रात को हिन्दू माताओं और बहनों के साथ दहशतऔर जानवरों जैसा सलूक किया था.उन्होंने अपने हिन्दू भाइयों को, जिनके साथ वो बड़े हुए थे, को मारने से पहले आँखें भी नहीं छपकी. यह लोग उस तारिख को भूलना पसंद करते हैं, या फिर ऐसा दिखाते है जैसे की उन्हें कुछ मालूम ही नहीं है. 7 लाख लोग उस रात बेघर हो गए, और यह किसी लादेन या ISIS का काम नहीं था. दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के लिए यह बहुत की शर्मनाक हादसा था.
जो लोग आज वानी, जो की हिस्बुल मुजाहिदीन का कमांडर था, की मौत पर दुःख व्यक्त कर रहे है. उन्हें हम यह बता दे की इसी हीजबुल मुजाहिदीन ने 4th January, 1990, को एक प्रेस नोट निकाला था, जो की ‘आफताब’ और ‘अल सफा’ अख़बारों में छापा गया था. इस नोट में कश्मीरी हिन्दुओं की सख्त शब्दों में कश्मीर छोड़ने के लिए कहा गया था. हिन्दुओं की दुकाने, मकान और बाकि प्रतिष्ठानों पर चिन्ह लगा दिए गए थे.इतना ही नहीं दैह्शात्कर्ताओं ने घड़ियों का समय भी पाकिस्तान के समय से मिला दिया था. चौबीस घंटे में, लोग अपना सब कुछ  छोड़ कर भागने पर मजबूर हो गए. यह सब याद करने की एक बहुत की महत्वपूर्ण वजह है, वो यह है की 7 लाख लोग बेघर हुए, उन्हें बेईज्ज़त करके अपने ही घरों से निकल दिया गया. पर आज तक उनमे से, और उनकी अगली नसल से भी, कोई भी ‘आतंकवादी’ नहीं बना. फिर सोचने की बात तो यह है की बुरहान वानी आतंकवादी क्यूँ बना, या फिर उसे आतंकवादी किसने बनाया.

क्या आतंक का कोई मज़हब होता है? या फिर एक मज़हब ही आतंक के लिए जिम्मेवार है ?

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