Sunday, 10 July 2016

.एक और बेटी..........
उस दिन सच एक दिव्य अनुभूति हुई। जब थाने पर मेरे चेंबर में एक मासूम बच्ची आई और बोली सर मेरे माँ बाप नहीं हैं,कोई बहन भाई भी नहीं हैं। मैं पढ़ना चाहती हूँ। आप मुझे अपनी बेटी बना लो। मझे लगा यह मेरा सौभाग्य होगा।
झमलो धुर्वे आदिवासी यह मासूम सी बच्ची सुदूर घने जंगल के ग्राम हरदू की रहने वाली है। खुद मजदूरी कर बिना किसी सरपरस्त के नौंवी कक्षा पास कर आई है। मुझे उसकी आँखोंमें एक विश्वास एक जूनून के साक्षात् दर्शन हुए।मैंने पूछा बेटा किसने बताया तुम्हे मेरे पास आना चाहिए उसका उत्तर था एक अंकल जी ने कहा था बैतूल थाने चली जयो और टी आई साहब से मिलना। मैं आ गई।
और अब वो मेरी बेटी है। बैतूल के महारानी लक्ष्मी बाई स्कूल में प्रवेश हो चुका है। होस्टल में प्रवेश की प्रक्रिया जारी है। मुझे पापाजी व सरिता को जब बड़े प्यार से मम्मी जी बोलती है तो जो महसूस होता है उसके लिए शब्दकोश रिक्त है।

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