हिज्बुल मुजाहिदीन के आतंकी कमांडर बुरहान वानी के मारे के बाद सुरक्षा बल और प्रदर्शनकारियों के बीच अब तक सैकड़ों दफा हिंसक झड़पें हो है। कई दफा भीड़ को तितर बितर करने के लिए सुरक्षा बल पैलेट गन का इस्तेमाल करती है। इसके इस्तेमाल से हजारों घायल हो गए हैं और सैकड़ों लोगों को देखने में दिक्कत आने लगी है।
ये नॉन लीथल हथियार है यानि गैर-जानलेवा हथियार
जब हमने इस बारे में सुरक्षाबलों के अधिकारियों से पूछा तो उनका जवाब था कि ये नॉन लीथल हथियार है यानि गैर-जानलेवा हथियार जिससे जान नहीं जाती है। सुरक्षा बल के लोग बताते हैं जब आपकी खुद की जान अटकी हो और कोई दूसरा उपाय ना हो तो विरोध प्रदर्शन कर रहे लोगों पर और क्या इस्तेमाल किया जाए। आप लोगों पर डंडा चलाएंगे तो क्या ऐसी हिंसक उग्र भीड़ भागेगी?
उपद्रवी भीड़ में शामिल लोगों ने आंसू गैस का जैसे तोड़ निकाल लिया है
इसके अलावा नॉन लीथल वेपन के तौर पर आंसू गैस के गोले हैं। अब उपद्रवी भीड़ में शामिल लोगों ने इसका जैसे तोड़ निकाल लिया है। और कई बाद देखा गया है कि वह पहले से तैयार रहते हैं। आंसू गैस का गोला फायर होने पर ये लोग उसपर गीले बोरे डाल देते हैं जिससे उसका असर न के बराबर हो जाता है।
इसके बाद और हथियार हैं जिसे मिर्ची बम कहते हैं। इसे आलियोरेजन भी कहा जाता है। इसे लोगों पर फेकने पर आंखों और त्वचा में जलन होने लगती हैं। पर ये भी उतना असरदार नहीं होता क्योंकि इसका असर भीड़ में मौजूद चंद लोगों पर ही सीमित रहता है। और सैकड़ों लोगों की भीड़ पर काबू पाना मुश्किल सा हो जाता है।
एक बार फायर होने से सैकड़ों छर्रे निकलते हैं जो रबर और प्लास्टिक के होते हैं
ले देकर पुलिस और सीआरपीएफ के पास फिर पैलेट गन ही बचती है। इसके एक बार फायर होने से सैकड़ों छर्रे निकलते हैं जो रबर और प्लास्टिक के होते हैं। ये जहां जहां लगते हैं उससे शरीर के हिस्से में चोट लग जाती है। अगर आंख में लग जाए तो वो काफी घातक होता है। इसकी रेंज 50 से 60 मीटर होती है। छर्रे जब शरीर के अंदर जाते हैं तो काफी दर्द तो होता है। पूरी तरह ठीक होने में कई दिन लग जाते हैं।
बताया जा रहा जिन सैकड़ों लोगों को आंख में इसके छर्रे लगे हैं उनकी आंखों से अब दिखाई नहीं पड़ रहा है। दिल्ली से गए आंखो के सर्जन डॉक्टर और स्थानीय डॉक्टर ने कइयों के रेटिना के ऑपरेशन किए हैं और अब सबको इंतजार है उनकी आंखों की रोशनी आने का।
सुरक्षा बल का ये भी कहना है वो इसे कमर के नीचे फायर करते हैं
सुरक्षा बल की कोशिश होती है इसे सामने से फायर ना करे लेकिन, ज्यादातर इनकी भिड़ंत आमने सामने होती है। सुरक्षा बल का ये भी कहना है वो इसे कमर के नीचे फायर करते हैं लेकिन ये कई बार कमर के ऊपर भी लग जाता है। वजह है जैसे बंदूक से निशाने साधे जाते हैं और गोली वही लगती ही जहां फायर की जाती है। पैलेट गन में ऐसा कुछ भी नहीं है।
सुरक्षा बल के अधिकारियों का कहना है इसके खराब रिजल्ट्स मालूम है, पर इसके अलावा कोई दूसरा कोई रास्ता नहीं है। पैलेट बंदूकें ही हैं जिन्हें विरोध के दौरान आसानी से इस्तेमाल किया जा सका है।
इसका इस्तेमाल सुरक्षाबल अंतिम हथियार के तौर पर ही करते हैं
सुरक्षाबल की मानें तो इसका इस्तेमाल वो अंतिम हथियार के तौर पर ही करते हैं। भीड़ इनके ऊपर ग्रेनेड फेक रही है। पत्थर फेंक रही है। अब तक केवल सीआरपीएफ के 300 से ज्यादा जवान पत्थर से घायल हो गए हैं।कई पुलिस वालों के सिर फट गए हैं। एक बार तोभीड़ ने जीप सहित पुलिस कर्मी को नदी में फेंक दिया और जिससे पुलिस वाले डूबकर मर भी गए। ऐसे मेंअब ये न करें तो क्या करें?
आप लोगों पर हर वक्त बंदूक फायर नहीं कर सकते। ऐसे में लोगों को डराने के लिए बस यही हथियार बचता है। कुछ लोग ये तर्क दे रहे हैं कि बंदूक की गोली से तो आदमी को एक बार दर्द होता है, लेकिन इससे तो जिंदगीभर का दर्द रह जाता है। अब सवाल उठता है कि सुरक्षाबल उग्र भीड़ से निपटने के लिए क्या करे?
ऐसा भी नहीं कि इस हथियार का इस्तेमाल पहली बार हो रहा है। इसका इस्तेमाल तो 2010 से हो रहा है। भीड़ से निपटने के लिए पैलेट गन का इस्तेमाल दुनिया के कई देशों में हो रहा है। हो सकता है जब पहली बार इतनी आवाजें उठ रही हैं तो इसके दूसरे विकल्प के बारे में भी सोचा जाए। जिससे बेकाबू लोगों पर काबू भी पाया जा सके और सुरक्षा बलों को भी कोई नुकसान न हो।
ये नॉन लीथल हथियार है यानि गैर-जानलेवा हथियार
जब हमने इस बारे में सुरक्षाबलों के अधिकारियों से पूछा तो उनका जवाब था कि ये नॉन लीथल हथियार है यानि गैर-जानलेवा हथियार जिससे जान नहीं जाती है। सुरक्षा बल के लोग बताते हैं जब आपकी खुद की जान अटकी हो और कोई दूसरा उपाय ना हो तो विरोध प्रदर्शन कर रहे लोगों पर और क्या इस्तेमाल किया जाए। आप लोगों पर डंडा चलाएंगे तो क्या ऐसी हिंसक उग्र भीड़ भागेगी?
उपद्रवी भीड़ में शामिल लोगों ने आंसू गैस का जैसे तोड़ निकाल लिया है
इसके अलावा नॉन लीथल वेपन के तौर पर आंसू गैस के गोले हैं। अब उपद्रवी भीड़ में शामिल लोगों ने इसका जैसे तोड़ निकाल लिया है। और कई बाद देखा गया है कि वह पहले से तैयार रहते हैं। आंसू गैस का गोला फायर होने पर ये लोग उसपर गीले बोरे डाल देते हैं जिससे उसका असर न के बराबर हो जाता है।
इसके बाद और हथियार हैं जिसे मिर्ची बम कहते हैं। इसे आलियोरेजन भी कहा जाता है। इसे लोगों पर फेकने पर आंखों और त्वचा में जलन होने लगती हैं। पर ये भी उतना असरदार नहीं होता क्योंकि इसका असर भीड़ में मौजूद चंद लोगों पर ही सीमित रहता है। और सैकड़ों लोगों की भीड़ पर काबू पाना मुश्किल सा हो जाता है।
एक बार फायर होने से सैकड़ों छर्रे निकलते हैं जो रबर और प्लास्टिक के होते हैं
ले देकर पुलिस और सीआरपीएफ के पास फिर पैलेट गन ही बचती है। इसके एक बार फायर होने से सैकड़ों छर्रे निकलते हैं जो रबर और प्लास्टिक के होते हैं। ये जहां जहां लगते हैं उससे शरीर के हिस्से में चोट लग जाती है। अगर आंख में लग जाए तो वो काफी घातक होता है। इसकी रेंज 50 से 60 मीटर होती है। छर्रे जब शरीर के अंदर जाते हैं तो काफी दर्द तो होता है। पूरी तरह ठीक होने में कई दिन लग जाते हैं।
बताया जा रहा जिन सैकड़ों लोगों को आंख में इसके छर्रे लगे हैं उनकी आंखों से अब दिखाई नहीं पड़ रहा है। दिल्ली से गए आंखो के सर्जन डॉक्टर और स्थानीय डॉक्टर ने कइयों के रेटिना के ऑपरेशन किए हैं और अब सबको इंतजार है उनकी आंखों की रोशनी आने का।
सुरक्षा बल का ये भी कहना है वो इसे कमर के नीचे फायर करते हैं
सुरक्षा बल की कोशिश होती है इसे सामने से फायर ना करे लेकिन, ज्यादातर इनकी भिड़ंत आमने सामने होती है। सुरक्षा बल का ये भी कहना है वो इसे कमर के नीचे फायर करते हैं लेकिन ये कई बार कमर के ऊपर भी लग जाता है। वजह है जैसे बंदूक से निशाने साधे जाते हैं और गोली वही लगती ही जहां फायर की जाती है। पैलेट गन में ऐसा कुछ भी नहीं है।
सुरक्षा बल के अधिकारियों का कहना है इसके खराब रिजल्ट्स मालूम है, पर इसके अलावा कोई दूसरा कोई रास्ता नहीं है। पैलेट बंदूकें ही हैं जिन्हें विरोध के दौरान आसानी से इस्तेमाल किया जा सका है।
इसका इस्तेमाल सुरक्षाबल अंतिम हथियार के तौर पर ही करते हैं
सुरक्षाबल की मानें तो इसका इस्तेमाल वो अंतिम हथियार के तौर पर ही करते हैं। भीड़ इनके ऊपर ग्रेनेड फेक रही है। पत्थर फेंक रही है। अब तक केवल सीआरपीएफ के 300 से ज्यादा जवान पत्थर से घायल हो गए हैं।कई पुलिस वालों के सिर फट गए हैं। एक बार तोभीड़ ने जीप सहित पुलिस कर्मी को नदी में फेंक दिया और जिससे पुलिस वाले डूबकर मर भी गए। ऐसे मेंअब ये न करें तो क्या करें?
आप लोगों पर हर वक्त बंदूक फायर नहीं कर सकते। ऐसे में लोगों को डराने के लिए बस यही हथियार बचता है। कुछ लोग ये तर्क दे रहे हैं कि बंदूक की गोली से तो आदमी को एक बार दर्द होता है, लेकिन इससे तो जिंदगीभर का दर्द रह जाता है। अब सवाल उठता है कि सुरक्षाबल उग्र भीड़ से निपटने के लिए क्या करे?
ऐसा भी नहीं कि इस हथियार का इस्तेमाल पहली बार हो रहा है। इसका इस्तेमाल तो 2010 से हो रहा है। भीड़ से निपटने के लिए पैलेट गन का इस्तेमाल दुनिया के कई देशों में हो रहा है। हो सकता है जब पहली बार इतनी आवाजें उठ रही हैं तो इसके दूसरे विकल्प के बारे में भी सोचा जाए। जिससे बेकाबू लोगों पर काबू भी पाया जा सके और सुरक्षा बलों को भी कोई नुकसान न हो।
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