Saturday 2 July 2016

बसंत पंचमी/बलिदान-दिवस विशेष

 धर्मवीर हकीकतराय ...

हमारी संस्कृति में पता नहीं ऐसी क्या अनोखी बात है कि इसको जितना भी दबाया गया मिटाया गया परन्तु आज भी ज्यों का त्यौं विद्यमान है ! यह इस देश की राज के कण कण में समाई हुई है ! कभी इसकी रक्षा हेतु चित्तोड़ के किले में हजारों चिताएं जल जाती है, कभी वीर घांस की रोटी खाते है, माताओं और बच्चों ने भी अपने जीवन की सुकुमार कलियों को स्वयं अपने ही हाथों मसलकर मातृभूमि पर चढ़ाया ! किसी भी प्रकार के लालच या भय की परवाह किये बिना हमारे वीर कुमार दीवारों में चुने जाने या अपने सिर भेट करने में भी पीछे नहीं रहे ! 

धर्म पर मर मिटने वाले बहुत हुए, लेकिन मर कर भी जीवित रहा तो वह है धर्मवीर हकीकत राय बलिदानी ! २ अक्तूबर १७२२ को सियालकोट (अब पाकिस्तान) में भागमल खत्री के घर माता कौरां की कोख से वीर हकीकत का जन्म हुआ !

हकीकत राय बचपन से ही प्रतिभाशाली थे ! थोड़े ही समय में अपने सहपाठियों से आगे निकल कर कक्षा में प्रथम आने लगा ! एक दिन मौलवी साहिब ने एक मुसलमान छात्र को फारसी का पाठ सुनाने को कहा तो वह सुना न सका ! इस पर उन्होंने कहा कि इससे अच्छा तो हकीकत ही है, जो हिंदू होने के बावजूद उसे सुना देता है ! इससे अपमानित छात्र ने उससे बदला लेना की योजना बनाई ! उसने हकीकत पर व्यंग्य कसने शुरू कर दिए ! उसने कहा कि मुझे तंग मतो करो, तुम्हे भगवती मां का वास्ता ! इस पर मुस्लिम छात्र ने हिंदू देवी देवताओं के खिलाफ अपशब्द बोले ! हकीकत राय ने कहाः "अब हद हो गयी ! अपने लिए तो मैंने सहनशक्ति को उपयोग किया लेकिन मेरे धर्म, गुरु और भगवान के लिए एक भी शब्द बोलोगे तो यह मेरी सहनशक्ति से बाहर की बात है ! मेरे पास भी जुबान है ! मैं भी तुम्हें बोल सकता हूँ !" हकीकत ने कहा कि अगर ऐसे शब्द बीबी फातमा के खिलाफ कहूंगा तो आपको बुरा लगेगा ! मुस्लिम छात्रों ने इस बात को बढ़ा चढ़ाकर मौलवी को बताया ! इससे खफा मौलवी ने हकीकत को गिरफ्तार करवा दिया ! उस समय मुगलों का ही शासन था, इसलिए हकीकत राय को जेल में कैद कर दिया गया !

मुगल शासकों की ओर हकीकत राय को यह फरमान भेजा गया कि 'अगर तुम कलमा पढ़ लो और मुसलमान बन जाओ तो तुम्हें अभी माफ कर दिया जायेगा और यदि तुम मुसलमान नहीं बनोगे तो तुम्हारा सिर धड़ से अलग कर दिया जायेगा !' हकीकत राय के माता-पिता जेल के बाहर आँसू बहा रहे थेः "बेटा ! तू मुसलमान बन जा ! कम से कम हम तुम्हें जीवित तो देख सकेंगे !" लेकिन उस बुद्धिमान बालक ने कहाः

"क्या मुसलमान बन जाने के बाद मेरी मृत्यु नहीं होगी ?" 

माता-पिताः "मृत्यु तो होगी ही !"

हकीकत रायः "तो फिर मैं अपने धर्म में ही मरना पसंद करुँगा ! मैं जीते जी दूसरों का धर्म स्वीकार नहीं करूँगा !"

क्रूर शासकों ने हकीकत राय की दृढ़ता देखकर अनेकों धमकियाँ दीं लेकिन उस बहादुर किशोर पर उनकी धमकियों का जोर न चल सका ! उसके दृढ़ निश्चय को पूरा राज्य-शासन भी न डिगा सका ! अंत में मुगल शासक ने उसे प्रलोभन देकर अपनी ओर खींचना चाहा लेकिन वह बुद्धिमान व वीर किशोर प्रलोभनों में भी नहीं फँसा ! आखिर क्रूर मुसलमान शासकों ने आदेश दिया कि 'अमुक दिन बीच मैदान में हकीकत राय का शिरोच्छेद किया जायेगा !' आखिर 1734 को बसंत पंचमी के दिन हकीकत वधशाला में लाया गया ! उस वीर हकीकत राय ने गुरु का मंत्र ले रखा था ! गुरुमंत्र जपते-जपते उसकी बुद्धि सूक्ष्म हो गयी थी वह 14 वर्षीय किशोर जल्लाद के हाथ में चमचमाती हुई तलवार देखकर जरा भी भयभीत न हुआ वरन् अपने गुरु के दिये हुए ज्ञान को याद करने लगे कि 'यह तलवार किसको मारेगी ? मार-मारकर इस पाँच भौतिक शरीर को ही तो मारेंगी और ऐसे पंचभौतिक शरीर तो कई बार मिले और कई बार मर गये ! तो क्या यह तलवार मुझे मारेगी ? नहीं मैं तो अमर आत्मा हूँ परमात्मा का सनातन अंश हूँ ! मुझे यह कैसे मार सकती है ? ॐ....ॐ....ॐ...

हकीकत राय गुरु के इस ज्ञान का चिन्तन कर रहा था, तभी क्रूर काजियों ने जल्लाद को तलवार चलाने का आदेश दिया ! जल्लाद ने तलवार उठायी लेकिन उस निर्दोष बालक को देखकर उसकी अंतरात्मा थरथरा उठी ! उसके हाथों से तलवार गिर पड़ी और हाथ काँपने लगे !

काजी बोलेः "तुझे नौकरी करनी है कि नहीं ? यह तू क्या कर रहा है ?"

तब हकीकत राय ने अपने हाथों से तलवार उठायी और जल्लाद के हाथ में थमा दी ! फिर वह किशोर आँखें बंद करके परमात्मा का चिन्तन करने लगाः 'हे अकाल पुरुष ! जैसे साँप केंचुली का त्याग करता है, वैसे ही मैं यह नश्वर देह छोड़ रहा हूँ ! मुझे तेरे चरणों की प्रीति देना ताकि मैं तेरे चरणों में पहुँच जाऊँ फिर से मुझे वासना का पुतला बनकर इधर-उधर न भटकना पड़े अब तू मुझे अपनी ही शरण में रखना मैं तेरा हूँ तू मेरा है हे मेरे अकाल पुरुष !'

इतने में जल्लाद ने तलवार चलायी और हकीकत राय का सिर धड़ से अलग हो गया ! हकीकत राय ने 14 वर्ष की छोटी सी उम्र में धर्म के लिए अपनी कुर्बानी दे दी ! उसने शरीर छोड़ दिया लेकिन धर्म न छोड़ा !

गुरु तेगबहादुर बोलिया - सुनो सिखो ! बड़भागिया, धड़ दीजे धरम न छोड़िये हकीकत राय ने अपने जीवन में यह वचन चरितार्थ करके दिखा दिया ! 

हकीकत राय तो धर्म के लिए बलिवेदी पर चढ़ गया लेकिन उसकी कुर्बानी ने समाज के हजारों-लाखों जवानों में एक जोश भर दिया कि 'धर्म की खातिर प्राण देने पड़े तो देंगे लेकिन विधर्मियों के आगे कभी नहीं झुकेंगे ! अपने धर्म में भले भूखे मारना पड़े तो भी स्वीकार है लेकिन परधर्म की सभी स्वीकार नहीं करेंगे !'

ऐसे वीरों के बलिदान के फलस्वरूप ही हमें आजादी प्राप्त हुई है और ऐसे लाखों-लाखों प्राणों की आहुति द्वारा प्राप्त की गयी इस आजादी को हम कहाँ व्यसन, फैशन और चलचित्रों से प्रभावित होकर गँवा न दें ! अब देशवासियों को सावधान रहना होगा !

प्रत्येक मनुष्य को अपने धर्म के प्रति श्रद्धा और आदर होना चाहिए। !भगवान श्रीकृष्ण ने भी कहा हैः

श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्। स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः।।

'अच्छी प्रकार आचरण में लाये हुए दूसरे के धर्म से गुणरहित भी अपना धर्म अति उत्तम है ! अपने धर्म में तो मरना भी कल्याणकारक है और दूसरे का धर्म भय को देने वाला है !'

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