भाग्यलक्ष्मी के भव्य मंदिर को तोड़कर बनाया गया था हैदराबाद का चार मीनार ।
हैदराबाद चारमीनार के निकट देवी मां भाग्यलक्ष्मी मंदिर के सुरक्षा समिति के अध्यक्ष श्री भगवंत राव ने कहा कि चारमीनार के निर्माण के पूर्व से ही इसी स्थान पर मूसी नदी के पूर्वी तट पर हिंदुओं का विजयनगर साम्राज्य था।
जिसका 1518 में इसका विघटन हो गया, उन्हीं हिन्दू राजाओं ने अपनी कुल देवी मां भाग्यलक्ष्मी का भव्य मंदिर बनवाय था। उस हिंदुओं के मूल भव्य मंदिर को नष्ट करके तत्कालीन सुल्तान मोहम्मद कुली कुतुब शाह (1580-1612 ई.) जोकि कुतुब शाही वंश के पांचवें शासक थे। उन्होंने वर्ष 1589 में इस भव्य मंदिर को तुड़वा कर इस्लाम की स्थापना के 1000वर्ष ( सहस्त्राब्दी वर्ष ) पूर्ण होने की खुशी में चार मीनार मस्जिद की स्थापना करवाई थी।
जिसके परिणाम स्वरुप देवी मां भाग्यलक्ष्मी नाराज हो गई और उन्होंने तत्कालीन नगर भागवती (वर्तमान का हैदराबाद ) में प्लेग का प्रकोप फैला दिया। जिससे हजारों मुसलमान प्लेग के प्रभाव में आकर मर गए। वह चार मीनार मस्जिद तीन वर्षों में बन कर वर्ष 1591 पूरी हुई थी। उस समय इस शहर का नाम भी भाग्यनगर था।
इतिहासकार यह भी बतलाते हैं कि देवी मां भाग्यलक्ष्मी मंदिर के अंदर से 12 किलोमीटर तक गोलकुंडा फोर्ट ( गोलकुंडा किला ) तक एक भूमिगत अत्यंत चौड़ी सुरंग भी थी, यह इतनी चौड़ी व गहरी पक्की सुरंग थी जिस पर एक साथ दो घुड़सवार चल सकते थे।इतिहासकारों का कहना है कि हो सकता है उस समय गोलकुंडा फोर्ट के तत्कालीन हिन्दू शासकों ने आपत्ति काल में किले से बाहर निकलने के लिए इसे बनवाया होगा।
इतिहासकार मसूद हुसैन खान का कहना है कि सुल्तान मोहम्मद कुली कुतुब शाह ने इसी स्थान पर रानी भागमती को पहली बार देखा था, उससे प्रेम हो गया, उसने रानी को इस्लाम धर्म कुबूल करवाकर उससे निकाह कर लिया और रानी का नाम हैदर महल रख दिया। कुछ समय बाद इस नगर का नाम भाग्यनगर के स्थान पर प्रेमिका के नाम पर हैदराबाद रख दिया अर्थात बेगम हैदर महल द्वारा आवाद किया गया शहर।
कुतुब शाह ने अपने एक पुत्र का नाम हैदर शाह भी रखा था।जिसने भाग्यनगर का विस्तार करने के लिए बहुत ही अच्छे किस्म के उपवन और पक्की सड़कों का निर्माण करवाया था और अन्य स्थान से लोगों को लाकर वहां पर भूमि और रोजगार भी उपलब्ध करवाया था।
चारमीनार नाम दो शब्दों ‘चार’ और ‘मीनार’ को जोड़ कर बनाया गया है, जिसका शाब्दिक अनुवाद है ‘चार खंभे’।मुसलमानों के अनुसार हज़रत अली सहित इस्लाम में पहले चार खलीफ़ा (अबु बक़र, उमर,उस्मान तथा हज़रत अली) हुये हैं जिसकी याद में चार मीनारों वाली “चार मीनार” बनायी गई थी।वर्तमान में चारमीनार के स्थान पर स्थापित देवी मां भाग्यलक्ष्मी के मंदिर को चारमीनार के निकट ही स्थापित कर दिया गया है जिसको लेकर समय-समय पर कई विवाद होते रहते हैं।हिंदुओं का कहना है कि यह स्थान हमारे पूर्वजों का है जिसमें देवी मां भाग्यलक्ष्मी का मंदिर स्थापित था जबकि मुसलमानों का दावा है कि इस स्थान पर वर्ष 1591 में हमारे मुस्लिम शासक सुल्तान मोहम्मद कुली कुतुब शाह ने चारमीनार मस्जिद स्थापित करवाया था।
आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया (ASI) के अनुसार, चारमीनार के बारे फ़िलहाल यह रिकॉर्ड दर्ज किया गया है तत्कालीन मुस्लिम शासक सुल्तान मोहम्मद कुली कुतुब शाह के शासनकाल में हैदराबाद शहर में बहुत बड़े स्तर पर प्लीग फैल गया था(मां भाग्यलक्ष्मी के मंदिर को तोड़ने के बाद) जिससे हजारों लोगों की मृत्यु हो गई थी इससे घबराकर तत्कालीन शासक मैं अल्लाह से दुआ मांगी और प्लीग ठीक हो गया अत: शासक ने अल्लाह को धन्यवाद देने के लिए चारमीनार का निर्माण करवाया था।
हैदराबाद चारमीनार के निकट देवी मां भाग्यलक्ष्मी मंदिर के सुरक्षा समिति के अध्यक्ष श्री भगवंत राव ने कहा कि चारमीनार के निर्माण के पूर्व से ही इसी स्थान पर मूसी नदी के पूर्वी तट पर हिंदुओं का विजयनगर साम्राज्य था।
जिसका 1518 में इसका विघटन हो गया, उन्हीं हिन्दू राजाओं ने अपनी कुल देवी मां भाग्यलक्ष्मी का भव्य मंदिर बनवाय था। उस हिंदुओं के मूल भव्य मंदिर को नष्ट करके तत्कालीन सुल्तान मोहम्मद कुली कुतुब शाह (1580-1612 ई.) जोकि कुतुब शाही वंश के पांचवें शासक थे। उन्होंने वर्ष 1589 में इस भव्य मंदिर को तुड़वा कर इस्लाम की स्थापना के 1000वर्ष ( सहस्त्राब्दी वर्ष ) पूर्ण होने की खुशी में चार मीनार मस्जिद की स्थापना करवाई थी।
जिसके परिणाम स्वरुप देवी मां भाग्यलक्ष्मी नाराज हो गई और उन्होंने तत्कालीन नगर भागवती (वर्तमान का हैदराबाद ) में प्लेग का प्रकोप फैला दिया। जिससे हजारों मुसलमान प्लेग के प्रभाव में आकर मर गए। वह चार मीनार मस्जिद तीन वर्षों में बन कर वर्ष 1591 पूरी हुई थी। उस समय इस शहर का नाम भी भाग्यनगर था।
इतिहासकार यह भी बतलाते हैं कि देवी मां भाग्यलक्ष्मी मंदिर के अंदर से 12 किलोमीटर तक गोलकुंडा फोर्ट ( गोलकुंडा किला ) तक एक भूमिगत अत्यंत चौड़ी सुरंग भी थी, यह इतनी चौड़ी व गहरी पक्की सुरंग थी जिस पर एक साथ दो घुड़सवार चल सकते थे।इतिहासकारों का कहना है कि हो सकता है उस समय गोलकुंडा फोर्ट के तत्कालीन हिन्दू शासकों ने आपत्ति काल में किले से बाहर निकलने के लिए इसे बनवाया होगा।
इतिहासकार मसूद हुसैन खान का कहना है कि सुल्तान मोहम्मद कुली कुतुब शाह ने इसी स्थान पर रानी भागमती को पहली बार देखा था, उससे प्रेम हो गया, उसने रानी को इस्लाम धर्म कुबूल करवाकर उससे निकाह कर लिया और रानी का नाम हैदर महल रख दिया। कुछ समय बाद इस नगर का नाम भाग्यनगर के स्थान पर प्रेमिका के नाम पर हैदराबाद रख दिया अर्थात बेगम हैदर महल द्वारा आवाद किया गया शहर।
कुतुब शाह ने अपने एक पुत्र का नाम हैदर शाह भी रखा था।जिसने भाग्यनगर का विस्तार करने के लिए बहुत ही अच्छे किस्म के उपवन और पक्की सड़कों का निर्माण करवाया था और अन्य स्थान से लोगों को लाकर वहां पर भूमि और रोजगार भी उपलब्ध करवाया था।
चारमीनार नाम दो शब्दों ‘चार’ और ‘मीनार’ को जोड़ कर बनाया गया है, जिसका शाब्दिक अनुवाद है ‘चार खंभे’।मुसलमानों के अनुसार हज़रत अली सहित इस्लाम में पहले चार खलीफ़ा (अबु बक़र, उमर,उस्मान तथा हज़रत अली) हुये हैं जिसकी याद में चार मीनारों वाली “चार मीनार” बनायी गई थी।वर्तमान में चारमीनार के स्थान पर स्थापित देवी मां भाग्यलक्ष्मी के मंदिर को चारमीनार के निकट ही स्थापित कर दिया गया है जिसको लेकर समय-समय पर कई विवाद होते रहते हैं।हिंदुओं का कहना है कि यह स्थान हमारे पूर्वजों का है जिसमें देवी मां भाग्यलक्ष्मी का मंदिर स्थापित था जबकि मुसलमानों का दावा है कि इस स्थान पर वर्ष 1591 में हमारे मुस्लिम शासक सुल्तान मोहम्मद कुली कुतुब शाह ने चारमीनार मस्जिद स्थापित करवाया था।
आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया (ASI) के अनुसार, चारमीनार के बारे फ़िलहाल यह रिकॉर्ड दर्ज किया गया है तत्कालीन मुस्लिम शासक सुल्तान मोहम्मद कुली कुतुब शाह के शासनकाल में हैदराबाद शहर में बहुत बड़े स्तर पर प्लीग फैल गया था(मां भाग्यलक्ष्मी के मंदिर को तोड़ने के बाद) जिससे हजारों लोगों की मृत्यु हो गई थी इससे घबराकर तत्कालीन शासक मैं अल्लाह से दुआ मांगी और प्लीग ठीक हो गया अत: शासक ने अल्लाह को धन्यवाद देने के लिए चारमीनार का निर्माण करवाया था।
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