Monday, 21 November 2016

सोनपुर पशु मेला (बिहार)

भागवत पुराण के आठवें स्कंध में “गजेन्द्र मोक्ष” की कहानी आती है | ये श्लोक गजेन्द्र कि विष्णु उपासना का है जो हिन्दुओं में प्रचलित कहानियों में से एक है | मोटे तौर पर ये कहानी सब लोग जानते हैं | एक हाथी होता है जिसे मगरमच्छ पकड़ लेता है | जब हाथी किसी तरह छूट नहीं पाता तो वो विष्णु से मदद की गुहार लगाता है | विष्णु आते हैं और उसे बचाते हैं |
 इसके पीछे की बड़ी कहानी ये है कि राजा इंद्रद्युम्न के दरबार में एक दिन अगस्त्य मुनि आये | घमंडी राजा इंद्रद्युम्न को उसके मूर्खतापूर्ण बर्ताव के लिए कहा गया कि हाथी के जितना बड़ा अहंकार है ! तुम हाथी ही हो जाओ ! अगले जन्म में राजा इंद्रद्युम्न हाथी हुए और अपने झुण्ड के साथ वो त्रिकुट पर्वत के पास रहते थे | दुसरे एक गंधर्व राजा हूहू थे, उनके पास एक बार देवल ऋषि आये | जब स्नान कर के देवल ऋषि सूर्य उपासना कर रहे थे तो देवल ने मगरमच्छ बनकर उन्हें डराने की सोची | वो पानी के नीचे जा कर देवल ऋषि का पैर खींचने लगा | देवल ऋषि के शाप से अगले जन्म में हूहू भी मगरमच्छ हुआ |
 पौराणिक कथा के मुताबिक हाथी बने इंद्रद्युम्न और मगरमच्छ बने हूहू की लड़ाई हज़ार साल तक चलती रही | हिमालय से शुरू हुआ उनका युद्ध गंगा के साथ साथ मैदानी इलाके में आ गया | जहाँ हाथी ने कमल उठा कर विष्णु से मदद मांगी वो जगह बिहार में पटना के पास है | घटना के कई साल बाद जब भगवान राम अयोध्या से मिथिला जाते समय उस स्थान से गुजरे तो उन्होंने वहां हरिहरनाथ के मंदिर की स्थापना की | मुग़ल काल में राजा मान सिंह ने इस मंदिर का पुनः निर्माण करवाया | आज जो मंदिर नजर आता है वो मुग़ल काल के अंतिम समय में राजा राम नारायण ने बनवाया था | मुग़ल काल से पहले तक गंडक नदी के किनारे यहीं हाथियों की मंडी लगती थी |
 कार्तिक पूर्णिमा को शुरू होने वाले इस सोनपुर पशु मेले की शुरुआत चन्द्रगुप्त मौर्य (340-297 BCE) के काल में हुई थी | वो गंगा पार कर के इस जगह अपने लिए हाथी और घोड़े खरीदने आते थे | इसे हरिहर क्षेत्र का मेला भी कहते हैं और इसमें पूरे एशिया से लोग आते हैं | मुग़ल काल में औरंगजेब के समय हरिहर क्षेत्र से थोड़ा हटकर सोनपुर में ये मेला लगने लगा | अब पूजा तो हरिहरनाथ के मंदिर में होती है लेकिन मेले की जगह सोनपुर है | ये जगह पटना से करीब 35 किलोमीटर दूर है और बिहार पर्यटन विभाग के लिए एक प्रमुख आकर्षण भी है |
 पशुओं के व्यापारी जो हर साल इस मेले का इन्तजार करते हैं उनके लिए 2016 बहुत उत्साहवर्धक नहीं रहा | अच्छे शुद्ध नस्ल के घोड़ों की कीमत अक्सर यहाँ तीन लाख से ऊपर होती है | इस वर्ष की नोटबंदी के कारण घोड़ों की खरीद बिक्री पर असर पड़ा है | नकद की कमी की मार गाय-भैंस बेचने वालों को भी झेलनी पड़ी है | उनके धंधे में करीब पचास प्रतिशत की शुरूआती कमी देखी जा रही है | कुछ दिनों में ये हाल सुधरेंगे, ऐसी उम्मीद की जा रही है | इस वर्ष मेले में करीब 1600 गाय-भैंसे हैं, जिनमें से करीब दो सौ का सौदा हो चूका है | घोड़ों के बड़े व्यापारी ओम प्रकाश सिंह भी कहते हैं कि वो हर साल 30 से 40 घोड़े बेच लेते थे, मगर इस साल धंधा मंदा रहेगा |
 मेले में आये करीब 2100 घोड़ों में से सिर्फ 10 ही पहले सप्ताह में बिक पाए हैं | गायों की बिक्री पर असर पड़ने का एक दूसरा कारण है | हाल के सालों में गाय भैंसों के एक राज्य से दुसरे राज्य में ले जाने पर लगने वाले नियमों में बदलाव आये हैं, जिस से अन्य राज्यों से आने वाले खरीदार घटे हैं | पंजाब, हरियाणा, असम और बंगाल में नियमों में आये बदलाव के कारण पशु बिकने के लिए आये भी कम हैं | मेले में थोड़ी संख्या में (करीब 350) भेंड बकरियां भी बिकने आई हैं |
केन्द्रीय महिला एवं बाल कल्याण मंत्री मेनका गाँधी की शिकायत के बाद ही पर्यावरण मंत्री प्रकाश जवेदेकर ने 2015 में हाथियों की थोक में बिक्री पर प्रतिबन्ध लगा दिया था | उसकी वजह से हाथियों की खरीद बिक्री में पहले ही गिरावट आ चुकी है | कुछ साल पहले तक हाथियों के बाजार के लिए जाने जाने वाले इस मेले में 250 के आस पास हाथी बिकते थे | इस वर्ष सिर्फ पंद्रह हाथी बाजार में हैं | थिएटर जैसी प्रथा जो मेले में शुरू हो गई थी उसपर राज्य में लगी शराबबंदी ने अपना असर दिखाया है | कुल मिला कर ये कहा जा सकता है कि कभी पशुओं के सबसे बड़े मेले के रूप में जाना जाने वाला सोनपुर मेला अब अपनी रंगत खो रहा है |

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